ETV Bharat / state

प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों के एडमिशन की हकीकत, सरकारी योजना नाकाफी - implementation of right to education

हमीरपुर जिला के निजी स्कूलों में शिक्षा के अधिकार के तहत गरीब वर्ग के बच्चों को कितना लाभा मिल रहा है. इसी मुद्दे पर जिला के निजी स्कूलों के प्रिंसीपल, प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशक हमीरपुर, उच्च शिक्षा उपनिदेशक हमीरपुर और उच्च शिक्षा उपनिदेशक हमीरपुर से खास बातीचत की गई. जिससे समजा जा सके कि इस गरीब बच्चों को इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ कैसे पहुंचाया जा सके.

right to education
शिक्षा का अधिकार
author img

By

Published : Sep 19, 2020, 8:55 PM IST

Updated : Sep 19, 2020, 10:06 PM IST

हमीरपुर: शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है. सरकार की इस योजना के दावों की हमीरपुर जिला में पोल खुल रही है.

हिमाचल प्रदेश का एजुकेशन हब कहे जाने वाले हमीरपुर जिला में 197 निजी स्कूल हैं, लेकिन इन स्कूलों में से महज 36 स्कूलों ने ही गरीब बच्चों को अपने स्कूलों में दाखिला दिया है.

यह सभी स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों के हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों की अगर बात की जाए तो यहां पर गरीब बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला ना के बराबर ही है. एजुकेशन हब कहे जाने वाले हमीरपुर जिला के यह हालात हैं, तो हिमाचल के अन्य जिलों के क्या हालात होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

वीडियो.

निजी स्कूल के प्रिंसीपलों ने सरकार से की शर्तों में बदलाव करने की अपील

वहीं, हमीरपुर के प्राइवेट सकूलों के प्रिंसीपल का कहना है कि इस योजना के तहत बच्चों के कम ही एडमिशन मिल रही है. शिक्षा का अधिकार कानून की जो शर्ते हैं, उसके तहत शहरी क्षेत्रों के स्कूलों को गरीब बच्चे मिल पाना मुश्किल है.

खासकर सरकार की जो तीन किलोमीटर के दायरे की शर्त जो शिक्षा के अधिकार के कानून में है, उस वजह से गरीब तबके के बच्चों को स्कूल में दाखिला देना मुश्किल हो रहा है. इस दायरे में शहरी क्षेत्र में सरकारी स्कूल भी हैं. ऐसे में प्राइवेट स्कूलों की तरफ अभिभावक कम ही रुख करते हैं.

बावजूद इसके वह अपने स्कूल में बिना सरकार की मदद के ही गरीब बच्चों को हर कक्षा में निशुल्क शिक्षा प्रदान कर रही हैं. साथ ही सरकार की तरफ से जो बजट इस योजना के तहत प्राइवेट स्कूलों के लिए स्वीकृत किया जाता है उस ग्रांट को जारी करने के लिए विभाग की तरफ से काफी समय लग जाता है.

हमीरपुर जिले में शिक्षा का अधिकार की पालना को लेकर प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशक हमीरपुर बीके नड्डा का कहना है कि हमीरपुर जिला में पहली से आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्रदान करने वाले 197 प्राइवेट स्कूल हैं.

36 स्कूलों ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करने की योजना के तहत आवेदन किया था. पिछले शैक्षणिक सत्र में जिन स्कूलों के 102 बच्चों को 1,71,640 रुपये की ग्रांट जारी की जा चुकी है.

कोरोना महामारी के कारण इस साल नहीं शुरू हुई यह प्रक्रिया

वहीं, कोरोना संकट की वजह से इस बार यह प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है. जैसे ही प्रक्रिया शुरू होगी सभी निजी स्कूलों को इस बारे में निर्देश जारी किए जाएंगे उन्होंने कहा कि जो स्कूल इस योजना के तहत आवेदन नहीं करते हैं उनसे लिखित में जवाब भी मांगा जाता है.

उच्च शिक्षा उपनिदेशक हमीरपुर दिलबर सिंह का कहना है कि लोगों को इस योजना के बारे में लाभान्वित करने के लिए जागरूक भी किया जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में इस विषय में चर्चा करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश प्रारंभिक शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुए ज्वाइंट डायरेक्टर केडी शर्मा ने भी अपने अनुभव के मुताबिक कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून की शर्तों की वजह से गरीब बच्चों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. इस योजना में ऐसे बदलाव करने की जरूरत है ताकि नियम और शर्तों को निजी स्कूल भी पूरा कर सकें. अधिकतर प्राइवेट स्कूल शहरी क्षेत्रों में होते हैं जिस वजह से क्षेत्र की सीमा की शर्त को पूरा करना मुश्किल है.

राइट टू एजुकेशन पर निजी स्कूलों के तर्क

कुल मिलाकर राइट टू एजुकेशन पर निजी स्कूलों की ओर से यह तर्क दिया गया कि शहरी इलाकों में ऐसे बच्चे ही नहीं मिलते जिसे इन योजनाओं के तहत लाभ मिल सके और अगर ऐसी बच्चे मिल भी जाएं तो, उनके उपर खर्च होने वाली राशि का भुगतान होने में ही सराकार की ओर से लगभग एक साल का समय लग जाता है.

दूसरी ओर लोगों इस योजना के बारे में लोग जागरुक भी नहीं है, जिस वजह से हिमाचल प्रदेश का गरीब वर्ग इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहा है. साथी निजी स्कूलों की ओर से भी इस योजना के प्रचार के बारे में ज्यादा देखने को नहीं मिलता है. सरकार को इस योजना के बारे में फिर से सुधार करने होंगे, ताकि जरूरतमंद लोगों को इसका पूरी तरहा से लाभ मिल सके.

