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देशभर में अलग पहचान रखती है हिमाचली टोपी, PM और राष्ट्रपति भी हैं मुरीद

हिमाचल की टोपियों के बिग बी भी हैं बड़े फैन

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Published : Feb 9, 2019, 9:20 AM IST

देशभर में अलग पहचान रखती हैं हिमाचल की टोपियां.

शिमलाः हिमाचल में पहने जाने वाली टोपियां देशभर में अपनी पहचान रखती हैं. पहाड़ी राज्य हिमाचल के लोग आज देश भर में पहाड़ी टोपी से पहचाने जाते हैं. हिमाचल में अलग-अलग रंगों की टोपियां प्रचलन में हैं.
अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में पहाड़ी टोपियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. मेले में पहुंचने वाले बाहरी राज्यों के लोग पहाड़ी टोपियां खरीदने में खास रूचि दिखा रहे हैं. हिमाचल में इन टोपियों का अपना ही महत्व है. ठंड से बचने के लिए इन टोपियों का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही हिमाचल की परंपरा भी इससे झलकती है.

देशभर में अलग पहचान रखती हैं हिमाचल की टोपियां.
देशभर में अलग पहचान रखती हैं हिमाचल की टोपियां.
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पहाड़ी टोपियां पश्मीना या ऊनी पट्टी और रंगीन और लाल मखमल से तैयार की जाती है. समय के साथ-साथ टोपियों में राजनीतिक रंग भी चढ़ा. हरी पट्टी वाली टोपी को कांग्रेस और मैरून कलर की टोपी को भाजपा नेता इस्तेमाल में लाने लगे. हालांकि जयराम सरकार आते ही मुख्यमंत्री ने ऐलान किया है कि टोपियों की राजनीति को खत्म किया जाएगा. मौजूदा समय में सीएम जयराम दोनों रंगों की टोपी इस्तेमाल में लाते हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी पहाड़ी टोपी के मुरीद हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिमाचल आने पर टोपी पहनते नजर आते हैं. यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी जब इजराइल दौरे पर थे तब भी वो हिमाचली टोपी में नजर आए थे.

कुछ महीनों पहले कुल्लू के भुट्टिको के कारीगर और प्रबंधकों ने राष्ट्रपति भवन जाकर रामनाथ कोविंद को कुल्लवी टोपी भेंट की थी. जिसके बाद भुट्टिको के कारीगर नूप राम ने राष्ट्रपति के निजी दर्जी की मशीन में ही करीब 3 घंटे के अंदर महामहिम के नाप की टोपी तैयार कर राष्ट्रपति को भेंट की. राष्ट्रपति को यह टोपी इतनी पसंद आई कि उन्होंने तीन टोपियों का और ऑर्डर दे दिया.
इसके साथ ही पूर्व पीएम स्व. अटल बिहारी वाजपेयी को भी हिमाचली टोपी खूब भाती थी और बहुत से समारोहों में वे इसे पहना करते थे. वहीं, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी हिमाचली टोपी को पसंद करते हैं. इन सब के साथ-साथ बहुत सी बड़ी हस्तियां पहाड़ी टोपियों के मुरीद हैं.

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बता दें कि हिमाचली टोपियां प्रदेश के गर्व से भी जुड़ी हुई हैं. अप्पर हिमाचल समते प्रदेश के कई हिस्सों में यह मेहमानों के सम्मान व विवाह और अन्य उत्सवों के दौरान विशेष स्थान रखती हैं. हिमाचली लोग आज अपने राज्य में अन्य राज्यों से आए मेहमानों को पहाड़ी टोपी से सम्मानित करते हैं.

हिमाचल में विशेषकर तीन तरह की टोपियां इस्तेमाल में लाई जाती हैं. बुशहरी टोपी हिमाचल के रामपुर, बुशहर क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं. 20वीं शताब्दी की शुरुआत से इस टोपी का उपयोग काफी बढ़ गया था. करीब सभी लोगों ने उन्हें पहनने में गर्व महसूस किया. बुशहर व किन्नौरी टोपी देखने में एक जैसी होती हैं.

हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में शादी समारोह में बाराती लोगों को यह टोपियां पहनाई जाती हैं. इसके साथ टोपी पर एक जंगली फूल भी लगाया जाता है. जिसे किन्नौरी भाषा में चमका-ऊ भी कहते हैं. इस फूल को लगाने से टोपी की शान और भी बढ़ जाती है. किन्नौर क्षेत्र से संबंध रखने वाली महिला धनवन्ती नेगी ने जानकारी देते हुए कहा कि ये टोपी विवाह और महत्वपूर्ण कार्यों में भी प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं.
कुल्लूवी टोपी अधिकतर जिला कुल्लू में रहने वाले लोगों द्वारा पहनी जाती है. इस टोपी में रंगबिरंगे मखमल का प्रयोग किया जाता है. वर्तमान में इन टोपियों की पहचान भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है.

