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KANGRA: कृषि विवि ने प्रदेश की पारंपरिक फसलों के साथ गहनों को GI दिलाने के प्रयास किए शुरू - Himachal traditional crops

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर अब महत्वपूर्ण फसलों के साथ पारंपरिक गहनों का भी जीआई (भौगोलिक संकेत) करवाने का प्रयास करेगा. जिससे प्रदेश के 12 जिलों में पहने जाने वाले पारंपरिक गहनों की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान होगी. (GI for Himachal traditional ornaments and crops)

GI for Himachal traditional ornaments and crops
कृषि विवि ने प्रदेश की पारंपरिक फसलों के साथ गहनों को जीआई दिलाने के प्रयास किए शुरू
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Published : Jan 9, 2023, 1:40 PM IST

धर्मशाला: कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने प्रदेश की महत्वपूर्ण फसलों के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) प्राप्त करने के लिए सक्रिय प्रयास शुरू कर दिए हैं. फसलों के साथ पारंपरिक गहनों को लेकर भी जीआई प्राप्त की पहल की जा रही है ताकि उसका लाभ किसानों के साथ ग्रामीणों को भी मिले. गौर रहे कि फसलों और उत्पादों के अन्य मालिकों को इन विशिष्ट उत्पादों पर विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं. इन्हें बेचकर भरपूर लाभ प्राप्त होता है. (Agricultural University Palampur now try to get GI) (GI for Himachal traditional ornaments and crops)

जानकारी के अनुसार प्रदेश के भरमौर, बरोट और किन्नौर के राजमाश, करसोग, शिलाई और चंबा क्षेत्र की उड़दबीन, करसोग की कुल्थी, कुल्लू, कांगड़ा और मंडी क्षेत्र के लाल चावल, चंबा की चूख, चंबा के प्राचीन आभूषण जानवरों की नस्लें और उनके उत्पाद आदि को भौगोलिक संकेत (जीआई) के लिए चुना गया है. गद्दी महिलाओं के अनूठे पारंपरिक आभूषण जैसे चाक और चिड़ी, चंद्रहार और चंपाकली, लौंग, कोका, तिल्ली और बालू, बुंदे, झुमके, कांटे, लटकनीय तुंगनी और कनफुल, गोजरू, टोके, कंगनू, स्नंगु, सिंघी और परी.

भरमौर क्षेत्र से सफेद शहद जैसे औषधीय उत्पाद लाहौल स्पीति और किन्नौर से एफिड्स हनी ड्यू, जंगली मशरूम (कीड़ाजड़ी), स्पीति छरमा और ऊनी उत्पाद जैसे चारखानी पट्टू, डोहरू, पूडे और चीगू बकरी से पश्मीना आदि को जीआई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. चावल, जौ, राजमाश, कुल्थी, माह (उड़द) जैसी अच्छी फसलें हैं तो संभावित फसलें जैसे कुट्टू, चौलाई, बाथू (चेनोपोडियम), बाजरा, काला जीरा, ऑर्किड, बांस, चारा, लहसुन, अदरक, लाल अदरक, जिमीकंद, खीरा आदी के लिए यूनिवर्सिटी का प्रयास है.

काकड़ी, घंडियाली, मूली, ककोरा, तरडी, लिंगडू आदि और पहाड़ी मवेशियों में भैंस (गोजरी) जानवरों में स्पीति घोड़ा, स्पीति गधा, रामपुर-बुशैहर और गद्दी भेड़, चीगू और गद्दी बकरियां, हिमाचली याक, बर्फीली ट्राउट, गोल्डन महासीर, कार्प और हिल स्ट्रीम फिश आदि ने जीआई के लिए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का प्रयास है. इस बारे में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रो. हरिन्द्र कुमार चौधरी ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में खानपान और परिधानो में बहुत विविधता है जैसे कि लोगों के पहनने के कपड़ो उसमें भी बहुत विविधता है हमारे पहाड़ों में जैसे पट्टू, दोड़ू बनते हैं एक अद्भुत एक ऐसा परिधान है कि अगर व्यक्ति ग्लेशियर में भी बैठा हो तो उसे ठंड नहीं लग सकती.

इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में विविधता से भरे आभूषणों को लोग इस्तेमाल करते हैं. जीआई करने के लिए हमारा कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर सजग है. उन्होंने कहा कि इसके लिए जीआई टास्क फोर्स बनाई है और इन अलग-अलग समुदाय को इनकी जीआई फाइल कर रहे हैं और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी रजिस्ट्रेशन कर रहे हैं ताकि पूरे विश्व को हम हिमाचल की प्रदेश की इस विविधता को इस शक्ति को प्रदर्शित कर सके. (Agricultural University Palampur) (Himachal traditional ornaments and crops) (GI for traditional ornaments and crop in Himachal)
ये भी पढ़ें: नौणी विवि एवं अनुसंधान केंद्रों पर फलदार पौधों की बिक्री शुरू, पहले दिन बिके 31 हजार से अधिक पौधे

धर्मशाला: कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने प्रदेश की महत्वपूर्ण फसलों के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) प्राप्त करने के लिए सक्रिय प्रयास शुरू कर दिए हैं. फसलों के साथ पारंपरिक गहनों को लेकर भी जीआई प्राप्त की पहल की जा रही है ताकि उसका लाभ किसानों के साथ ग्रामीणों को भी मिले. गौर रहे कि फसलों और उत्पादों के अन्य मालिकों को इन विशिष्ट उत्पादों पर विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं. इन्हें बेचकर भरपूर लाभ प्राप्त होता है. (Agricultural University Palampur now try to get GI) (GI for Himachal traditional ornaments and crops)

जानकारी के अनुसार प्रदेश के भरमौर, बरोट और किन्नौर के राजमाश, करसोग, शिलाई और चंबा क्षेत्र की उड़दबीन, करसोग की कुल्थी, कुल्लू, कांगड़ा और मंडी क्षेत्र के लाल चावल, चंबा की चूख, चंबा के प्राचीन आभूषण जानवरों की नस्लें और उनके उत्पाद आदि को भौगोलिक संकेत (जीआई) के लिए चुना गया है. गद्दी महिलाओं के अनूठे पारंपरिक आभूषण जैसे चाक और चिड़ी, चंद्रहार और चंपाकली, लौंग, कोका, तिल्ली और बालू, बुंदे, झुमके, कांटे, लटकनीय तुंगनी और कनफुल, गोजरू, टोके, कंगनू, स्नंगु, सिंघी और परी.

भरमौर क्षेत्र से सफेद शहद जैसे औषधीय उत्पाद लाहौल स्पीति और किन्नौर से एफिड्स हनी ड्यू, जंगली मशरूम (कीड़ाजड़ी), स्पीति छरमा और ऊनी उत्पाद जैसे चारखानी पट्टू, डोहरू, पूडे और चीगू बकरी से पश्मीना आदि को जीआई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. चावल, जौ, राजमाश, कुल्थी, माह (उड़द) जैसी अच्छी फसलें हैं तो संभावित फसलें जैसे कुट्टू, चौलाई, बाथू (चेनोपोडियम), बाजरा, काला जीरा, ऑर्किड, बांस, चारा, लहसुन, अदरक, लाल अदरक, जिमीकंद, खीरा आदी के लिए यूनिवर्सिटी का प्रयास है.

काकड़ी, घंडियाली, मूली, ककोरा, तरडी, लिंगडू आदि और पहाड़ी मवेशियों में भैंस (गोजरी) जानवरों में स्पीति घोड़ा, स्पीति गधा, रामपुर-बुशैहर और गद्दी भेड़, चीगू और गद्दी बकरियां, हिमाचली याक, बर्फीली ट्राउट, गोल्डन महासीर, कार्प और हिल स्ट्रीम फिश आदि ने जीआई के लिए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का प्रयास है. इस बारे में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रो. हरिन्द्र कुमार चौधरी ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में खानपान और परिधानो में बहुत विविधता है जैसे कि लोगों के पहनने के कपड़ो उसमें भी बहुत विविधता है हमारे पहाड़ों में जैसे पट्टू, दोड़ू बनते हैं एक अद्भुत एक ऐसा परिधान है कि अगर व्यक्ति ग्लेशियर में भी बैठा हो तो उसे ठंड नहीं लग सकती.

इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में विविधता से भरे आभूषणों को लोग इस्तेमाल करते हैं. जीआई करने के लिए हमारा कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर सजग है. उन्होंने कहा कि इसके लिए जीआई टास्क फोर्स बनाई है और इन अलग-अलग समुदाय को इनकी जीआई फाइल कर रहे हैं और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी रजिस्ट्रेशन कर रहे हैं ताकि पूरे विश्व को हम हिमाचल की प्रदेश की इस विविधता को इस शक्ति को प्रदर्शित कर सके. (Agricultural University Palampur) (Himachal traditional ornaments and crops) (GI for traditional ornaments and crop in Himachal)
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