सुजानपुर: राज्य कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने जारी प्रेस बयान में कहा कि सरकार के आंतरिक खर्चों व कर्जों का हिसाब प्रदेश के भविष्य के लिए निरंतर खतरनाक होता जा रहा है. अब फिर प्रदेश सरकार 1000 करोड़ का नया कर्जा उठाने की तैयारी में है. उन्होंने कहा कि हैरानी कि बात यह है कि एक ओर प्रदेश सरकार केंद्र की उदारता के नगाड़े पीट रही है और दूसरी ओर प्रदेश को कर्ज के तले दबा रही है आलम यह है कि पुराने कर्ज की ब्याज वापसी के लिए नया कर्जा लिया जा रहा है.
बिगड़ रहा प्रदेश का वित्तिय संतुलन:
राणा ने कहा कि कर्ज के जाल में फंसे प्रदेश का वित्तिय संतुलन निरंतर बिगड़ रहा है. प्रदेश के गैर जरूरी कर्जों पर सत्ता पक्ष को आर्थिक संकट की चिंता व चर्चाओं के लिए फुरस्त ही नहीं है. उन्होंने कहा कि डबल इंजन की बात करने वाली बीजेपी अब लगातार राजनीतिक फिजूलखर्ची में फंसती व धंसती जा रही है.
प्रदेश की जनता से झूठ बोल रही सरकार:
राणा ने सवाल खड़ा किया है कि जब केंद्र सरकार लगातार राहत की बातें कर रही है तो ऐसे में कर्जा लेने की मजबूरी क्या है? क्या सरकार केंद्र की राहत पर प्रदेश की जनता से झूठ बोल रही है? उन्होंने कहा कि सरकार के बजट का हिसाब बता रहा है कि हर एक 100 रुपये की आमदनी में सेंटर टैक्स और स्टेट टैक्स से महज 32 रुपये मिल रहे हैं जबकि ग्रांट इन एड से 44 रुपये मिल रहे हैं.
कुल बजट का केवल 17 फीसदी हो रहा इस्तेमाल:
राणा ने कहा कि मौजूदा वर्ष की आमदनी के टैक्स रहित राजस्व में 5, लोक ऋण 16 और 3 रुपये जोड़कर राज्य सरकार चल रही है. ऐसे में सरकार 62 फीसदी खर्च सामान्य व सामाजिक सेवाओं पर बता रही है, जबकि कर्जे और ब्याज की अदायगी पर इस कुल बजट का केवल 17 फीसदी इस्तेमाल हो रहा है. अब ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस सरकार का ब्याज वापसी पर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बताई जा रही आमदनी का 17 फीसदी खर्च हो रहा है.
राज्य के भविष्य को दांव पर लगा रही सरकार:
राणा ने कहा कि सरकार जमीनी स्तर पर विकास के लिए क्या खर्च कर रही है. आधे से ज्यादा बजट पैंशन व कर्मचारियों के वेतन भत्तों पर खर्च हो जा रहा है जो करीब 55 फीसदी बनता है. सरकार के आंकड़ों पर ही अगर भरोसा करें तो करीब 75 फीसदी बजट उपरोक्त खर्चों पर ही हो रहा है. ऐसे में मात्र करीब 25 फीसदी बजट पर राज्य के विकास का दारोमदार टिका है. लगातार बढ़ रहे कर्ज के कारण राज्य के भविष्य को दांव पर लगाने वाली सरकार लगातार बढ़ते कर्जे के बोझ के प्रति संजीदा नहीं दिख रही है.