बिलासपुर: जिला बिलासपुर शहर जहां पर न भगवान बस पाए और न ही लोग. बिलासपुर की गोबिंदसागर झील में जलमग्न ऐतिहासिक मंदिर पिछले कई दशकों से अस्तित्व की जंग लड़ते-लड़ते टूट कर खत्म हो रहे हैं. मंदिरों के पुर्नस्थापना की तमाम योजनाएं धरी की धरी रह गई और महज सर्वेक्षण तक ही सिमटी रहीं.
लोकसभा चुनाव हों या फिर विधानसभा के चुनाव, हरेक चुनावों में इन मंदिरों पर सियासत होती रही और राजनेता अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहे, लेकिन वादों व दावों के आगे किया किया कुछ नहीं. कभी पुराने शहर में आस्था के प्रतीक रहे इन सागर की गाद में अस्तित्व की जंग लड़ रहे एक दर्जन पौराणिक मंदिरों के लिए आज एक अदद ठिकाना नहीं मिल पा रहा है.
जानकारी के मुताबिक जिला प्रशासन की तरफ से यहां शहर में काले बाबा की कुटिया के पास बाकायदा तीस बीघा के आसपास जमीन भी चिन्हित कर ली गई है. एएसआई टीम द्वारा जलमग्र मंदिरों का सर्वे किया जाना है और सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ही इन मंदिरों को बाहर निकालकर उपयुक्त स्थान पर बसाने के लिए कार्ययोजना बन पाएगी.
जिला प्रशासन पिछले काफी समय से लगातार एएसआई के संपर्क में है और पत्राचार किया जा रहा है, लेकिन एएसआई की हर साल टीम यहां पर आती है और निरीक्षण करने के बाद यहां पर कुछ भी नहीं होता है. उल्लेखनीय है कि साठ के दशक में भाखड़ा बांध के अस्तित्व में आने के बाद पुराना बिलासपुर शहर भी जल के आगोश में समा गया था. 256 गांव पानी में डूबे थे और एक पूरी संस्कृति जल में समा गई थी.
इस दौरान रियासत कालीन मंदिर भी डूब गए थे. जिनमें खनमुखेश्वर, सीताराम मंदिर, नर्वदेश्वर मंदिर, रंगनाथ मंदिर, शंकर मंदिर, खाकीशाह वीर्थन मंदिर, हनुमान मंदिर सांढू, मंड़ीगढ़ ठाकुरद्वारा मंदिर, रामबाग मंदिर, दिंदयूती मंदिर, धुनी मंदिर, खूहसीता मंदिर, बीड़े की बायं का मंदिर, गोपालजी मंदिर, बुद्धिपुरा मंदिर इत्यादि शुमार हैं.
शिखर शैली के इन पौराणिक मंदिरों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए आज तक कई योजनाएं बनीं, लेकिन कोई भी सिरे नहीं चढ़ पाई.
12 पौराणिक मंदिरों की होनी है पुर्नस्थापना
राज्य सरकार द्वारा प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण को लेकर किए जा रहे प्रयासों के तहत बिलासपुर की गोबिंदसागर झील में जलमग्र 12 पौराणिक मंदिरों की पुर्नस्थापना टॉप प्रायोरिटी है. हालांकि इसके लिए काफी पहले से प्रयास चल रहे हैं. वर्ष 2009 में एक सर्वे भी हुआ था, लेकिन शायद उसके बाद योजना सिरे नहीं चढ़ सकीं. अब इस योजना को मूर्तरूप देने के लिए कोशिश शुरू हुई है.
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