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9 अप्रैल का वो काला दिन: नूरपुर के मलकवाल में 5 साल पहले आज के दिन ही 28 बच्चों ने गंवाई थी जान - nurpur school bus accident

हिमाचल प्रदेश की नूरपुर विधानसभा में आज के दिन ही 28 बच्चों की जान चली गई थी. पढ़ें पूरी खबर... (kangra nurpur school bus accident)

kangra nurpur school bus accident
नूरपुर के मलकवाल में 5 साल पहले आज के दिन ही हुआ था दर्दनाक हादसा
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Published : Apr 9, 2023, 9:36 PM IST

Updated : Apr 9, 2023, 10:14 PM IST

हादसे में मृत बच्चों के परिजन.

कांगड़ा: मलकवाल बस हादसे को हुए आज पांच साल बीत गए, लेकिन मलकवाल गांव के जख्म आज भी हरे हैं. आज भी इन लोगों को आशा है कि इनके बच्चे लौट के जरूर आएंगे. जी हां हम बात कर रहे है नूरपुर विधानसभा के अंतर्गत आते मलकवाल गांव की. जहां पर एक ऐसा कहर बरपा था जिसने अपने आगोश में 28 बच्चों को ले लिया था. बात बीते पांच साल पहले की है. जब सत्ता में काबिज भाजपा की नई-नई सरकार बनी थी और उस सरकार के मुखिया जयराम ठाकुर थे. सरकार बने कुछ ही समय हुआ था और अचानक 9 अप्रैल की दोपहर के तीन बजे एक खबर आई कि नूरपुर के मलकवाल में प्राइवेट स्कूल की बस गहरी खाई में जा गिरी है.

खबर मिलते ही प्रदेश भर में मातम छा गया. नूरपुर के मलकवाल के हर घर में चीखो पुकार सुनाई देने लगी, क्योंकि इस गांव के 28 बच्चे मौत की भेंट चढ़ गए थे. कोई पहली बार स्कूल जा रहा था तो कोई स्कूल के रोज जाने वाले बच्चे इस बस में सवार थे. आज पांच साल बीत जाने के बाद भी इस गांव के लोगों के जख्म हरे के हरे हैं और यह लोग आज भी उस जांच के निष्कर्ष की आशा में बैठे हैं कि शायद जांच रिपोर्ट बता दे कि हादसा कैसे हुआ था. एक लड़की जिसकी शादी होनी थी उसने इसी स्कूल बस में लिफ्ट ली उसे क्या पता था की उसकी डोली के बजाए उसकी अर्थी उठ जाएगी.

नूरपुर के मलकवाल में लोग सुबह अपने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करके भेजा था और दोपहर को बस समय पर ना आने के कारण सभी लोग परेशान हुए कि आज बस क्यों नहीं आई. जब इन लोगों को पता चला कि स्कूल बस खाई में गिर गई है तो गांव का माहौल मातम में बदल गया. एक पिता दौड़ता हुआ उस स्थान पर पहुंचा और देखा कि बस गहरी खाई में गिर गई है तो उसने उस स्थान पर पहुंचकर बच्चों को बचाना शुरू किया. फिर एक महिला कुसुम वहां पहुंची और देखा तो उसके घर के चारों चिराग बुझ चुके थे. एक-एक कर के गांव वालो को पता चला कि स्कूल बस गहरी खाई में गिर गई है तो गांव का माहौल मातम में बदल गया. एक तरफ चीखो पुकार थी तो दूसरी तरफ मदद की दरकार थी. कोई करता भी तो क्या करता बस इतनी गहरी खाई में जा गिरी थी कि उस तक पहुचना मुश्किल था, लेकिन कई लोग अपनी जान को जोखिम में डाल कर बच्चों को बचाने के लिए वहां पहुंचे थे. फिर भी 8 बच्चों को बचा लिया गया और 28 बच्चों ने अपनी जान से हाथ धो दिए थे.

