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बिलासपुर में लगातार कम होता जा रहा है मत्स्य उत्पादन, 5500 मछुआरों की रोजी पर संकट

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Published : May 18, 2021, 11:03 PM IST

कोरोना के लगातार बढ़ते संक्रमण से दुनियाभर में लोग ही परेशान नहीं हैं, बल्कि इससे जरूरी उत्पादन पर भी असर पड़ा है. अगर मत्स्य उत्पादन की बात करें तो ये दिनों दिन घटता ही जा रहा है. मत्स्य उत्पादन में औसतन देश भर में अग्रणी आंके जा चुके गोबिंद सागर में पिछले कुछ सालों से मत्स्य उत्पादन में कमी दर्ज की जा रही है.

Gobind Sagar Lake of Bilaspur, बिलासपुर की गोबिंद सागर झील
डिजाइन फोटो.

बिलासपुर: कोरोना के लगातार बढ़ते संक्रमण से दुनियाभर में लोग ही परेशान नहीं हैं, बल्कि इससे जरूरी उत्पादन पर भी असर पड़ा है. अगर मत्स्य उत्पादन की बात करें तो ये दिनों दिन घटता ही जा रहा है. इसके अलावा फोरलेन निर्माण कार्य के दौरान निकली मिट्टी को झील में डालने के अलावा कोलडैम बनने के बाद पानी की कम आपूर्ति और सिल्ट फिश प्रोडक्शन में कमी के बहुत बड़े कारण माने जा रहे हैं.

इसके चलते कुछ समय पहले मत्स्य विभाग की ओर से आयोजित राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार में चिंतन व मंथन के दौरान झील की स्टडी करवाए जाने का निर्णय लिया गया. कोलकाता संस्थान के विशेषज्ञ झील की स्टडी कर रहे हैं जिसके लिए विभाग के साथ संस्थान का करार हुआ है. एक साल तक स्टडी करने के बाद तैयार रिपोर्ट के आधार पर अगली कार्य योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा.

मत्स्य उत्पादन घटकर 800 मीट्रिक टन पर पहुंचा

उल्लेखनीय है कि मत्स्य उत्पादन में औसतन देश भर में अग्रणी आंके जा चुके गोबिंद सागर में पिछले कुछ सालों से मत्स्य उत्पादन में कमी दर्ज की जा रही है. 2012 से 2014 के बीच झील में मत्स्य उत्पादन लगभग 1300 मीट्रिक टन हुआ करता था जो कि बाद में घटकर 800 मीट्रिक टन पर आ पहुंचा. फिर हर साल घटता गया और स्थिति यह है कि अब यह आंकड़ा 300 मीट्रिक टन तक नीचे आ गया है.

वीडियो रिपोर्ट.

मत्स्य उत्पादन घटने का सीधा असर मत्स्य कारोबार पर पड़ा है और भविष्य के लिए मछुआरों की रोजी पर भी संकट खड़ा हुआ है. मत्स्य विशेषज्ञों की मानें तो कोलडैम बनने के बाद जलस्तर में हुई कमी की वजह से झील में मछली के ब्रीडिंग व फीडिंग ग्राउंड खत्म हो गए. रही सही कसर फोरलेन के निर्माण कार्य के दौरान झील में मलबा डंपिंग ने पूरी कर दी.

साइंटिफिक स्टडी करवाए जाने का आग्रह

झील में मत्स्य उत्पादन में भारी गिरावट से चिंतित मत्स्य विभाग ने रिसर्च करवाने का निर्णय लिया है. जिसके लिए कोलकाता संस्थान के प्रबंधन को पत्र लिखकर साइंटिफिक स्टडी करवाए जाने का आग्रह किया गया. प्रबंधन की ओर से रिसर्च किए जाने के लिए मंजूरी मिल चुकी है और टीम इसी महीने हिमाचल दौरे पर आकर स्टडी शुरू करेगी.

बताते चलें कि कोरोना संकट की वजह से हिमाचल का मछली कारोबार प्रभावित हो गया है. मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक और पंजाब सहित अन्य राज्य कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन की स्थिति में हैं जिसके चलते हिमाचली फिश को मार्केट नहीं मिल पा रही. इससे प्रदेश के जलाशयों में कार्यरत साढ़े पांच हजार मछुआरों के समक्ष रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है.

डेढ़ से दो मीट्रिक टन रेनबो ट्राउट भी बिक नहीं रही

अहम बात यह है कि कोलडैम में मत्स्य विभाग द्वारा तैयार की गई डेढ़ से दो मीट्रिक टन रेनबो ट्राउट भी बिक नहीं रही. जिला बिलासपुर में टैम्प्रेचर बढ़ रहा है जिसके चलते मछली अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएगी. प्रदेश में गोबिंद सागर, कोलडैम, पौंगडैम, रणजीत सागर डैम और चमेरा डैम बड़े जलाशय हैं. जहां बड़े स्तर पर मछली कारोबार होता है.

