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राजकुमारी के साथ जाने की जिद पर अड़ गए थे बाबा नाहर सिंह, दुल्हन की डोली नहीं उठा पाए थे कहार! - बिलासपुर न्यूज

बिलासपुर में धौलरा की पहाड़ियों पर बाबा नाहर सिंह का खूबसूरत मंदिर है. प्रतापी राजा दीपचंद ने ही बाबा नाहर सिंह का मंदिर धौलरा में अपने महल के समीप बनवाया था. यहां हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं.

baba nahar singh story bilaspur
बाबा नाहर सिंह बिलासपुर
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Published : Jan 1, 2020, 7:08 PM IST

Updated : Jan 2, 2020, 11:29 AM IST

बिलासपुर: जिला मुख्यालय बिलासपुर में धौलरा की पहाड़ियों पर बाबा नाहर सिंह का खूबसूरत मंदिर है. प्रतापी राजा दीपचंद ने ही बाबा नाहर सिंह का मंदिर धौलरा में अपने महल के समीप बनवाया था. यहां हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं.

कहा जाता है कि बाबा नहर सिंह कहलूर रियासत के प्रतापी राजा दीपचंद की रानी कुमकुम देवी के साथ कुल्लू से बिलासपुर आए थे. राजा दीपचंद ने 1653 से 1665 तक कहलूर रियासत का राजकाज संभाला था. राजा दीपचंद जब कुल्लू में कुमकुम राजकुमारी को विवाह कर लाने गए थे. विदाई के समय राजकुमारी की डोली एकाएक भारी हो गई और कहार डोली को नहीं उठा पाए. जोर आजमाइश के बाद भी डोली अपनी जगह हिली तक नहीं.

राजा ने अपने राजपुरोहित से इसका रहस्य पूछा. पुरोहित ने कहा कि देवता नाराज हैं और यह देवता रानी के साथ कहलूर जाना चाहते हैं. इस बात पर राजा ने हामी भर दी और डोली एका एक फूलों की तरह हल्की हो गई. कहते हैं कि उसके बाद बाबा नाहर सिंह वीर की चरण पादुका राजकुमारी कुमकुम देवी की डोली के साथ कहलूर यानि बिलासपुर आई थी.

कुल्लू रियासत के राजा के महल के साथ ऊपर की तरफ बाबा नार सिंह का प्राचीन मंदिर आज भी दर्शकों व श्रद्धालुओं का आकर्षण केंद्र बना हुआ है. कुल्लू में भी इसी देवता की पूजा लोग श्रद्धा और विश्वास से करते हैं. बाबा नाहर सिंह कुल्लू के राजपरिवार के भी कुल देवता हैं.

वहीं, कई श्रद्धालुओं को नंगे पांव माथा टेकने आते हैं. बाबा को आटे का मीठा रोट, सुपारी, गूगल धूप, लौंग इलाइची पसंद है. नई फसल आने पर लोग यहां बाबा के मंदिर में रोट चढ़ाते हैं. मन्नत मांगते हैं. शादी, पुत्र जन्म की बधाई जात्रा लेकर नाचते गाते पहुंचते हैं.

बाबा नाहर सिंह को वीर भजिया के रूप में भी भक्तजन मानते हैं. धार्मिक ग्रंथों में 52 वीरों का वर्णन मिलता है. उन 52 वीरों में से बाबा नाहर सिंह भी एक है. यहां मंदिर में हर साल जयेष्ठ महीने के हर मंगलवार को मेला लगता है.

वीडियो रिपोर्ट

ये भी पढ़ें: 247 एकड़ भूमि पर बन रहा बिलासपुर का एम्स, आधुनिक तकनीक से होगा लैस

बिलासपुर: जिला मुख्यालय बिलासपुर में धौलरा की पहाड़ियों पर बाबा नाहर सिंह का खूबसूरत मंदिर है. प्रतापी राजा दीपचंद ने ही बाबा नाहर सिंह का मंदिर धौलरा में अपने महल के समीप बनवाया था. यहां हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं.

कहा जाता है कि बाबा नहर सिंह कहलूर रियासत के प्रतापी राजा दीपचंद की रानी कुमकुम देवी के साथ कुल्लू से बिलासपुर आए थे. राजा दीपचंद ने 1653 से 1665 तक कहलूर रियासत का राजकाज संभाला था. राजा दीपचंद जब कुल्लू में कुमकुम राजकुमारी को विवाह कर लाने गए थे. विदाई के समय राजकुमारी की डोली एकाएक भारी हो गई और कहार डोली को नहीं उठा पाए. जोर आजमाइश के बाद भी डोली अपनी जगह हिली तक नहीं.

राजा ने अपने राजपुरोहित से इसका रहस्य पूछा. पुरोहित ने कहा कि देवता नाराज हैं और यह देवता रानी के साथ कहलूर जाना चाहते हैं. इस बात पर राजा ने हामी भर दी और डोली एका एक फूलों की तरह हल्की हो गई. कहते हैं कि उसके बाद बाबा नाहर सिंह वीर की चरण पादुका राजकुमारी कुमकुम देवी की डोली के साथ कहलूर यानि बिलासपुर आई थी.