नूरपुर अस्पताल का स्टाफ बच्चों की शवों का पोस्टमार्टम कर रहा था और सरकार के आने का इंतजार था रात भर बच्चों के शव अस्पताल में रहे. सुबह सरकार के आने के बाद इन शवों को परिजनों के हवाले किया गया. जैसे तैसे इन बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया. समय के बीतने के साथ सब इस हादसे को भूल गए, लेकिन आज इस गांव में जाकर में उन पीड़ित परिवार से बात की तो यही पाया कि सरकार ने तो फौरी राहत पहुंचा दी थी, लेकिन सवाल आज भी जांच पर खड़ा होता है.

वहीं, इस बारे में जानकारी देते हुए कुसुम ने बताया कि उनके दो बच्चे और उनकी जेठानी को दो बच्चे इस हादसे में अपनी जान गंवा चुके थे, लेकिन अब इस घर में दोबारा से 4 बच्चों का जन्म हो चुका है. पलक की मां का कहना है की जो प्यार वो अपने पहले बच्चों को दे सकती थी शायद उतना प्यार इन दोनों के नहीं दे पाएंगे क्योंकि पहले बच्चों की तस्वीर उसकी आंखों से ओझल ही नहीं होती और वह पल पल उन बच्चों की याद में रोती है जो की बस हादसे का शिकार हुए थे. वहीं, इस हादसे से बची कशिश का कहना है की जिस दिन उस बस का एक्सीडेंट हुआ था उस दिन वह अपने स्कूल नहीं गई थी. जिस बजह से वह आज इस दुनिया में है, लेकिन उसने अपने भाई को खो दिया था. बस हादसे में मौत को गले लगाने वाले बच्चों के परिवार वाले 9 अप्रैल के दिन हर साल शांति हवन करवाते हैं और जिस स्थान से बस गिर थी उस स्थान पर एक मंदिर बना दिया गया है.

28 बच्चों की जान जाने के बाद प्रशासन भी जाग गया और उसने उसी स्थान पर क्रैश बैरियर लगा दिए हैं. काश यह क्रैश बैरियर विभाग ने पहले लगाए होते तो 28 बच्चों की जान बच सकती थी. फिलहाल जिस स्कूल की बस हादसे का शिकार हुई थी वो स्कूल अब बंद हो चुका है. नूरपुर की मलकवाल पंचायत के लोग 9 अप्रैल को काला दिवस मनाते हैं और अपने बच्चों की मौत पर उनकी आत्मा के लिए शांति हवन करते हैं.

Read Also- Bihar News: मर गई मां की ममता, पति से विवाद हुआ तो 3 बच्चों को लेकर नदी में लगाई छलांग

हादसे में मृत बच्चों के परिजन.

कांगड़ा: मलकवाल बस हादसे को हुए आज पांच साल बीत गए, लेकिन मलकवाल गांव के जख्म आज भी हरे हैं. आज भी इन लोगों को आशा है कि इनके बच्चे लौट के जरूर आएंगे. जी हां हम बात कर रहे है नूरपुर विधानसभा के अंतर्गत आते मलकवाल गांव की. जहां पर एक ऐसा कहर बरपा था जिसने अपने आगोश में 28 बच्चों को ले लिया था. बात बीते पांच साल पहले की है. जब सत्ता में काबिज भाजपा की नई-नई सरकार बनी थी और उस सरकार के मुखिया जयराम ठाकुर थे. सरकार बने कुछ ही समय हुआ था और अचानक 9 अप्रैल की दोपहर के तीन बजे एक खबर आई कि नूरपुर के मलकवाल में प्राइवेट स्कूल की बस गहरी खाई में जा गिरी है.

खबर मिलते ही प्रदेश भर में मातम छा गया. नूरपुर के मलकवाल के हर घर में चीखो पुकार सुनाई देने लगी, क्योंकि इस गांव के 28 बच्चे मौत की भेंट चढ़ गए थे. कोई पहली बार स्कूल जा रहा था तो कोई स्कूल के रोज जाने वाले बच्चे इस बस में सवार थे. आज पांच साल बीत जाने के बाद भी इस गांव के लोगों के जख्म हरे के हरे हैं और यह लोग आज भी उस जांच के निष्कर्ष की आशा में बैठे हैं कि शायद जांच रिपोर्ट बता दे कि हादसा कैसे हुआ था. एक लड़की जिसकी शादी होनी थी उसने इसी स्कूल बस में लिफ्ट ली उसे क्या पता था की उसकी डोली के बजाए उसकी अर्थी उठ जाएगी.

