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रंगनाथ मंदिरों के जीर्णाेंद्वार के लिए अब अगले साल का इंतजार, फिर हुए जलमग्न

बिलासपुर के पौराणिक मंदिरों के जीर्णोद्धार की कवायद शुरू होने से पहले ही बंद हो गई. तीन से चार महीने के लिए पानी से बाहर निकले मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए सरकार हर साल प्लान तैयार करती है, लेकिन यह चार माह सिर्फ सरकार प्लानिंग में ही लगा देती है. इसके बाद चार माह के बाद यह मंदिर फिर से गोबिंदसागर झील के आगोश में डूब जाते है. इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ है.

ancient temples of Bilaspur
बिलासपुर के पौराणिक मंदिर
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Published : Aug 13, 2020, 12:18 PM IST

बिलासपुर: इस साल भी बिलासपुर के पौराणिक मंदिरों के जीर्णोद्धार की कवायद शुरू होने से पहले ही बंद हो गई. तीन से चार महीने के लिए पानी से बाहर निकले मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए सरकार हर साल प्लान तैयार करती है, लेकिन यह चार माह सिर्फ सरकार प्लानिंग में ही लगा देती है. इसके बाद चार माह के बाद यह मंदिर फिर से गोबिंदसागर झील के आगोश में समा जाते हैं. इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ है.

हालांकि, कोविड-19 की वजह से मंदिरों को शिफ्ट करने को लेकर कई अहम फैसले नहीं लिए गए, लेकिन हर साल इन मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए सरकार बैठकें कर कागजों में ही कवायद शुरु करती है. यहां पर 60 सालों से जमीनी स्तर पर इन मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए कोई भी सरकार सजग नजर नहीं आई.

वीडियो

गौरतलब है कि 60 सालों से पानी के आगोश में आए पुराने बिलासपुर शहर के डूबे मंदिरों का बसाव अभी तक भी अपनी राह ताक रहा है. हर साल मंदिर कभी पानी के आगोश में डूबे हुए नजर आते हैं, तो कभी बंजर पड़ी जमीन पर अपनी बदकिस्मती के दिन गिनते रहते हैं.

गौर हो कि भाखड़ा बांध बनने के बाद गोबिंद सागर झील में जलमग्न दशकों पुराने मंदिर रंगनाथ, खनमुखेश्वर, ठाकुरद्वारा, मुरली मनोहर मंदिर पानी में डूबे हुए हैं. राजा आनंद चंद के बनवाए गए गोपाल मंदिर और हनुमान मंदिर समेत कई देवालय आज भी अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं.

ancient temples of Bilaspur
गोबिंदसागर झील में डूबे बिलासपुर के पौराणिक मंदिर

हालांकि, भाखड़ा बांध के अस्तित्व में आने के बाद राज्य में कई सरकारें आईं और कई चली भी गईं, लेकिन हर बार बिलासपुर के लोगों की आस्था के प्रतीक इन पौराणिक मंदिरों को लेकर सियासत ही हुई और यह मंदिर राजनीति का शिकार होकर रह गए. झील का जलस्तर नीचे उतरने पर गल रहे इन मंदिरों की दुर्दशा देखी जा सकती है.

एएसआई टीम को दिखाईं पांच जगहें

जानकारी के अनुसार जिला प्रशासन ने पहले हुए सर्वे के दौरान एएसआई टीम को प्रस्तावित पांच जगह दिखाई थी. इसमें से दनोह के पास काला बाबा की कुटियां के आसपास खाली पड़ी करीब तीस बीघा सरकारी जमीन पर मंदिरों को पुनः स्थापित करने की सहमति बनी थी. हालांकि, प्रशासन ने चिन्हित जमीन को भाषा एवं संस्कृति विभाग के नाम स्थानांतरित भी कर दी है, लेकिन फिर भी यह काम गति नहीं पकड़ पा रहा है.

ये भी पढ़ें: बारिश होने के कारण कोलडैम में पानी का लेवल बढ़ा, प्रशासन ने लोगों से की ये अपील

बिलासपुर: इस साल भी बिलासपुर के पौराणिक मंदिरों के जीर्णोद्धार की कवायद शुरू होने से पहले ही बंद हो गई. तीन से चार महीने के लिए पानी से बाहर निकले मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए सरकार हर साल प्लान तैयार करती है, लेकिन यह चार माह सिर्फ सरकार प्लानिंग में ही लगा देती है. इसके बाद चार माह के बाद यह मंदिर फिर से गोबिंदसागर झील के आगोश में समा जाते हैं. इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ है.

हालांकि, कोविड-19 की वजह से मंदिरों को शिफ्ट करने को लेकर कई अहम फैसले नहीं लिए गए, लेकिन हर साल इन मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए सरकार बैठकें कर कागजों में ही कवायद शुरु करती है. यहां पर 60 सालों से जमीनी स्तर पर इन मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए कोई भी सरकार सजग नजर नहीं आई.

वीडियो

गौरतलब है कि 60 सालों से पानी के आगोश में आए पुराने बिलासपुर शहर के डूबे मंदिरों का बसाव अभी तक भी अपनी राह ताक रहा है. हर साल मंदिर कभी पानी के आगोश में डूबे हुए नजर आते हैं, तो कभी बंजर पड़ी जमीन पर अपनी बदकिस्मती के दिन गिनते रहते हैं.

गौर हो कि भाखड़ा बांध बनने के बाद गोबिंद सागर झील में जलमग्न दशकों पुराने मंदिर रंगनाथ, खनमुखेश्वर, ठाकुरद्वारा, मुरली मनोहर मंदिर पानी में डूबे हुए हैं. राजा आनंद चंद के बनवाए गए गोपाल मंदिर और हनुमान मंदिर समेत कई देवालय आज भी अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं.

ancient temples of Bilaspur
गोबिंदसागर झील में डूबे बिलासपुर के पौराणिक मंदिर

हालांकि, भाखड़ा बांध के अस्तित्व में आने के बाद राज्य में कई सरकारें आईं और कई चली भी गईं, लेकिन हर बार बिलासपुर के लोगों की आस्था के प्रतीक इन पौराणिक मंदिरों को लेकर सियासत ही हुई और यह मंदिर राजनीति का शिकार होकर रह गए. झील का जलस्तर नीचे उतरने पर गल रहे इन मंदिरों की दुर्दशा देखी जा सकती है.

एएसआई टीम को दिखाईं पांच जगहें

जानकारी के अनुसार जिला प्रशासन ने पहले हुए सर्वे के दौरान एएसआई टीम को प्रस्तावित पांच जगह दिखाई थी. इसमें से दनोह के पास काला बाबा की कुटियां के आसपास खाली पड़ी करीब तीस बीघा सरकारी जमीन पर मंदिरों को पुनः स्थापित करने की सहमति बनी थी. हालांकि, प्रशासन ने चिन्हित जमीन को भाषा एवं संस्कृति विभाग के नाम स्थानांतरित भी कर दी है, लेकिन फिर भी यह काम गति नहीं पकड़ पा रहा है.

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