इन पांचों जलाशयों में 5500 के करीब मछुआरे कार्यरत हैं और सोसायटियों के माध्यम से मछली पकड़ने का कार्य करते हैं जिससे उनकी रोजी चलती है. पिछले साल की तरह इस बार भी कोरोना संकट ने मत्स्य कारोबार को बुरी तरह प्रभावित करके रख दिया है और ज्यादातर ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिए हैं, जिसकी वजह से मछुआरों की रोजी रोटी की चिंता बढ़ गई है.

मछली सप्लाई बाधित

हिमाचली मछली मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक व पंजाब राज्यों में सप्लाई होती है, लेकिन इन राज्यों में कोरोना से हालात खराब होने के चलते मछली सप्लाई बाधित है. वहीं, मत्स्य विभाग ने पहली बार केज में रेनबो ट्राउट का सफल प्रयोग किया है, लेकिन विडंबना यह है कि इस समय कसोल में उपलब्ध ढाई सौ से तीन सौ ग्राम वजन की डेढ़ से दो मीट्रिक टन ट्राउट को बाजार नहीं मिल पा रहा.

जिला का तापमान निरंतर बढ़ रहा है

ऐसे में अधिक दिनों तक मछली जीवित नहीं रह सकती, क्योंकि जिला का तापमान निरंतर बढ़ रहा है. इसके चलते विभाग चिंतित है, क्योंकि यदि जल्द ट्राउट मछली को मार्केट नहीं मिलती है तो बढ़ते तापमान के कारण मछली ज्यादातर समय तक जीवित नहीं रह सकेगी.

बड़े जलाशयों में मछली कारोबार प्रभावित हुआ है

मत्स्य विशेषज्ञों की मानें तो कोलडैम में मात्र छह माह में ही ट्राउट की सफल प्रोडक्शन की है, जबकि ठंडे क्षेत्रों में इस प्रोसेस के लिए 12 से 15 माह तक लग जाते हैं. फोन पर बातचीत के दौरान मत्स्य निदेशक सतपाल मैहता ने बताया कि बड़े जलाशयों में मछली कारोबार प्रभावित हुआ है चाहे गोबिंद सागर, कोलडैम, चमेरा डैम या रणजीत सागर डैम की बात हो.

बाहरी राज्यों में कोरोना की भयंकर स्थिति के चलते मछली सप्लाई बाधित हुई है जिसके चलते मछुआरों के समक्ष रोजी का संकट बढ़ा है. इसके अलावा कोलडैम में पहली बार सफल प्रयोग ट्राउट को बाजार नहीं मिल पा रहा. बढ़ते तापमान से मछली अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएगी.

पौंगडैम में फिशिंग का कार्य बंद

वहीं, कांगड़ा जिला के पौंगडैम में मछली पकड़ने का कार्य बंद है. जिला प्रशासन की ओर से कोरोना की बिगड़ती स्थिति की ध्यान में रखते हुए पौंगडैम में फिशिंग बंद करवा दी गई है.

ये भी पढ़ें- हिमाचल में भारी बारिश, अंधड़ और ओलावृष्टि की आशंका, ऑरेंज-येलो अलर्ट जारी

बिलासपुर: कोरोना के लगातार बढ़ते संक्रमण से दुनियाभर में लोग ही परेशान नहीं हैं, बल्कि इससे जरूरी उत्पादन पर भी असर पड़ा है. अगर मत्स्य उत्पादन की बात करें तो ये दिनों दिन घटता ही जा रहा है. इसके अलावा फोरलेन निर्माण कार्य के दौरान निकली मिट्टी को झील में डालने के अलावा कोलडैम बनने के बाद पानी की कम आपूर्ति और सिल्ट फिश प्रोडक्शन में कमी के बहुत बड़े कारण माने जा रहे हैं.

इसके चलते कुछ समय पहले मत्स्य विभाग की ओर से आयोजित राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार में चिंतन व मंथन के दौरान झील की स्टडी करवाए जाने का निर्णय लिया गया. कोलकाता संस्थान के विशेषज्ञ झील की स्टडी कर रहे हैं जिसके लिए विभाग के साथ संस्थान का करार हुआ है. एक साल तक स्टडी करने के बाद तैयार रिपोर्ट के आधार पर अगली कार्य योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा.

मत्स्य उत्पादन घटकर 800 मीट्रिक टन पर पहुंचा

उल्लेखनीय है कि मत्स्य उत्पादन में औसतन देश भर में अग्रणी आंके जा चुके गोबिंद सागर में पिछले कुछ सालों से मत्स्य उत्पादन में कमी दर्ज की जा रही है. 2012 से 2014 के बीच झील में मत्स्य उत्पादन लगभग 1300 मीट्रिक टन हुआ करता था जो कि बाद में घटकर 800 मीट्रिक टन पर आ पहुंचा. फिर हर साल घटता गया और स्थिति यह है कि अब यह आंकड़ा 300 मीट्रिक टन तक नीचे आ गया है.

वीडियो रिपोर्ट.

