बिलासपुर: लोहड़ी को कुछ दिन ही बचे हैं. ऐसे में बच्चों से लेकर नौजवानों तक उसका खुमार चढ़ने लगा है. लोहड़ी गीत गाते हुए जगह-जगह अब बच्चों से लेकर नौजवान और बुजुर्ग सुबह-शाम मिल जाएंगे.
घुमारवी उपमंडल की तहत पड़ने वाली लुहारवीं पंचायत के गांव नैण में पारंपरिक तरीके से लोहड़ी को गाते हुए स्थानीय बच्चे आधुनिकता के इस दौर में पुराने त्योहारों की रंगत बरकरार रखकर संस्कृति को मजबूत कर रहे हैं.
उत्तर भारत में लोहड़ी पर्व को धूम-धूाम से मनाया जाता है. हिमाचल में अभी कुछ गांव है जिनमें लोहड़ी के पर्व को बिल्कुल पुराने तरीके से गाकर मनाया जाता है. नैण गांव के समाजसेवी मनीष ठाकुर ने बताया कि बच्चे जिस तरह से लोहड़ी गाकर घर-घर जा रहे हैं इससे ग्रामीण काफी कुश हैं. ये देखकर अच्छा लगता है कि अभी भी बच्चों में अपनी संस्कृति को संजोए रखने की ललक बरकरार है.
कब मनाते हैं लोहड़ी?
लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है. इसे मकर संक्राति के के एक दिन पहले मनाया जाता है. इसकी पूर्व संध्या पर रात्रि में खुले स्थान में परिवार और पड़ोसी लोग मिलकर आग जलाकर घेरा बनाकर बैठते हैं. इस दौरान पूजा-अर्चना कर मूंगफली, रेवड़ी आदि खाने की परंपरा चली आ रही है.