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'साइलेंट बम' है एड्स! नहीं हो पाती इस बीमारी की आसानी से पहचान

एड्स 'साइलेंट बम' है. एआरटी सेंटर आईजीएमसी में 15 से 20 मरीज रोजाना ART दवा लेने आते हैं. इस बीमारी के लक्ष्ण भी आम बीमारियों जैसे ही होते हैं. एड्स से संक्रमित व्यक्ति सर्दी, जुकाम, बुखार जैसी सामान्य बीमारियों की चपेट में आना शुरू हो जाता है.

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Published : Apr 17, 2019, 10:58 PM IST

Updated : Apr 18, 2019, 3:32 PM IST

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शिमला: एड्स 'साइलेंट बम' है. इस बीमारी का आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता है. इस बीमारी के लक्ष्ण भी आम बीमारियों जैसे ही होते हैं. एड्स से संक्रमित व्यक्ति सर्दी, जुकाम, बुखार जैसी सामान्य बीमारियों की चपेट में आना शुरू हो जाता है. सामान्य बीमारियों के कारण एड्स की शुरुआती स्‍टेज में इसका पता नहीं चल पाता है और व्‍यक्ति को इलाज करवाने में देर हो जाती है. इसीलिए इसके शुरूआती लक्षणों के बारे में पता होना जरूरी है.

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सर्दी, जुकाम, बुखार होने पर ये सोचना भी बिल्कुल गलत है कि उसे एड्स हो गया है. एड्स की बीमारी की पहचान बिना टेस्ट के नहीं हो सकती. मन में दुविधा या शंका होने पर डॉक्टर की सलाह लेने चाहिए. एड्स एक प्रकार का संक्रमण है. इसका पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशियेंसी सिन्ड्रोम है..यह वायरस हमारे शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को कमजोर करता है. आम धारणा है कि व्यक्ति सीधा एडस का मरीज बन जाता है. एचआईवी संक्रमण की अंतिम अवस्था एड्स है. एचआईवी वायरस पहले इन्सान के शरीर में प्रवेश करता है. एचआईवी शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता पर आक्रमण करता है. इसके बाद ये धीरे-धीरे एड्स का रूप लेता है.

वर्तमान में विश्व में साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा लोग एचआईवी से ग्रस्त हैं. भारत में 2010 के बाद से एचआईवी संक्रमण के नए मामलों की संख्या में 46 फीसदी की कमी आई है. एड्स के कारण होने वाली मौतों की संख्या में भी 22 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. चिकित्सकों का कहना है कि कुछ सरल उपाय अपनाकर इस बीमारी पर लगाम लगाई जा सकती है.

आईजीएमसी शिमला के एआरटी सेंटर में एड्स से पीड़ित मरीजों की संख्या 704 है. हिमाचल में एड्स से पीड़ित मरीजों की संख्या 45 सौ के करीब है. आईजीएमसी के एआरटी सेंटर में पंजीकृत एड्स के 15 से 20 मरीज रोजाना दवा लेने आते हैं. आईजीएमसी के एआरटी सेंटर में विशेषज्ञ डॉ. विमल भारती ने जानकारी देते हुए बताया कि एड्स एक जानलेवा बीमारी है, लेकिन सही समय पर इलाज करवा कर इससे बचा जा सकता है. उन्होंने कहा कि आईजीएसमी में 704 मरीजों का इलाज चल रहा है जो एचआईवी से ग्रसित हैं.

डॉ. विमल भारती, विशेषज्ञ, एआरटी सेंटर

उनका कहना था कि लोगों में यह बीमारी असुरक्षित यौन संबंध या दूषित सिरिंज के इस्तेमाल से यह बीमारी होती है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में युवा नशे के लत में पड़ कर दूषित सिरिंज का इस्तेमाल कर लेते हैं जिससे भी बीमारी होती है.

समय पर आएं अस्पताल

डॉ. भारती ने कहा कि अधिकतर युवा एचआईवी होने की बात गुप्त रखते हैं. क्योंकि समाज मे अब भी लोग एचआईवी से ग्रसित मरीज के साथ भेदभाव करते हैं. लेकिन जब बीमारी बढ़ जाती है तब परिजन मरीज को अस्पातल लेकर आते हैं तब तक बीमारी बढ़ जाती है.

