बिलासपुर: जिला बिलासपुर के पौराणिक मंदिर लगभग 60 के दशक से ज्यादा समय से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन इन मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए कोई भी सरकार की योजना सिरे नहीं चढ़ पा रही.
हर साल जलस्तर घटने पर मंदिर बाहर आते हैं, ताकि उन्हें कोई श्रेष्ठ स्थान मिल सके. मगर ऐसा आज तक नहीं हो पाया. पुराना बिलासपुर के लोगों ने खुद उजड़ कर भाखड़ा बांध के लिए जमीन दी. इसके बावजूद विस्थापितों को अभी तक उनका हक नहीं मिल पाया है.
ऐसे में बिलासपुर में न तो इंसान और न ही भगवान पूरी तरह बस पाए हैं. बिलासपुर में गोबिंदसागर में बरसात के दिनों में जलमग्न हुए मंदिरों के शिखर फिर दिखने शुरू हो गए हैं. पुराना बिलासपुर वर्ष 1960 में भाखड़ा बांध के कारण जलमग्न हो गया था. जिस स्थान पर आज पानी है, उस स्थान पर बिलासपुर शहर होता था. वहीं, आज प्राचीन संस्कृति को संजोए मंदिर जीर्णोद्धार व पुनर्स्थापन की राह देख रहे हैं.
प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर का जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा
भाषा एवं संस्कृति विभाग व पुरातत्व विभाग के संयुक्त तत्वाधान में इन मंदिरों को जलमग्न स्थान से हटाकर कुनाला में स्थान देने के लिए मुहिम चली थी. इसके लिए जगह भी देख ली गई थी. अब भूमि हस्तांतरण को लेकर कवायद चल रही है. इस कारण बिलासपुर की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर का जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है.
वहीं, बिलासपुर में विस्थापितों को जमीन उपलब्ध करवाने के लिए प्रशासन ने आवेदन मांगे थे. करीब 1100 विस्थापितों ने आवेदन किए थे. इनमें से करीब 500 से अधिक विस्थापितों को अभी तक जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी है. ये विस्थापित अभी तक बसने की राह देख रहे हैं और प्रशासन का द्वार खटखटा रहे हैं.
साढ़े तीन लाख की आबादी व 1167 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले बिलासपुर जिला का गठन एक जुलाई 1954 में हुआ था. जिला बिलासपुर 1960 से विस्थापन का दर्द झेल रहा है. अभी तक न तो मंदिर पुनर्स्थापित हो रहे हैं और न ही उन लोगों के साथ न्याय हुआ है जिनका सब कुछ जलमग्न हो चुका है.
ये मंदिर ले चुके हैं जल समाधि
मुरली मनोहर का मंदिर मठ खजूर के नाम से जाना जाता था. इस मठ के अधीन भी कई मंदिर थे. वे सब मंदिर झील की गाद में लुप्त हो चुके हैं. यह मंदिर कहलूर रियासत के 21वें राजा अभयसार चंद ने बनवाया था. तब कहलूर की राजधानी कोटकहलूर में थीं. सतलुज नदी के किनारे ही त्ररोग के मंदिर राधा-कृष्ण की मूर्तियां थी. पत्थर की मूर्ति पर सूर्य भगवान सवार थे. वे भी गाद में समा चुके हैं.
नहीं चढ़ रही सिरे कोई भी योजना
रंगनाथ मंदिर समूह में सती, काली, गणेश व हनुमान के मंदिर बने थे. अब इस मंदिर समूह के खंडहर भी टूट गए हैं. सरकार ने रंगनाथ मंदिर व अन्य कुछ मंदिरों के खंडहरों को नए नगर बिलासपुर में स्थापित करने की जो योजना बनाई है, लेकिन अभी वह सिरे नहीं चढ़ रही है.
राज परिवार देता साथ तो नए नगर में स्थानांतरित होते ये मंदिर
प्राप्त जानकारी के अनुसार जिला सांस्कृतिक परिषद बिलासपुर की 20-22 वर्ष पहले एक बैठक में परिषद के अध्यक्ष व तत्कालीन उपायुक्त के सामने झील में डूबे पुराने मंदिरों के खंडहरों को नए नगर में स्थानांतरित करने की बात उठी थी. रिटायर्ड जिला भाषा अधिकारी डॉ. अनिता शर्मा तब जिला सांस्कृतिक परिषद की सदस्य सचिव थी.
पुराने मंदिरों के खंडहरों को स्थानांतरित करने की जो बात उठी थी उसे आगे बढ़ाने में बिलासपुर के एक पूर्व उपायुक्त जगदीश शर्मा की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. उसके बाद ही भारतीय पुरातत्व विभाग की दिल्ली, चंडीगढ़ से विशेषज्ञों की टीमें यहां पर आकर सर्वेक्षण करती रही.
नए शहर में नए स्थान तलाशती रही. नगर के दनोह में बिलासपुर के राजा की जो भूमि है, उस स्थान का विशेषज्ञों ने चयन भी कर लिया था. वहीं, उक्त समय में सब सहमत थे. बात सिरे चढ़ गई लेकिन राज परिवार के सदस्यों ने भूमि देने से मना कर दिया और काम फिर से खटाई में चला गया और आज तक यह काम लटका हुआ है.
कहलूर रियासत में थे 220 मुख्य मंदिर
राजा के समय की एक रिपोर्ट के अनुसार कहलूर रियासत में 220 मुख्य मंदिर व अन्य धार्मिक स्थान थे. इनमें से केवल 99 मंदिरों को ही राजा के खजाने से नियमित पूजा-पाठ के लिए 5571 रुपये वार्षिक सहायता मिलती थी. जहां पर झील में डूबे पुराने बिलासपुर शहर की बात है तो यहां दो दर्जन से अधिक मंदिर, मस्जिद व गुरुदारे थे.
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