चंबा: हिमाचल के जिला चंबा में कई नेशनल खिलाड़ी ऐसे हैं जो कभी हॉकी के जादूगर कहलाते थे. 1984 और नब्बे के दशक में चंबा में कई नेशनल खिलाड़ी थे, जिन्होंने अपने दम पर प्रतिभा का लोहा मनवाया था. कई बार इन्हें प्रदेश सरकार की ओर से सम्मानित भी किया गया, लेकिन सुविधाओं के अभाव की वजह इन्हें अपना करियर छोड़ दिया. आज हालात ऐसे हैं कि नेशनल खेल चुके कई खिलाड़ी पकौड़े बेचकर अपना गुजर बसर कर रहे हैं.
दरअसल सरकार और खेल संघों ने इन खिलाड़ियों की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दिया. सुविधाओं के अभाव में इन चैंपियन खिलाड़ियों को बेहतर मौका तक नहीं मिल सका. नब्बे के दशक के ये नेशनल चैंपियन गुमनाम हो गए और किसी ने हाल तक नहीं जाना. एक दौर ऐसा था जब इनकी हॉकी के आगे प्रदेश के अन्य खिलाड़ी नहीं टिक पाते थे और आठ बार चंबा जिला को प्रदेश में चैंपियन बनाया. आज इन खिलाड़ियों की हालत ऐसी हो चुकी है कि कोई पूछने वाला भी नहीं है.
जब इतना बेहतर करने के बाद भी खेल से इन नेशनल खिलाड़ियों को कुछ नहीं मिला, तो इन लोगों ने मजबूरन अपने परिवार को पालने के लिए मछली तलने और पकौड़े बेचने का कारोबार शुरू किया. ये खिलाड़ी अब खेल से भी नफरत करने लगे हैं. अपने बच्चों को भी खेल से दूर रखा है, ताकि बच्चों का भविष्य भी उनकी तरह ना हो जाए.
नेशनल खेल चुके खिलाड़ी केवल मेहरा ने बताया कि हॉकी टीम जीती है, उससे उन्हें बहुत खुशी हुई है. मगर उनके दौर में सरकार और खेल संघों की तरफ से थोड़ी भी मदद मिली होती तो हम भी मेडल जीत कर लाते. केवल मेहरा ने कहा कि एक दौर हमारा भी था, जब हमारी हॉकी की नेशनल में तूती बोलती थी. जब हम 1984 और नब्बे के दशक तक नेशनल खेले तो हिमाचल में एक से बढ़कर एक खिलाड़ी हुआ करते थे, लेकिन हमें किसी ने सहयोग नहीं किया. जिसका खामियाजा हमें आज भुगतना पड़ रहा है.
वहीं, एक अन्य खिलाड़ी संजीव मेहरा ने कहा कि उन्होंने दो बार हॉकी में नेशनल खेले हैं, लेकिन उसके बाद सरकार और खेल संघ, किसी ने भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया. उन्होंने कहा कि एक समय में चंबा की हॉकी पूरे प्रदेश में अलग पहचान रखती थी. संजीव मेहरा ने कहा कि हमारा खेल तो अच्छा था, लेकिन खेल से जुड़े संघों ने हमारा सहयोग नहीं किया. जिसके चलते आज हमें मजबूरन अपने परिवार को चलाने के लिए मछली तलनी पड़ रही है.
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