एड्स के लक्ष्ण

  • बुखार, पसीना आना, ठंड लगना
  • थकान
  • भूख कम लगना, वजन घटाना
  • मतली, उल्टी आना
  • गले में खराश रहना
  • दस्त होना
  • खांसी होना
  • सांसों लेने में समस्‍या
  • शरीर पर चकते होना
  • स्किन प्रोब्‍लम

ध्‍यान रहे कि यह लक्षण हमेशा रोगी की स्थिति पर निर्भर करते हैं. एचआईवी/एड्स का पता लगाने के लिए ब्‍लड टेस्‍ट निवार्य है.

एचआईवी और एड्स की पहचान

एचआईवी का सबसे आम टेस्ट एलिसा (ELISA) है. एक बार टेस्ट करवाने पर हो सकता है कि आपका एचआईवी संक्रमण पकड़ में न आए. इसके लिए आपको एक बार फिर टेस्ट करवाने की जरूरत भी पड़ सकती है. एलिसा, रेपिड और स्पॉट टेस्ट को रिपीट करवाने की जरूरत हमेशा होती है. एक ही पॉजिटिव टेस्ट संक्रमण की सही पुष्टि नहीं करता इसके लिए हमेशा दोबारा टेस्ट कराना चाहिए...

जिस तरह एक पॉजिटिव टेस्ट इस बात की पुष्टि नहीं करता कि संक्रमण है ठीक इसी तरह एक नेगेटिव टेस्ट भी इस बात की पूरी तरह पुष्टि नहीं करता कि संक्रमण नहीं है. अगर कोई व्यक्ति हालिया समय में आया है तो उसका संक्रमण पकड़ में नहीं आता, क्योंकि संक्रमण अपने विंडो अवधि यानी पनपने की स्थिति में हो सकता है. यह वायरस के रूप में पनपने के लिए करीब तीन से छह महीने का समय ले सकता है. विंडो अवधि 90 दिन की होती है. इस अवधि में व्यक्ति का संक्रण पकड़ में आ भी सकता है और नहीं भी.

संक्रमण की चपेट में आने के 90 दिन के बाद रिपोर्ट निगेटिव भी हो सकती है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं की व्यक्ति संक्रमित नहीं है. इसलिए संक्रमण की चपेट में आने के छह महीने के बाद एक बार फिर टेस्ट करवाएं. अगर छह महीने बाद व्यक्ति की रिपोर्ट निगेटिव आती है तो इसका मतलब उसे एचआईवी और एड्स नहीं है.

रिपोर्ट पॉजीटिव आने पर एआरटी सेंटर में अपना इलाज शुरू करवाएं. समय पर इलाज करवाने से संक्रमित व्यक्ति लंबा और स्वास्थ्य जीवन जी सकता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस बीमारी का अभी तक पूरा इलाज संभव नहीं हो पाया है.

एचआईवी ग्रसित मरीज से भेदभाव न करें

डॉक्टर भारती ने कहा कि एचआईवी ग्रसित मरीज को समाज अपनाएं और उनके साथ भेद भाव ना करें.

शिमला: एड्स 'साइलेंट बम' है. इस बीमारी का आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता है. इस बीमारी के लक्ष्ण भी आम बीमारियों जैसे ही होते हैं. एड्स से संक्रमित व्यक्ति सर्दी, जुकाम, बुखार जैसी सामान्य बीमारियों की चपेट में आना शुरू हो जाता है. सामान्य बीमारियों के कारण एड्स की शुरुआती स्‍टेज में इसका पता नहीं चल पाता है और व्‍यक्ति को इलाज करवाने में देर हो जाती है. इसीलिए इसके शुरूआती लक्षणों के बारे में पता होना जरूरी है.

