कांगड़ा: हिमाचल की कांगड़ा घाटी में 115 साल पहले आज के दिन विनाशकारी भूकंप आया था. इस भूकंप ने कांगड़ा के आसपास के इलाकों में जमकर तबाही मचाई थी. ये भूकंप हजारों जिंदगियां लील गया था. एक आंकड़े के मुताबिक करीब 20 हजार लोगों की मौतें हुई थी.
सिर्फ दो मिनट के लिए आए भूकंप ने हजारों लोगों को बेघर कर दिया. रिएक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 7.8 मैग्नीट्यूड मापी गई थी. महज चंद सेकेंड की कंपन में कई ऐतिहासिक भवनों का नामोनिशां मिट गया. मौत के सन्नाटे और अनहोनी की आशंका के अलावा यहां कुछ नहीं बचा था.
बताया जाता है कि उस दौरान एक भी मकान ऐसा नहीं बचा था जहां दोबारा से जिंदगी शुरू की जा सके. 4 अप्रैल 1905 की सुबह करीब छह बजे भूकंप के दो झटकों ने कांगड़ा का नक्शा ही बदल दिया. उस समय कांगड़ा की आबादी बहुत कम थी. बावजूद इसके हजारों लोगों की मौत हो गई थी. उस समय कांगड़ा जालंधर डिवीजन का भाग था. यहां हुई तबाही को लेकर लाहौर से मदद भेजी गई थी.
अंग्रेजी हुकूमत होने के कारण बचाव कार्य के लिए भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. उस समय पूरे देश से करीब साढ़े 13 लाख रुपये राहत राशि के तौर पर एकत्रित किए गए थे. भूकंप का प्रमुख केंद्र धौलाधार पर्वत श्रेणियों से बैजनाथ तक था.
भूकंप की चपेट में ज्वालाजी और नादौन तक का क्षेत्र शामिल था. कंगड़ा में ऐतिहासिक धरोहरों को इस भूकंप में काफी नुकसान पहुंचा था. धर्मशाला की सारी इमारतें जमींदोज हो गई थीं. सारे मंदिर पूरी तरह से तबाह हो गए. हर तरफ सुनाई दे रहीं थी तो मात्र चीख-पुकारें. शायद ही मानव जाति को इससे पहले चंद सेकेंडों में इतना नुकसान पहुंचा हो.
कांगड़ा के आसपास की सड़कें मलबे में तब्दील हो गई थीं. कांगड़ा को दोबारा पटरी पर लाने के लिए सालों लग गए. आज भी कांगड़ा का ऐतिहासिक किला उस विनाशकारी भूकंप की गवाही देता है.