ETV Bharat / state

अद्भुत हिमाचल: मुगल सम्राट ने चढ़ाया था सोने का छत्र, मां ज्वाला ने ऐसे तोड़ा था अभिमान - जोतां वाली का मंदिर

ईटीवी भारत की खास सीरीज 'अद्भुत हिमाचल' में आज हम आपको बताएंगे कि कैसे मुगल सम्राट का ज्वालाजी मंदिर में टुटा था अभिमान. माता की शक्ति का एहसास होते ही नंगे पांव सोने का छत्र लेकर ज्वालाजी मंदिर में पहुंचा था मुगल सम्राट अकबर.

Adhbhut himachal
अद्भुत हिमाचल: मुगल सम्राट ने चढ़ाया था सोने का छत्र, मां ज्वाला ने ऐसे तोड़ा था अभिमान
author img

By

Published : Dec 6, 2019, 8:00 AM IST

कांगड़ा: देश के शक्तिपीठों में शामिल ज्वालामुखी का मंदिर अपने आप में अनोखा है. प्रदेश के इस शक्तिपीठ की मान्यता 52 शक्तिपीठों में सर्वोपरि मानी गई है. ज्वालामुखी मंदिर को जोतां वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है. मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी. यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है, क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है.

यहां पर धरती से नौ अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रहीं है, जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है. इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है.

अद्भुत हिमाचल

यहां टूटा था अकबर का अहंकार
मां के इस मंदिर को लेकर एक कथा काफी प्रचिलत है. कहा जाता है कि सम्राट अकबर जब इस जगह पर आए तो उन्हें यहां पर ध्यानू नाम का व्यक्ति मिला. ध्यानू देवी का परम भक्त था. ध्यानू ने अकबर को ज्योतियों की महिमा के बारे में बताया, लेकिन अकबर उसकी बात न मान कर उस पर हंसने लगा.

अहंकार में आकर अकबर ने अपने सैनिकों को यहां जल रही नौ ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने को कहा. पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ. यह देखकर ध्यानू ने अकबर से कहा कि देवी मां तो मृत मनुष्य को भी जीवित कर देती हैं. ऐसा कहते हुए ध्यानू ने अपना सिर काट कर देवी मां को भेंट कर दिया, तभी अचानक वहां मौजूद ज्वालाओं का प्रकाश बढ़ा और ध्यानू का कटा हुआ सिर अपने आप जुड़ गया और वह फिर से जीवित हो गया.

ये भी पढ़ें: अद्भुत हिमाचल: गद्दी समुदाय की अनूठी परंपरा, लिखित समझौते के बाद नहीं टल सकती शादी

यह देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया. कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया था. अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अज्ञात धातु में बदल गया था. वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है.

छत्र किस धातु का है किसी को नहीं पता
बादशाह अकबर की ओर से चढ़ाया गया छत्र आखिर किस धातु में बदल गया. इसकी जांच के लिए साठ के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर यहां वैज्ञानिकों का एक दल पहुंचा. इसके बाद छत्र के एक हिस्से का वैज्ञानिक परीक्षण किया गया. वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर इसे किसी भी धातु की श्रेणी में नहीं माना गया है.

दोबारा परीक्षण नहीं कराएगा मंदिर प्रशासन
मंदिर अधिकारी विशन दास शर्मा कहते हैं कि मंदिर प्रशासन इसका दोबारा परीक्षण नहीं करा सकता. मान्यता है कि अकबर के घमंड को तोड़ने के लिए ही देवी ने अपनी शक्ति से सोने के छत्र को अज्ञात धातु में बदल दिया था.

बहरहाल आज भी यह छत्र यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रहस्य का विषय बना हुआ है. जो भी श्रद्धालु देवी मां के इस शक्तिपीठ में आता है वो अकबर के छत्र देखे बगैर अपनी यात्रा को अधूरा ही मानता है. आज भी छत्र मंदिर परिसर के साथ लगते मोदी भवन में रखा हुआ है.

ये भी पढ़ें: हैदराबाद गैंगरेप-मर्डर : एनकाउंटर में चारों आरोपी ढेर

कांगड़ा: देश के शक्तिपीठों में शामिल ज्वालामुखी का मंदिर अपने आप में अनोखा है. प्रदेश के इस शक्तिपीठ की मान्यता 52 शक्तिपीठों में सर्वोपरि मानी गई है. ज्वालामुखी मंदिर को जोतां वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है. मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी. यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है, क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है.

यहां पर धरती से नौ अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रहीं है, जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है. इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है.

अद्भुत हिमाचल

यहां टूटा था अकबर का अहंकार
मां के इस मंदिर को लेकर एक कथा काफी प्रचिलत है. कहा जाता है कि सम्राट अकबर जब इस जगह पर आए तो उन्हें यहां पर ध्यानू नाम का व्यक्ति मिला. ध्यानू देवी का परम भक्त था. ध्यानू ने अकबर को ज्योतियों की महिमा के बारे में बताया, लेकिन अकबर उसकी बात न मान कर उस पर हंसने लगा.

अहंकार में आकर अकबर ने अपने सैनिकों को यहां जल रही नौ ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने को कहा. पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ. यह देखकर ध्यानू ने अकबर से कहा कि देवी मां तो मृत मनुष्य को भी जीवित कर देती हैं. ऐसा कहते हुए ध्यानू ने अपना सिर काट कर देवी मां को भेंट कर दिया, तभी अचानक वहां मौजूद ज्वालाओं का प्रकाश बढ़ा और ध्यानू का कटा हुआ सिर अपने आप जुड़ गया और वह फिर से जीवित हो गया.

ये भी पढ़ें: अद्भुत हिमाचल: गद्दी समुदाय की अनूठी परंपरा, लिखित समझौते के बाद नहीं टल सकती शादी

यह देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया. कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया था. अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अज्ञात धातु में बदल गया था. वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है.

छत्र किस धातु का है किसी को नहीं पता
बादशाह अकबर की ओर से चढ़ाया गया छत्र आखिर किस धातु में बदल गया. इसकी जांच के लिए साठ के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर यहां वैज्ञानिकों का एक दल पहुंचा. इसके बाद छत्र के एक हिस्से का वैज्ञानिक परीक्षण किया गया. वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर इसे किसी भी धातु की श्रेणी में नहीं माना गया है.

दोबारा परीक्षण नहीं कराएगा मंदिर प्रशासन
मंदिर अधिकारी विशन दास शर्मा कहते हैं कि मंदिर प्रशासन इसका दोबारा परीक्षण नहीं करा सकता. मान्यता है कि अकबर के घमंड को तोड़ने के लिए ही देवी ने अपनी शक्ति से सोने के छत्र को अज्ञात धातु में बदल दिया था.

बहरहाल आज भी यह छत्र यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रहस्य का विषय बना हुआ है. जो भी श्रद्धालु देवी मां के इस शक्तिपीठ में आता है वो अकबर के छत्र देखे बगैर अपनी यात्रा को अधूरा ही मानता है. आज भी छत्र मंदिर परिसर के साथ लगते मोदी भवन में रखा हुआ है.

ये भी पढ़ें: हैदराबाद गैंगरेप-मर्डर : एनकाउंटर में चारों आरोपी ढेर

Intro:Body:

kmjk,


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.