बिलासपुर: जिले की पलोग पंचायत के नरेंद्र सिंह की पहचान आज एक मशरूम उत्पादक के रूप में है. वो पलोग पंचायत में “एग्रो हिल मशरूम” नाम से एक कंपनी चलाते हैं. इस मुकाम तक पहुंचने में उन्हें करीब 15 साल और कड़ी मेहनत लगी. आज वो कई लोगों को ना सिर्फ रोजगार दे रहा है बल्कि कई युवाओं का प्रेरणा स्त्रोत भी है. नौकरी की बजाय ऑर्गेनिक मशरूम उत्पादन के जरिये बिलासपुर के नरेंद्र ने कामयाबी की कहानी लिखी है.
होटल मैनेजमेंट के बाद मशरूम उत्पादन- बिलासपुर के नम्होल के रहने वाले नरेंद्र ने होटल मैनेजमेंट किया है. ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में कदम बढ़ाया और आज एक अलग मुकाम हासिल किया है. वर्ष 2008 में होटल मैनेजमेंट की ट्रेनिंग के बाद हिमाचल प्रदेश सरकार की योजनाओं का लाभ उठाया. एक विज्ञापन पर नरेंद्र की नजर पड़ी जिसमें मशरूम की खेती के लिए सरकारी सहयोग का जिक्र था. नरेंद्र ने इस अनुदान के साथ-साथ प्रशिक्षण की जानकारी प्राप्त की और फिर उद्यान विभाग बिलासपुर के माध्यम से चंबाघाट सोलन में प्रशिक्षण प्राप्त किया. आईसीएआर के अंतर्गत डायरेक्टरेट ऑफ मशरूम रिसर्च केंद्र सोलन में लगातार प्रशिक्षण लेते रहे.
मशरूम उत्पादन के जरिये कई लोगों को मिल रहा रोजगार सरकारी योजनाओं का मिला लाभ- नरेंद्र ने साल 2008 में 100 मशरूम कम्पोस्ट बैग से शुरुआत की, महज 8000 रुपए में शुरु किया गया मशरूम उत्पादन आज 15 लाख के सालाना कारोबार तक पहुंच चुका है. शुरुआत में उत्तम गुणवत्ता वाली खाद व अन्य सहायक वस्तुएं नहीं मिलने पर थोड़ा नुकसान जरूर होता था. एक वक्त ऐसा आया जब नुकसान के कारण मशरूम उत्पादन बंद करने की सोची लेकिन डायरेक्टरेट ऑफ मशरूम रिसर्च केंद्र सोलन और उद्यान विभाग बिलासपुर से लगातार मार्गदर्शन मिलने के बाद 2014 में कंपोस्ट व बीज का एक प्रोजेक्ट तैयार किया.साल 2014 में कंपोस्ट व बीज का प्रोजेक्ट तैयार करने के बाद उद्यान विभाग के माध्यम से पलोग में एग्रो हिल मशरूम फार्म स्थापित की गई. बाद में प्रदेश सरकार के माध्यम से विशेष ट्रेनिंग के जरिये मशरूम उत्पादन को बेहतर किया. इस दौरान नरेंद्र हजारों लोगों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण भी दे चुके हैं. यानि वो खुद तो आत्मनिर्भर बने ही दूसरों को भी आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया
नरेंद्र के मुताबिक मशरूम की काफी डिमांड है कोरोना काल में मिली सफलता- नरेंद्र के मुताबिक सरकारी मदद और ट्रेनिंग के बाद उन्हें अच्छी इनकम होनी शुरू हो गई और साल 2020 तक उन्होंने अपने सभी कर्ज चुका दिए. इसके बाद उन्होंने उद्यान विभाग की मदद से 3000 बैग क्षमता की वातानुकूल मशरूम इकाई भी स्थापित की, जिससे पूरे साल उत्पादन हो रहा है. नरेंद्र का कहना है कि वर्ष 2020- 21 में 14000 मशरूम कंपोस्ट बैग और 10,000 किलो बीज का उत्पादन एवं वितरण किया गया. जिससे लगभग 25 लाख का कारोबार हुआ है.कोरोना काल में जब पूरी दुनिया में तालाबंदी हुई तो हर कारोबार को नुकसान झेलना पड़ा. कोरोना काल की शुरुआत में नरेंद्र की आर्थिकी पर भी फर्क पड़ा लेकिन मशरूम की बढ़ती मांग ने उन्हें और मेहनत करने का भरोसा दिया, जिसका फायदा भी हुआ. मशरूम की मांग इतनी ज्यादा थी कि जल्दी ही उनके हर नुकसान की भरपाई हो गई. इसके साथ ही उन्होंने नौकरी ढूंढ रहे युवाओं को भी रोजगार दिया है. नरेंद्र के मुताबिक होटल मैनेजमेंट के बाद वो भी नौकरी तलाशते लेकिन उन्होंने सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया और उद्यान विभाग के सही परार्मश से आज उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है. नरेंद्र बताते हैं कि अब उनके इस फार्म में 8 से 10 लोगों को रोजगार मिला है. फार्म में कई कार्यों के लिए लोगों की जरूरत होती है और वो समय-समय पर युवाओं को अपने साथ जोड़ते हैं.