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सर्दी, जुकाम, बुखार होने पर ये सोचना भी बिल्कुल गलत है कि उसे एड्स हो गया है. एड्स की बीमारी की पहचान बिना टेस्ट के नहीं हो सकती. मन में दुविधा या शंका होने पर डॉक्टर की सलाह लेने चाहिए. एड्स एक प्रकार का संक्रमण है. इसका पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशियेंसी सिन्ड्रोम है..यह वायरस हमारे शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को कमजोर करता है. आम धारणा है कि व्यक्ति सीधा एडस का मरीज बन जाता है. एचआईवी संक्रमण की अंतिम अवस्था एड्स है. एचआईवी वायरस पहले इन्सान के शरीर में प्रवेश करता है. एचआईवी शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता पर आक्रमण करता है. इसके बाद ये धीरे-धीरे एड्स का रूप लेता है.

वर्तमान में विश्व में साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा लोग एचआईवी से ग्रस्त हैं. भारत में 2010 के बाद से एचआईवी संक्रमण के नए मामलों की संख्या में 46 फीसदी की कमी आई है. एड्स के कारण होने वाली मौतों की संख्या में भी 22 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. चिकित्सकों का कहना है कि कुछ सरल उपाय अपनाकर इस बीमारी पर लगाम लगाई जा सकती है.

आईजीएमसी शिमला के एआरटी सेंटर में एड्स से पीड़ित मरीजों की संख्या 704 है. हिमाचल में एड्स से पीड़ित मरीजों की संख्या 45 सौ के करीब है. आईजीएमसी के एआरटी सेंटर में पंजीकृत एड्स के 15 से 20 मरीज रोजाना दवा लेने आते हैं. आईजीएमसी के एआरटी सेंटर में विशेषज्ञ डॉ. विमल भारती ने जानकारी देते हुए बताया कि एड्स एक जानलेवा बीमारी है, लेकिन सही समय पर इलाज करवा कर इससे बचा जा सकता है. उन्होंने कहा कि आईजीएसमी में 704 मरीजों का इलाज चल रहा है जो एचआईवी से ग्रसित हैं.

डॉ. विमल भारती, विशेषज्ञ, एआरटी सेंटर

उनका कहना था कि लोगों में यह बीमारी असुरक्षित यौन संबंध या दूषित सिरिंज के इस्तेमाल से यह बीमारी होती है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में युवा नशे के लत में पड़ कर दूषित सिरिंज का इस्तेमाल कर लेते हैं जिससे भी बीमारी होती है.

समय पर आएं अस्पताल

डॉ. भारती ने कहा कि अधिकतर युवा एचआईवी होने की बात गुप्त रखते हैं. क्योंकि समाज मे अब भी लोग एचआईवी से ग्रसित मरीज के साथ भेदभाव करते हैं. लेकिन जब बीमारी बढ़ जाती है तब परिजन मरीज को अस्पातल लेकर आते हैं तब तक बीमारी बढ़ जाती है.

एड्स के लक्ष्ण

  • बुखार, पसीना आना, ठंड लगना
  • थकान
  • भूख कम लगना, वजन घटाना
  • मतली, उल्टी आना
  • गले में खराश रहना
  • दस्त होना
  • खांसी होना
  • सांसों लेने में समस्‍या
  • शरीर पर चकते होना
  • स्किन प्रोब्‍लम

ध्‍यान रहे कि यह लक्षण हमेशा रोगी की स्थिति पर निर्भर करते हैं. एचआईवी/एड्स का पता लगाने के लिए ब्‍लड टेस्‍ट निवार्य है.

एचआईवी और एड्स की पहचान

एचआईवी का सबसे आम टेस्ट एलिसा (ELISA) है. एक बार टेस्ट करवाने पर हो सकता है कि आपका एचआईवी संक्रमण पकड़ में न आए. इसके लिए आपको एक बार फिर टेस्ट करवाने की जरूरत भी पड़ सकती है. एलिसा, रेपिड और स्पॉट टेस्ट को रिपीट करवाने की जरूरत हमेशा होती है. एक ही पॉजिटिव टेस्ट संक्रमण की सही पुष्टि नहीं करता इसके लिए हमेशा दोबारा टेस्ट कराना चाहिए...