नूरपुर के मलकवाल में लोग सुबह अपने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करके भेजा था और दोपहर को बस समय पर ना आने के कारण सभी लोग परेशान हुए कि आज बस क्यों नहीं आई. जब इन लोगों को पता चला कि स्कूल बस खाई में गिर गई है तो गांव का माहौल मातम में बदल गया. एक पिता दौड़ता हुआ उस स्थान पर पहुंचा और देखा कि बस गहरी खाई में गिर गई है तो उसने उस स्थान पर पहुंचकर बच्चों को बचाना शुरू किया. फिर एक महिला कुसुम वहां पहुंची और देखा तो उसके घर के चारों चिराग बुझ चुके थे. एक-एक कर के गांव वालो को पता चला कि स्कूल बस गहरी खाई में गिर गई है तो गांव का माहौल मातम में बदल गया. एक तरफ चीखो पुकार थी तो दूसरी तरफ मदद की दरकार थी. कोई करता भी तो क्या करता बस इतनी गहरी खाई में जा गिरी थी कि उस तक पहुचना मुश्किल था, लेकिन कई लोग अपनी जान को जोखिम में डाल कर बच्चों को बचाने के लिए वहां पहुंचे थे. फिर भी 8 बच्चों को बचा लिया गया और 28 बच्चों ने अपनी जान से हाथ धो दिए थे.

नूरपुर अस्पताल का स्टाफ बच्चों की शवों का पोस्टमार्टम कर रहा था और सरकार के आने का इंतजार था रात भर बच्चों के शव अस्पताल में रहे. सुबह सरकार के आने के बाद इन शवों को परिजनों के हवाले किया गया. जैसे तैसे इन बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया. समय के बीतने के साथ सब इस हादसे को भूल गए, लेकिन आज इस गांव में जाकर में उन पीड़ित परिवार से बात की तो यही पाया कि सरकार ने तो फौरी राहत पहुंचा दी थी, लेकिन सवाल आज भी जांच पर खड़ा होता है.

वहीं, इस बारे में जानकारी देते हुए कुसुम ने बताया कि उनके दो बच्चे और उनकी जेठानी को दो बच्चे इस हादसे में अपनी जान गंवा चुके थे, लेकिन अब इस घर में दोबारा से 4 बच्चों का जन्म हो चुका है. पलक की मां का कहना है की जो प्यार वो अपने पहले बच्चों को दे सकती थी शायद उतना प्यार इन दोनों के नहीं दे पाएंगे क्योंकि पहले बच्चों की तस्वीर उसकी आंखों से ओझल ही नहीं होती और वह पल पल उन बच्चों की याद में रोती है जो की बस हादसे का शिकार हुए थे. वहीं, इस हादसे से बची कशिश का कहना है की जिस दिन उस बस का एक्सीडेंट हुआ था उस दिन वह अपने स्कूल नहीं गई थी. जिस बजह से वह आज इस दुनिया में है, लेकिन उसने अपने भाई को खो दिया था. बस हादसे में मौत को गले लगाने वाले बच्चों के परिवार वाले 9 अप्रैल के दिन हर साल शांति हवन करवाते हैं और जिस स्थान से बस गिर थी उस स्थान पर एक मंदिर बना दिया गया है.

28 बच्चों की जान जाने के बाद प्रशासन भी जाग गया और उसने उसी स्थान पर क्रैश बैरियर लगा दिए हैं. काश यह क्रैश बैरियर विभाग ने पहले लगाए होते तो 28 बच्चों की जान बच सकती थी. फिलहाल जिस स्कूल की बस हादसे का शिकार हुई थी वो स्कूल अब बंद हो चुका है. नूरपुर की मलकवाल पंचायत के लोग 9 अप्रैल को काला दिवस मनाते हैं और अपने बच्चों की मौत पर उनकी आत्मा के लिए शांति हवन करते हैं.

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Last Updated : Apr 9, 2023, 10:14 PM IST
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