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हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में गोल्डन जुबली फॉरेज गार्डन की स्थापना

प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में ‘गोल्डन जुबली फॉरेज गार्डन‘ की स्थापना की गई है. वर्चुअल मोड के माध्यम से उद्यान का उद्घाटन करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. टी महापात्रा ने किया. प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रो एचके चौधरी ने कहा कि डॉ. नवीन कुमार और संबद्ध वैज्ञानिकों द्वारा स्थापित फॉरेस्ट गार्डन निश्चित रूप से किसानों, छात्रों और अन्य हितधारकों को विभिन्न वन्य फसलों, उनकी उन्नत किस्मों, उत्पादन से परिचित करवाने में मदद करेगा.

Establishment of "Golden Jubilee Forage Garden" at State Agricultural University
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Published : Dec 22, 2020, 9:32 PM IST

पालमपुर: प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में 'गोल्डन जुबली फॉरेज गार्डन' की स्थापना की गई है. वर्चुअल मोड के माध्यम से उद्यान का उद्घाटन करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. टी महापात्रा ने सभी कृषि विश्वविद्यालयों को झांसी स्थित इंडियन ग्रासलैंड एंड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट के परामर्श से चारा उत्पादन विकास, चारा बीज उत्पादन योजना और चारा उत्पादन आधारित उद्यमिता विकसित करने का संदेश दिया.

प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रो एचके चौधरी ने कहा कि डॉ. नवीन कुमार और संबद्ध वैज्ञानिकों द्वारा स्थापित फॉरेस्ट गार्डन निश्चित रूप से किसानों, छात्रों और अन्य हितधारकों को विभिन्न वन्य फसलों, उनकी उन्नत किस्मों, उत्पादन से परिचित करवाने में मदद करेगा. कुलपति ने कहा कि सभी फसलें घास से निकली हैं इसलिए 'ग्रास फर्स्ट क्रॉप्स नेक्स्ट' स्लोगन को व्यावहारिक रूप देना चाहिए.

चारा फलियों की उच्च उपज वाली 18 किस्मों का विकास

लोगों की आजीविका सुरक्षा के लिए पशुधन के महत्व को देखते हुए वैज्ञानिक समुदाय के घास और जंगलों की ओर अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यक्ता है. उन्होंने फॉरेस्ट गार्डन में दूब, कुशा घास और छिज घास को शामिल करने का सुझाव दिया. प्रो एचके चौधरी ने कहा कि खेती और पशुपालन एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और परिवार की आय में डेयरी का योगदान लगभग 35 से 55 प्रतिशत है. इस केंद्र ने विभिन्न चारा फसलों, घास और चारा फलियों की उच्च उपज वाली 18 किस्मों का विकास किया है.

वैज्ञानिक रूप से गोल्डन जुबली फॉरेस्ट गार्डन का विकास

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉ. टीआर शर्मा ने कहा कि वैज्ञानिक रूप से गोल्डन जुबली फॉरेस्ट गार्डन को डिजाइन किया गया है, जिसमें 50 से अधिक उन्नत किस्म की वार्षिक और बारहमासी फसलों की उन्नत किस्म शामिल हैं, जो कोरोना महामारी की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद देश के 50 कृषि संस्थानों में सफलतापूर्वक स्थापित की गई हैं.

ये भी पढ़ें- हिमाचल में तीन चरणों में होंगे पंचायती राज चुनाव, अधिसूचना जारी

पालमपुर: प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में 'गोल्डन जुबली फॉरेज गार्डन' की स्थापना की गई है. वर्चुअल मोड के माध्यम से उद्यान का उद्घाटन करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. टी महापात्रा ने सभी कृषि विश्वविद्यालयों को झांसी स्थित इंडियन ग्रासलैंड एंड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट के परामर्श से चारा उत्पादन विकास, चारा बीज उत्पादन योजना और चारा उत्पादन आधारित उद्यमिता विकसित करने का संदेश दिया.

प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रो एचके चौधरी ने कहा कि डॉ. नवीन कुमार और संबद्ध वैज्ञानिकों द्वारा स्थापित फॉरेस्ट गार्डन निश्चित रूप से किसानों, छात्रों और अन्य हितधारकों को विभिन्न वन्य फसलों, उनकी उन्नत किस्मों, उत्पादन से परिचित करवाने में मदद करेगा. कुलपति ने कहा कि सभी फसलें घास से निकली हैं इसलिए 'ग्रास फर्स्ट क्रॉप्स नेक्स्ट' स्लोगन को व्यावहारिक रूप देना चाहिए.

चारा फलियों की उच्च उपज वाली 18 किस्मों का विकास

लोगों की आजीविका सुरक्षा के लिए पशुधन के महत्व को देखते हुए वैज्ञानिक समुदाय के घास और जंगलों की ओर अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यक्ता है. उन्होंने फॉरेस्ट गार्डन में दूब, कुशा घास और छिज घास को शामिल करने का सुझाव दिया. प्रो एचके चौधरी ने कहा कि खेती और पशुपालन एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और परिवार की आय में डेयरी का योगदान लगभग 35 से 55 प्रतिशत है. इस केंद्र ने विभिन्न चारा फसलों, घास और चारा फलियों की उच्च उपज वाली 18 किस्मों का विकास किया है.

वैज्ञानिक रूप से गोल्डन जुबली फॉरेस्ट गार्डन का विकास

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉ. टीआर शर्मा ने कहा कि वैज्ञानिक रूप से गोल्डन जुबली फॉरेस्ट गार्डन को डिजाइन किया गया है, जिसमें 50 से अधिक उन्नत किस्म की वार्षिक और बारहमासी फसलों की उन्नत किस्म शामिल हैं, जो कोरोना महामारी की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद देश के 50 कृषि संस्थानों में सफलतापूर्वक स्थापित की गई हैं.

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