जिस तरह एक पॉजिटिव टेस्ट इस बात की पुष्टि नहीं करता कि संक्रमण है ठीक इसी तरह एक नेगेटिव टेस्ट भी इस बात की पूरी तरह पुष्टि नहीं करता कि संक्रमण नहीं है. अगर कोई व्यक्ति हालिया समय में आया है तो उसका संक्रमण पकड़ में नहीं आता, क्योंकि संक्रमण अपने विंडो अवधि यानी पनपने की स्थिति में हो सकता है. यह वायरस के रूप में पनपने के लिए करीब तीन से छह महीने का समय ले सकता है. विंडो अवधि 90 दिन की होती है. इस अवधि में व्यक्ति का संक्रण पकड़ में आ भी सकता है और नहीं भी.

संक्रमण की चपेट में आने के 90 दिन के बाद रिपोर्ट निगेटिव भी हो सकती है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं की व्यक्ति संक्रमित नहीं है. इसलिए संक्रमण की चपेट में आने के छह महीने के बाद एक बार फिर टेस्ट करवाएं. अगर छह महीने बाद व्यक्ति की रिपोर्ट निगेटिव आती है तो इसका मतलब उसे एचआईवी और एड्स नहीं है.

रिपोर्ट पॉजीटिव आने पर एआरटी सेंटर में अपना इलाज शुरू करवाएं. समय पर इलाज करवाने से संक्रमित व्यक्ति लंबा और स्वास्थ्य जीवन जी सकता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस बीमारी का अभी तक पूरा इलाज संभव नहीं हो पाया है.

एचआईवी ग्रसित मरीज से भेदभाव न करें

डॉक्टर भारती ने कहा कि एचआईवी ग्रसित मरीज को समाज अपनाएं और उनके साथ भेद भाव ना करें.

Intro:साइलेंट बम्ब साबित हो रहा एड्स,अस्प्ताल प्रतिदिन पहुंच रहे 15मरीज।
शिमला।
प्रदेश में जानलेवा बीमारी एड्स साइलेंट बम साबित हो रहा है ।आईजीएसमी में प्रतिदिन 15 से 20 मरीज इलाज के लिए विभिन्न जगह से पहुंच रहे है।


Body:आइजीएमसी में एआरटी सेंटर में विशेषज्ञ डॉ विमल भारती ने जानकारी देते हुए बताया कि एड्स एक जानलेवा विमारी है लेकिन सही समय पर इलाज करवा कर इससे बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि आईजीएसमी में 750 मरीजो का इलाज चल रहा है जो एचआईवी से ग्रसित है ।उनका कहना था कि लोगो मे यह बीमारी असुरक्षित यौन सम्बन्ध या दूषित सीरेंज के इस्तेमाल से यह बीमारी होती है।उन्होंने कहा कि वर्तमान में युवा नशे के लत में पड़ कर दूषित सीरेंज का इस्तेमाल कर लेते है जिससे भी बीमारी होती है
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15से 20 मरीज प्रतिदिन पहुच रहे अस्प्ताल
डॉ विमल भारती ने बताया कि असपताल में सभी मरीजो का एचआईवी टेस्ट किया जाता है जिसमे 15 से 20 मरीज प्रतिदिन एचआईवी से ग्रसित पाए जा रहे है।

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समय पर आए अस्पताल।
डॉ भारती ने कहा कि अधिकतर युवा एचआईवी होने पर बात के गुप्त रखते है और किसी ओर को नही बताते क्यो की समाज मे अब भी लोग एचआईवी से ग्रसित मरीज के साथ भेदभाव करते है। लेकिन जब बीमारी बढ़ जाती है तब परिजन मरीज को।लेकर आते है तब बीमारी बढ़ जाती है।





Conclusion: डॉक्टर भारती ने कहा कि एचआईवी ग्रसित मरीज को समाज अपनाए ओर उनके साथ भेद भाव ना करे उन्होंने कहा कि मरीज दवाई को भी पूरा नही खाते जिससे एमडीआर से भी ग्रसित हो जाते है।
Last Updated : Apr 18, 2019, 3:32 PM IST
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