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शिमलाः हिमाचल में पहने जाने वाली टोपियां देशभर में अपनी पहचान रखती हैं. पहाड़ी राज्य हिमाचल के लोग आज देश भर में पहाड़ी टोपी से पहचाने जाते हैं. हिमाचल में अलग-अलग रंगों की टोपियां प्रचलन में हैं.
अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में पहाड़ी टोपियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. मेले में पहुंचने वाले बाहरी राज्यों के लोग पहाड़ी टोपियां खरीदने में खास रूचि दिखा रहे हैं. हिमाचल में इन टोपियों का अपना ही महत्व है. ठंड से बचने के लिए इन टोपियों का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही हिमाचल की परंपरा भी इससे झलकती है.

देशभर में अलग पहचान रखती हैं हिमाचल की टोपियां.
देशभर में अलग पहचान रखती हैं हिमाचल की टोपियां.
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पहाड़ी टोपियां पश्मीना या ऊनी पट्टी और रंगीन और लाल मखमल से तैयार की जाती है. समय के साथ-साथ टोपियों में राजनीतिक रंग भी चढ़ा. हरी पट्टी वाली टोपी को कांग्रेस और मैरून कलर की टोपी को भाजपा नेता इस्तेमाल में लाने लगे. हालांकि जयराम सरकार आते ही मुख्यमंत्री ने ऐलान किया है कि टोपियों की राजनीति को खत्म किया जाएगा. मौजूदा समय में सीएम जयराम दोनों रंगों की टोपी इस्तेमाल में लाते हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी पहाड़ी टोपी के मुरीद हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिमाचल आने पर टोपी पहनते नजर आते हैं. यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी जब इजराइल दौरे पर थे तब भी वो हिमाचली टोपी में नजर आए थे.

कुछ महीनों पहले कुल्लू के भुट्टिको के कारीगर और प्रबंधकों ने राष्ट्रपति भवन जाकर रामनाथ कोविंद को कुल्लवी टोपी भेंट की थी. जिसके बाद भुट्टिको के कारीगर नूप राम ने राष्ट्रपति के निजी दर्जी की मशीन में ही करीब 3 घंटे के अंदर महामहिम के नाप की टोपी तैयार कर राष्ट्रपति को भेंट की. राष्ट्रपति को यह टोपी इतनी पसंद आई कि उन्होंने तीन टोपियों का और ऑर्डर दे दिया.
इसके साथ ही पूर्व पीएम स्व. अटल बिहारी वाजपेयी को भी हिमाचली टोपी खूब भाती थी और बहुत से समारोहों में वे इसे पहना करते थे. वहीं, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी हिमाचली टोपी को पसंद करते हैं. इन सब के साथ-साथ बहुत सी बड़ी हस्तियां पहाड़ी टोपियों के मुरीद हैं.

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बता दें कि हिमाचली टोपियां प्रदेश के गर्व से भी जुड़ी हुई हैं. अप्पर हिमाचल समते प्रदेश के कई हिस्सों में यह मेहमानों के सम्मान व विवाह और अन्य उत्सवों के दौरान विशेष स्थान रखती हैं. हिमाचली लोग आज अपने राज्य में अन्य राज्यों से आए मेहमानों को पहाड़ी टोपी से सम्मानित करते हैं.

हिमाचल में विशेषकर तीन तरह की टोपियां इस्तेमाल में लाई जाती हैं. बुशहरी टोपी हिमाचल के रामपुर, बुशहर क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं. 20वीं शताब्दी की शुरुआत से इस टोपी का उपयोग काफी बढ़ गया था. करीब सभी लोगों ने उन्हें पहनने में गर्व महसूस किया. बुशहर व किन्नौरी टोपी देखने में एक जैसी होती हैं.

हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में शादी समारोह में बाराती लोगों को यह टोपियां पहनाई जाती हैं. इसके साथ टोपी पर एक जंगली फूल भी लगाया जाता है. जिसे किन्नौरी भाषा में चमका-ऊ भी कहते हैं. इस फूल को लगाने से टोपी की शान और भी बढ़ जाती है. किन्नौर क्षेत्र से संबंध रखने वाली महिला धनवन्ती नेगी ने जानकारी देते हुए कहा कि ये टोपी विवाह और महत्वपूर्ण कार्यों में भी प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं.
कुल्लूवी टोपी अधिकतर जिला कुल्लू में रहने वाले लोगों द्वारा पहनी जाती है. इस टोपी में रंगबिरंगे मखमल का प्रयोग किया जाता है. वर्तमान में इन टोपियों की पहचान भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है.

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