पढ़ें: हिमाचल के हर जिले में चाहिए 'धौलाधार क्लीनर्स' जैसी सोच, देखें कैसे शुरू हुई इनकी कहानी

प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों के एडमिशन की हकीकत, सरकारी योजना नाकाफी

हमीरपुर: शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है. सरकार की इस योजना के दावों की हमीरपुर जिला में पोल खुल रही है.

हिमाचल प्रदेश का एजुकेशन हब कहे जाने वाले हमीरपुर जिला में 197 निजी स्कूल हैं, लेकिन इन स्कूलों में से महज 36 स्कूलों ने ही गरीब बच्चों को अपने स्कूलों में दाखिला दिया है.

यह सभी स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों के हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों की अगर बात की जाए तो यहां पर गरीब बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला ना के बराबर ही है. एजुकेशन हब कहे जाने वाले हमीरपुर जिला के यह हालात हैं, तो हिमाचल के अन्य जिलों के क्या हालात होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

वीडियो.

निजी स्कूल के प्रिंसीपलों ने सरकार से की शर्तों में बदलाव करने की अपील

वहीं, हमीरपुर के प्राइवेट सकूलों के प्रिंसीपल का कहना है कि इस योजना के तहत बच्चों के कम ही एडमिशन मिल रही है. शिक्षा का अधिकार कानून की जो शर्ते हैं, उसके तहत शहरी क्षेत्रों के स्कूलों को गरीब बच्चे मिल पाना मुश्किल है.

खासकर सरकार की जो तीन किलोमीटर के दायरे की शर्त जो शिक्षा के अधिकार के कानून में है, उस वजह से गरीब तबके के बच्चों को स्कूल में दाखिला देना मुश्किल हो रहा है. इस दायरे में शहरी क्षेत्र में सरकारी स्कूल भी हैं. ऐसे में प्राइवेट स्कूलों की तरफ अभिभावक कम ही रुख करते हैं.

बावजूद इसके वह अपने स्कूल में बिना सरकार की मदद के ही गरीब बच्चों को हर कक्षा में निशुल्क शिक्षा प्रदान कर रही हैं. साथ ही सरकार की तरफ से जो बजट इस योजना के तहत प्राइवेट स्कूलों के लिए स्वीकृत किया जाता है उस ग्रांट को जारी करने के लिए विभाग की तरफ से काफी समय लग जाता है.

हमीरपुर जिले में शिक्षा का अधिकार की पालना को लेकर प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशक हमीरपुर बीके नड्डा का कहना है कि हमीरपुर जिला में पहली से आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्रदान करने वाले 197 प्राइवेट स्कूल हैं.

36 स्कूलों ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करने की योजना के तहत आवेदन किया था. पिछले शैक्षणिक सत्र में जिन स्कूलों के 102 बच्चों को 1,71,640 रुपये की ग्रांट जारी की जा चुकी है.

कोरोना महामारी के कारण इस साल नहीं शुरू हुई यह प्रक्रिया

वहीं, कोरोना संकट की वजह से इस बार यह प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है. जैसे ही प्रक्रिया शुरू होगी सभी निजी स्कूलों को इस बारे में निर्देश जारी किए जाएंगे उन्होंने कहा कि जो स्कूल इस योजना के तहत आवेदन नहीं करते हैं उनसे लिखित में जवाब भी मांगा जाता है.

उच्च शिक्षा उपनिदेशक हमीरपुर दिलबर सिंह का कहना है कि लोगों को इस योजना के बारे में लाभान्वित करने के लिए जागरूक भी किया जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में इस विषय में चर्चा करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश प्रारंभिक शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुए ज्वाइंट डायरेक्टर केडी शर्मा ने भी अपने अनुभव के मुताबिक कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून की शर्तों की वजह से गरीब बच्चों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. इस योजना में ऐसे बदलाव करने की जरूरत है ताकि नियम और शर्तों को निजी स्कूल भी पूरा कर सकें. अधिकतर प्राइवेट स्कूल शहरी क्षेत्रों में होते हैं जिस वजह से क्षेत्र की सीमा की शर्त को पूरा करना मुश्किल है.

राइट टू एजुकेशन पर निजी स्कूलों के तर्क

कुल मिलाकर राइट टू एजुकेशन पर निजी स्कूलों की ओर से यह तर्क दिया गया कि शहरी इलाकों में ऐसे बच्चे ही नहीं मिलते जिसे इन योजनाओं के तहत लाभ मिल सके और अगर ऐसी बच्चे मिल भी जाएं तो, उनके उपर खर्च होने वाली राशि का भुगतान होने में ही सराकार की ओर से लगभग एक साल का समय लग जाता है.

दूसरी ओर लोगों इस योजना के बारे में लोग जागरुक भी नहीं है, जिस वजह से हिमाचल प्रदेश का गरीब वर्ग इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहा है. साथी निजी स्कूलों की ओर से भी इस योजना के प्रचार के बारे में ज्यादा देखने को नहीं मिलता है. सरकार को इस योजना के बारे में फिर से सुधार करने होंगे, ताकि जरूरतमंद लोगों को इसका पूरी तरहा से लाभ मिल सके.

पढ़ें: हिमाचल के हर जिले में चाहिए 'धौलाधार क्लीनर्स' जैसी सोच, देखें कैसे शुरू हुई इनकी कहानी

Last Updated : Sep 19, 2020, 10:06 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.