शिमला: हिमाचल का आर्थिक संकट इस कदर चर्चा में है कि पीएम नरेंद्र मोदी की चुनावी सभा में भी इसका जिक्र हुआ. हालांकि पीएम मोदी के बयान के बाद सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने स्थिति स्पष्ट की है कि हिमाचल में कोई आर्थिक संकट नहीं है, लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहते हैं. जब भी वित्तीय संकट की बात होती है तो बार-बार रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट की चर्चा होती है. वित्त आयोग की सिफारिश के बाद ये ग्रांट केंद्र सरकार से राज्यों को मिलती है. पांच साल के आंकड़ों पर गौर करें तो जो रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट वर्ष 2021-22 में 10249 करोड़ रुपए सालाना थी, वो अब अगले वित्तीय वर्ष में घटकर महज 3257 करोड़ रुपए रह जाएगी. यानी वर्ष 2021-22 में राज्य सरकार को हर महीने औसतन 854 करोड़ रुपए के करीब ग्रांट मिलती थी, वो अगले वित्तीय वर्ष में घटकर 271 करोड़ रुपए रह जाएगी. वहीं, सरकारी कर्मियों के हर महीने के वेतन की अदायगी के लिए 1200 करोड़ रुपए व पेंशन की अदायगी के लिए 800 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. इस तरह से मौजूदा रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट महज ऊंट के मुंह में जीरे के समान है.
ये है रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट का लेखा-जोखा
हिमाचल विधानसभा में सरकार की तरफ से रखे गए आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021-22 में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट 10249 करोड़ रुपए थी. फिर अगले वित्तीय वर्ष यानी 2022-23 में ये 9377 करोड़ रुपए रह गई. वर्ष 2023-24 में ये 8058 करोड़ रुपए थी और फिर 2024-25 यानी इस वित्त वर्ष में ये ग्रांट 6258 करोड़ रुपए है. अगले वित्तीय वर्ष में ये ग्रांट घटकर सिर्फ 3257 करोड़ रुपए रह जाएगी. इस वित्त वर्ष में राज्य को केंद्र से आरडीजी के रूप में 520 करोड़ रुपए महीने के मिलते हैं. अगले वित्त वर्ष में जब ये ग्रांट सिर्फ 3257 करोड़ रुपए सालाना होगी, तो स्थिति की कल्पना की जा सकती है.
वित्तीय वर्ष | रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (करोड़ रुपए में) |
2021-22 | 10,249 |
2022-23 | 9,377 |
2023-24 | 8,058 |
2024-25 | 6,258 |
राज्य के इतिहास में पहली बार वेतन-पेंशन में देरी
हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मियों को वेतन व पेंशनर्स को पेंशन का भुगतान पहली तारीख को होता आया है. इस बार सितंबर महीने में ऐसा हुआ कि वेतन पांच तारीख को और पेंशन दस तारीख को आई. कारण ये था कि राज्य के खजाने में एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपए की रकम नहीं थी. जब केंद्र से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के 520 करोड़ रुपए आए तो राज्य ने अन्य संसाधनों का प्रयोग करते हुए वेतन जारी किया. फिर केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के 740 करोड़ रुपए आए और सरकार ने 700 करोड़ रुपए कर्ज लिया तो दस तारीख को पेंशन दी गई. एक महीने में सरकार को टैक्स रेवेन्यू व नॉन टैक्स रेवेन्यू से अधिकतम 1200 करोड़ रुपए की आय होती है. इसके अलावा कर्ज से काम चलता है. अब दिसंबर तक सरकार के पास केवल 1617 करोड़ रुपए की लोन लिमिट बची है. यानी राज्य सरकार रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के 520 करोड़ रुपए के सहारे समय नहीं काट सकती है.
कर्ज लेकर भी नहीं दिया जा सकता डीए व एरियर
राज्य सरकार को अभी कर्मचारियों का 12 फीसदी डीए चुकाना है. स्थिति ये है कि कर्ज लेकर भी डीए या 9000 करोड़ रुपए के संशोधित वेतनमान के एरियर को नहीं चुकाया जा सकेगा. कर्ज की बात करें तो सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने 15 दिसंबर 2022 से लेकर 31 जुलाई 2024 तक कुल 21366 करोड़ रुपए का लोन लिया है. सरकार ने इस दौरान 5864 करोड़ रुपए का कर्ज वापस भी किया है. वहीं, सरकार ने जीपीएफ के अगेंस्ट पहली जनवरी 2023 से 31 जुलाई 2024 तक की अवधि में भी 2810 करोड़ रुपए का लोन लिया है. अगले साल मार्च महीने में हिमाचल सरकार पर 94 हजार करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज का अनुमान है. फिर अगले साल किसी भी समय राज्य के कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपए को छू सकता है. अगले साल रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट भी मामूली रह जाएगी. ऐसे में कर्ज के सहारे भी गाड़ी चलाना मुश्किल है.
पूर्व वित्त सचिव केआर भारती कहते हैं कि राज्य सरकार को अपने खर्च सीमित करने होंगे. भारती के अनुसार अभी ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं है कि एक पल में कहीं से भी करोड़ों रुपए का जुगाड़ हो जाए. दीर्घकालीन योजनाएं बनाने की जरूरत है. वाटर सेस वाला मामला भी सिरे नहीं चढ़ा. यदि बीबीएमबी परियोजनाओं का पैसा आ जाए और शानन प्रोजेक्ट वापस मिल जाए तो भी कुछ राहत मिल सकती है. वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि राज्य में आर्थिक संकट जैसी कोई चीज नहीं है. वर्ष 2027 तक सरकार हिमाचल को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सक्रियता से काम कर रही है. सीएम सुक्खू ने दावा किया कि 2027 तक हिमाचल आत्मनिर्भर होगा और वर्ष 2032 में देश का सबसे समृद्ध राज्य बनेगा. फिलहाल, सरकारी कर्मचारी और पेंशनर्स इस चिंता में हैं कि क्या उन्हें अपने वेतन व पेंशन के लिए फिर से क्रमश: 5 व 10 तारीख का इंतजार करना होगा?