मशरूम के साथ बीज और खाद भी उपलब्ध करवाते हैं नरेंद्र खाद और मशरूम की डिमांड बढ़ी- नरेंद्र आज मशरूम के साथ-साथ खाद भी बनाते हैं. मशरूम और खाद की सप्लाई बिलासपुर के साथ-साथ सोलन, मंडी, हमीरपुर, ऊना जैसे कई जिलों में होती है. नरेंद्र के मुताबिक कंपोस्ट की डिमांड बहुत अधिक है, जिसे हम पूरा नहीं पा रहे हैं. मशरूम का उत्पादन भी वक्त के साथ-साथ बढ़ा है लेकिन मशरूम की डिमांड भी बढ़ी है, जिसे पूरा करना मुश्किल हो जाता है. मशरूम की डिमांड बिलासपुर, मंडी, कुल्लू, सोलन और शिमला जिले की मंडियों से आती है. की मंडियों से भी लगातार डिमांड आ रही है. इस सीजन में नरेंद्र ने मशरूम खाद के 28000 बैग लगभग 1200 किसानों को वितरित किये है. इसके अलावा कई किसानों को मशरूम उत्पादन के काम से भी जोड़ा है.
बेस्ट मशरूम ग्रोवर अवार्ड ऑफ इंडिया मिला- नरेंद्र बताते हैं कि उन्होंने ऑर्गेनिक मशरूम उत्पादन करने के बारे में सोची और ऑर्गेनिक मशरूम की डिमांड और मार्केट के मद्देनजर इसे अपने व्यवसाय बना दिया. आज उनके पास हाइटेक इंटीग्रेटेड यूनिट इन्डोर कंपोस्ट यूनिट जैसे आधुनिक मशीन है, जिसमें 13 दिनों के अंदर ही उत्तम गुणवत्ता वाली खाद तैयार हो जाती है जिससे बहुत अच्छी पैदावार होती है. इसके अलावा एक आधुनिक लैब भी स्थापित किया गया है. नरेंद्र को साल 2020 और 21-22 के दौरान पुणे आईसीएआर डायरेक्टरेट ऑफ मशरूम रिसर्च सेंटर चंबाघाट सोलन द्वारा राष्ट्रीय स्तर का बेस्ट मशरूम ग्रोवर अवार्ड ऑफ इंडिया से नवाजा गया इसके अतिरिक्त कृषि विश्वविद्यालय जम्मू से उन्हें न्वोन्मेशी किसान पुरस्कार भी प्रदान किया गया.
नरेंद्र ने नौकरी की बजाय मशरूम उत्पादन को चुना नौकरी नहीं स्किल पर दें ध्यान- नरेंद्र का मानना है कि आज के दौर में नौकरी के लिए दर-दर भटकने से अच्छा है कि स्किल डेवलेप करें और उसे अपने रोजगार का जरिया बनाएं. इससे आप कई लोगों को अपने साथ जोड़कर रोजगार की समस्या का हल भी कर सकेंगे. आज धश और प्रदेश को ऐसे युवा उद्यमियों की जरूरत है. नरेंद्र का कहना है कि अगर हिमाचल सरकार और उद्यान विभाग के द्वारा सहयोग और मार्गदर्शन लगातार समय-समय पर मिलता रहा तो मशरूम की खेती को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने का सपना है.