कुल्लू रियासत के राजा के महल के साथ ऊपर की तरफ बाबा नार सिंह का प्राचीन मंदिर आज भी दर्शकों व श्रद्धालुओं का आकर्षण केंद्र बना हुआ है. कुल्लू में भी इसी देवता की पूजा लोग श्रद्धा और विश्वास से करते हैं. बाबा नाहर सिंह कुल्लू के राजपरिवार के भी कुल देवता हैं.

वहीं, कई श्रद्धालुओं को नंगे पांव माथा टेकने आते हैं. बाबा को आटे का मीठा रोट, सुपारी, गूगल धूप, लौंग इलाइची पसंद है. नई फसल आने पर लोग यहां बाबा के मंदिर में रोट चढ़ाते हैं. मन्नत मांगते हैं. शादी, पुत्र जन्म की बधाई जात्रा लेकर नाचते गाते पहुंचते हैं.

बाबा नाहर सिंह को वीर भजिया के रूप में भी भक्तजन मानते हैं. धार्मिक ग्रंथों में 52 वीरों का वर्णन मिलता है. उन 52 वीरों में से बाबा नाहर सिंह भी एक है. यहां मंदिर में हर साल जयेष्ठ महीने के हर मंगलवार को मेला लगता है.

वीडियो रिपोर्ट

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Intro:कुल्लू से राजकुमारी की डोली में कहलूर आए थे बाबा नाहर सिंह
राजा ने अपने महल के सामने बना दिया था मंदिर
आज बिलासपुर के आराध्य देवता के नाम से पूजते है श्रदालू

बिलासपुर।
वास्तव में सिंह पहलू रियासत के एक माह प्रतापी राजा दीपचंद की रानी कुमकुम देवी के साथ कुल्लू से आए हैं। राजा ने ही इस देवता का मंदिर अपने महल के समीप धौलरा में बनवाया था। राजा दीपचंद ने 1653 से 1665 तक कहलूंर रियासत का राजकाज संभाला था। बाबा नाहर सिंह जी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में बस स्टैंड से कुछ दूरी पर धौलरा नामक नाम पर स्थित है। बिलासपुर जनपद के आराध्य देव बाबा नाहर सिंह को वीर भजिया के रूप में भी भक्तजन मानते हैं। धार्मिक ग्रंथों में 52 वीरों का वर्णन मिलता है। उन 52 वीरों में से बाबा नाहर सिंह भी एक है। यहां मंदिर में हर साल जेष्ठ महीने के हर मंगलवार को मेले लगते हैं। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु माथा टेकने के लिए पहुंचते हैं।


Body:बता दे कि कुल्लू से दीपचंद जब कुमकुम राजकुमारी को विवाह कर लाने लगा तो राजकुमारी की डोली एक का एक भारी हो गई और कहार डोली को नहीं उठा पा रहे थे। उन्होंने बहुत जोर लगाया मगर सफर नहीं हुए। राजा ने कहारो से पूछा कि क्या बात है राजकुमारी की डोली पहाड़ों की तरह भारी कैसे हो गई है। तो इस पर वह कहारों ने जवाब दिया कि वह उठाने में असमर्थ हैं। इस दौरान राजा ने अपने राजपुरोहित से इसका रहस्य पूछा पुरोहित बोला कि देव नाराज है तो राजा ने पूछा कि देवता क्या चाहते हैं। तो राजपुरोहित ने कहा कि कुल्लू के राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि यह देवता रानी के साथ कहलूर जाना चाहते हैं। तो राजा ने इस बात पर हामी भर दी और डोली एकाएक फूलों की तरह हल्की हो गई।

बाइट...
प्रेमलाल शर्मा, मंदिर मुख्य पुजारी।


Conclusion:कहते हैं कि उसके बाद बाबा नाहर सिंह वीर की चरण पादुका है। राजकुमारी कुमकुम देवी की डोली के साथ कहलूर यानी बिलासपुर आई थी। कुल्लू रियासत के राजा के महल के साथ ऊपर की तरफ बाबा नार सिंह का प्राचीन मंदिर आज भी दर्शकों व श्रद्धालुओं का आकर्षण केंद्र बना हुआ है। कुल्लू में भी इसी देवता की पूजा लोग श्रद्धा और विश्वास से करते हैं। बाबा नाहर सिंह कुल्लू के राजपरिवार के भी कुलदेवता है। कई श्रद्धालुओं को नंगे पांव में माथा टेकने आते देखा जा सकता है। कई लोग बाबा नारसिंह परिसर में खेलते भी देखे जा सकते हैं तब देव उनकी जबान में ही कुछ बताते हैं क्या भूल हुई है क्यों लोग नाराज हैं। तब उससे उसके संबंधी माथा टेका कर भूल सुधारते हैं। बाबा को आटे का मीठा रोट, सुपारी, गूगल धूप, लोंग इलाइची पसंद है। फसल आने पर लोग यहां बाबा के मंदिर में रोट चढ़ाते हैं। मनौती मांगते हैं शादी पुत्र जन्म की बधाई जात्रा लेकर नाचते गाते पहुंचते हैं।
Last Updated : Jan 2, 2020, 11:29 AM IST
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