मत्स्य उत्पादन घटने का सीधा असर मत्स्य कारोबार पर पड़ा है और भविष्य के लिए मछुआरों की रोजी पर भी संकट खड़ा हुआ है. मत्स्य विशेषज्ञों की मानें तो कोलडैम बनने के बाद जलस्तर में हुई कमी की वजह से झील में मछली के ब्रीडिंग व फीडिंग ग्राउंड खत्म हो गए. रही सही कसर फोरलेन के निर्माण कार्य के दौरान झील में मलबा डंपिंग ने पूरी कर दी.

साइंटिफिक स्टडी करवाए जाने का आग्रह

झील में मत्स्य उत्पादन में भारी गिरावट से चिंतित मत्स्य विभाग ने रिसर्च करवाने का निर्णय लिया है. जिसके लिए कोलकाता संस्थान के प्रबंधन को पत्र लिखकर साइंटिफिक स्टडी करवाए जाने का आग्रह किया गया. प्रबंधन की ओर से रिसर्च किए जाने के लिए मंजूरी मिल चुकी है और टीम इसी महीने हिमाचल दौरे पर आकर स्टडी शुरू करेगी.

बताते चलें कि कोरोना संकट की वजह से हिमाचल का मछली कारोबार प्रभावित हो गया है. मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक और पंजाब सहित अन्य राज्य कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन की स्थिति में हैं जिसके चलते हिमाचली फिश को मार्केट नहीं मिल पा रही. इससे प्रदेश के जलाशयों में कार्यरत साढ़े पांच हजार मछुआरों के समक्ष रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है.

डेढ़ से दो मीट्रिक टन रेनबो ट्राउट भी बिक नहीं रही

अहम बात यह है कि कोलडैम में मत्स्य विभाग द्वारा तैयार की गई डेढ़ से दो मीट्रिक टन रेनबो ट्राउट भी बिक नहीं रही. जिला बिलासपुर में टैम्प्रेचर बढ़ रहा है जिसके चलते मछली अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएगी. प्रदेश में गोबिंद सागर, कोलडैम, पौंगडैम, रणजीत सागर डैम और चमेरा डैम बड़े जलाशय हैं. जहां बड़े स्तर पर मछली कारोबार होता है.

इन पांचों जलाशयों में 5500 के करीब मछुआरे कार्यरत हैं और सोसायटियों के माध्यम से मछली पकड़ने का कार्य करते हैं जिससे उनकी रोजी चलती है. पिछले साल की तरह इस बार भी कोरोना संकट ने मत्स्य कारोबार को बुरी तरह प्रभावित करके रख दिया है और ज्यादातर ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिए हैं, जिसकी वजह से मछुआरों की रोजी रोटी की चिंता बढ़ गई है.

मछली सप्लाई बाधित

हिमाचली मछली मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक व पंजाब राज्यों में सप्लाई होती है, लेकिन इन राज्यों में कोरोना से हालात खराब होने के चलते मछली सप्लाई बाधित है. वहीं, मत्स्य विभाग ने पहली बार केज में रेनबो ट्राउट का सफल प्रयोग किया है, लेकिन विडंबना यह है कि इस समय कसोल में उपलब्ध ढाई सौ से तीन सौ ग्राम वजन की डेढ़ से दो मीट्रिक टन ट्राउट को बाजार नहीं मिल पा रहा.

जिला का तापमान निरंतर बढ़ रहा है

ऐसे में अधिक दिनों तक मछली जीवित नहीं रह सकती, क्योंकि जिला का तापमान निरंतर बढ़ रहा है. इसके चलते विभाग चिंतित है, क्योंकि यदि जल्द ट्राउट मछली को मार्केट नहीं मिलती है तो बढ़ते तापमान के कारण मछली ज्यादातर समय तक जीवित नहीं रह सकेगी.

बड़े जलाशयों में मछली कारोबार प्रभावित हुआ है

मत्स्य विशेषज्ञों की मानें तो कोलडैम में मात्र छह माह में ही ट्राउट की सफल प्रोडक्शन की है, जबकि ठंडे क्षेत्रों में इस प्रोसेस के लिए 12 से 15 माह तक लग जाते हैं. फोन पर बातचीत के दौरान मत्स्य निदेशक सतपाल मैहता ने बताया कि बड़े जलाशयों में मछली कारोबार प्रभावित हुआ है चाहे गोबिंद सागर, कोलडैम, चमेरा डैम या रणजीत सागर डैम की बात हो.

बाहरी राज्यों में कोरोना की भयंकर स्थिति के चलते मछली सप्लाई बाधित हुई है जिसके चलते मछुआरों के समक्ष रोजी का संकट बढ़ा है. इसके अलावा कोलडैम में पहली बार सफल प्रयोग ट्राउट को बाजार नहीं मिल पा रहा. बढ़ते तापमान से मछली अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएगी.

पौंगडैम में फिशिंग का कार्य बंद

वहीं, कांगड़ा जिला के पौंगडैम में मछली पकड़ने का कार्य बंद है. जिला प्रशासन की ओर से कोरोना की बिगड़ती स्थिति की ध्यान में रखते हुए पौंगडैम में फिशिंग बंद करवा दी गई है.

ये भी पढ़ें- हिमाचल में भारी बारिश, अंधड़ और ओलावृष्टि की आशंका, ऑरेंज-येलो अलर्ट जारी

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