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जब शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा ने दुश्मनों को चटाई थी धूल, पिता बोले- आज भी याद है बेटे से हुई अंतिम बात

परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में देश के लिए शहीद हो गए थे. विक्रम बत्रा की शहादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप का नाम दिया गया है. शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को जिला कांगड़ा के पालमपुर में घुग्गर गांव में हुआ था. ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब विक्रम बत्रा के माता-पिता उन्हें याद न करते हों.

शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा
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Published : Jul 26, 2021, 4:12 PM IST

पालमपुर/कांगड़ा: 26 जुलाई का दिन हर वर्ष पूरे देश में करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. करगिल युद्ध के जांबाज योद्धाओं में एक नाम शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का भी आता है. परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में देश के लिए शहीद हो गए थे. विक्रम बत्रा की शहादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप का नाम दिया गया है. शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को जिला कांगड़ा के पालमपुर में घुग्गर गांव में हुआ था. ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब विक्रम बत्रा के माता-पिता उन्हें याद न करते हों.

शहीद कैप्टन विक्रम बतरा के पिता गिरधारी लाल बत्रा ने अपने बेटे विक्रम बत्रा को याद करते हुए कहा कि करगिल विजय दिवस और गणतंत्र दिवस एक ही तारिख को आता है. मुझे याद है कि हमारे जवानों ने दुश्मनों को किस तरह से धूल चटाई है. यह मुझे आज भी याद है और उस वक्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अमरीका के प्रेजिडेंट के पास गए और कहा था कि इस युद्ध को बंद करवाओ. उनको इतनी घबराहट हो गई थी. गिरधारी लाल बत्रा ने कहा कि यह दिन उनके लिए खुशी का दिन भी है और महत्वपूर्ण दिन भी है. उन्होंने कहा कि विक्रम ने हमारे घर में जन्म लेकर हमें धन्य कर दिया है और हमारा मानवीय जीवन सार्थक हो गया है. हमें उन पर बहुत फक्र है कि उन्होंने अपने देश के लिए प्राण न्योछावर किये हैं.

शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा ने कहा कि वह और उनकी धर्मपत्नी तीन बार दराश जा चुके हैं, लेकिन 5140 जहां पर विक्रम बत्रा की शहादत हुई थी, उस चोटी पर हम नहीं जा सके हैं क्योंकि यह बहुत ही दुर्गम स्थान है. इसलिए हम वहां नहीं गए, लेकिन वहां पर हमारा बेटा विशाल सेना के साथ गया है और उनके साथ सेना के वो जवान भी गए थे जो कि कारगिल युद्ध में मौजूद थे.

वीडियो.
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता ने कहा कि दुश्मनों ने 5140 छोटी पर कब्जा किया था और कई बार दुशमन विक्रम को कहते थे कि शेरशाह तुम कहां आ गए हो और तुम वापस नहीं जा पाओगे, लेकिन आधी रात को ही विक्रम ने 5140 को फतह किया था और सात दुश्मन लोगों को मार था और कुछ दुश्मन नीचे गिर के मर गए थे. विक्रम का नारा था कि यह 'दिल मांगे मोर', यहां पर उनका एक जज्बा पता लगता है कि देख भक्ति का जज्बा उनको कितना था.

विक्रम बत्रा के पिता ने बताया कि विक्रम की रिकमेंडेशन परमवीर चक्र के लिए हो चुकी थी, लेकिन उसके बावजूद 4875 को जीतने के लिए भी विक्रम बत्रा निकल पड़े और अकेले ही वहां पर अपने एक साथी को बचा कर लाये थे और 5 दुश्मनों को मार गिराया. उस वक्त उनको किसी दुश्मन के जवान ने छिप कर गोली मारी जिसके बाद वो शहीद हुए थे. विक्रम बत्रा के पिता ने कहा कि दूसरी बार हमें फोन तब आया था जब वे बेस कैंप में आ गये थे. उस वक्त कॉल किया था और कहा था कि वह एक और ऑपरेशन के लिए जा रहे हैं. साथ ही कहा कि पता नहीं वापस आऊंगा या नहीं. आज भी यह शहीद अमर है और दुनिया इन शहीदों को दिल में बसाए हैं.

