भोरंज/हमीरपुर: उपमंडल भोरंज के अंतर्गत ग्राम पंचायत टिकरी मिन्हासा की आंगनबाड़ी केंद्र सुंगरवाड़ में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया गया. इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरोज कुमारी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 11 अक्टूबर को मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 दिसंबर वर्ष 2011 को एक प्रस्ताव पारित करके अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. इस दिवस का उद्देश्य बालिकाओं के अधिकारों का संरक्षण और उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों की पहचान करना है.
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरोज कुमारी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का उद्देश्य है कि बालिकाओं के सामना की जाने वाली चुनौतियों को उजागर करना और उनकी आश्यकताओं को पहचानना है. साथ ही बालिकाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है और उनके मानवाधिकारों की पूर्ति में मदद करना शामिल है.
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का अर्थ वर्तमान पीढ़ी की लड़कियां कार्य क्षेत्र की दुनिया में प्रवेश करने की तैयारी कर रही हैं. इसका मतलब है कि बालिकाएं नवाचार और स्वचालन से बदल रही है. शिक्षित और कौशलपूर्ण कर्मचारियों की मांग अधिक है. मगर एक चौथाई युवा लोग, उनमें से अधिकतर महिलाएं वर्तमान में न तो नियोजित हैं और न ही शिक्षा या प्रशिक्षण में हैं.
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरोज कुमारी ने बताया कि प्राचीन काल में महिलाओं का बहुत सम्मान किया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे समय बितता गया इनकी स्थिति में काफी बदलाव आया. लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने लगी है. बालविवाह प्रथा, सती प्रथा, दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या आदि रुढ़िवादी प्रथायें काफी प्रचलित हुआ करती थी.
इसी कारण लड़कियों को शिक्षा, पोषण, कानूनी अधिकार और चिकित्सा जैसे अधिकारों से वंचित रखा जाने लगा. लेकिन अब इस आधुनिक युग में लड़कियों को उनके अधिकार देने और उनके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं. भारतीय सरकार भी इस दिशा में काम कर रही है और कई योजनाएं लागू कर रही है.
महिलाओं का सशक्तिकरण
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरोज कुमारी ने कहा कि अगले दशक में विकासशील देशों में रहने वाले 90 प्रतिशत से अधिक लोग अनौपचारिक क्षेत्र में काम करेंगे, जिसमें कम वेतन या वेतन न मिलना, दुर्व्यवहार और शोषण सामान्य हैं. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण और उन्हें उनके अधिकार प्रदान करने में मदद करना, ताकि दुनिया भर में उनके सामने आने वाली चुनौतियों का वे सामना कर सकें और अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें. साथ ही दुनिया भर में लड़कियों के प्रति होने वाली लैंगिक असामानताओं को खत्म करने के बारे में जागरूकता फैलाना भी है.
वहीं, आंगनबाड़ी केंद्र में आई युवती मृणाल ने बताया कि अभी भी बेटा और बेटी में भेदभाव किया जाता है. बेटे की पढ़ाई पर माता-पिता अधिक ध्यान देते हैं, वहीं बेटा जब बड़ा होकर अपने माता-पिता को छोड़ देता है तो बेटियां ही अपने माता-पिता की सेवा के लिए आगे आती हैं. इस भेद को मिटाना होगा, तभी खुशहाल समाज का निर्माण हो सकता है.
सरोज कुमारी ने बताया कि किशोरियों और महिलाओं को अपने खान पान का भी ध्यान रखना चाहिए. इसके साथ ही बीपीएल की बेटी के नाम पर 12,000 रुपये की एफडी भी करवाई जाती है और गर्भवती महिलाओं की प्रधानमंत्री मातृ बंदना योजना गर्भवती को पहले बच्चे पर 5,000 रुपये दिए जाते हैं.
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