ये भी पढ़ें- करगिल विजय दिवस के 22 साल, इस युद्ध में मंडी जिले के 12 जांबाजों ने पिया था शहादत का जाम

पालमपुर/कांगड़ा: 26 जुलाई का दिन हर वर्ष पूरे देश में करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. करगिल युद्ध के जांबाज योद्धाओं में एक नाम शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का भी आता है. परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में देश के लिए शहीद हो गए थे. विक्रम बत्रा की शहादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप का नाम दिया गया है. शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को जिला कांगड़ा के पालमपुर में घुग्गर गांव में हुआ था. ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब विक्रम बत्रा के माता-पिता उन्हें याद न करते हों.

शहीद कैप्टन विक्रम बतरा के पिता गिरधारी लाल बत्रा ने अपने बेटे विक्रम बत्रा को याद करते हुए कहा कि करगिल विजय दिवस और गणतंत्र दिवस एक ही तारिख को आता है. मुझे याद है कि हमारे जवानों ने दुश्मनों को किस तरह से धूल चटाई है. यह मुझे आज भी याद है और उस वक्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अमरीका के प्रेजिडेंट के पास गए और कहा था कि इस युद्ध को बंद करवाओ. उनको इतनी घबराहट हो गई थी. गिरधारी लाल बत्रा ने कहा कि यह दिन उनके लिए खुशी का दिन भी है और महत्वपूर्ण दिन भी है. उन्होंने कहा कि विक्रम ने हमारे घर में जन्म लेकर हमें धन्य कर दिया है और हमारा मानवीय जीवन सार्थक हो गया है. हमें उन पर बहुत फक्र है कि उन्होंने अपने देश के लिए प्राण न्योछावर किये हैं.

शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा ने कहा कि वह और उनकी धर्मपत्नी तीन बार दराश जा चुके हैं, लेकिन 5140 जहां पर विक्रम बत्रा की शहादत हुई थी, उस चोटी पर हम नहीं जा सके हैं क्योंकि यह बहुत ही दुर्गम स्थान है. इसलिए हम वहां नहीं गए, लेकिन वहां पर हमारा बेटा विशाल सेना के साथ गया है और उनके साथ सेना के वो जवान भी गए थे जो कि कारगिल युद्ध में मौजूद थे.

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शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता ने कहा कि दुश्मनों ने 5140 छोटी पर कब्जा किया था और कई बार दुशमन विक्रम को कहते थे कि शेरशाह तुम कहां आ गए हो और तुम वापस नहीं जा पाओगे, लेकिन आधी रात को ही विक्रम ने 5140 को फतह किया था और सात दुश्मन लोगों को मार था और कुछ दुश्मन नीचे गिर के मर गए थे. विक्रम का नारा था कि यह 'दिल मांगे मोर', यहां पर उनका एक जज्बा पता लगता है कि देख भक्ति का जज्बा उनको कितना था.

विक्रम बत्रा के पिता ने बताया कि विक्रम की रिकमेंडेशन परमवीर चक्र के लिए हो चुकी थी, लेकिन उसके बावजूद 4875 को जीतने के लिए भी विक्रम बत्रा निकल पड़े और अकेले ही वहां पर अपने एक साथी को बचा कर लाये थे और 5 दुश्मनों को मार गिराया. उस वक्त उनको किसी दुश्मन के जवान ने छिप कर गोली मारी जिसके बाद वो शहीद हुए थे. विक्रम बत्रा के पिता ने कहा कि दूसरी बार हमें फोन तब आया था जब वे बेस कैंप में आ गये थे. उस वक्त कॉल किया था और कहा था कि वह एक और ऑपरेशन के लिए जा रहे हैं. साथ ही कहा कि पता नहीं वापस आऊंगा या नहीं. आज भी यह शहीद अमर है और दुनिया इन शहीदों को दिल में बसाए हैं.

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