सोलन: सोमवार 20 जून का दिन हिमाचल प्रदेश के हादसों के इतिहास में एक बार फिर दर्ज हो गया, जब 30 साल बाद जिला सोलन के परवाणू टीटीआर में ट्रॉली में करीब 11 पर्यटकों की सांसे बीच मझधार में फंस गई. सोमवार को करीब सुबह 10:30 बजे दिल्ली से आए करीब 11 पर्यटक टीटीआर के मोक्ष रिसॉर्ट से (Parwanoo Timber Trail Incident ) नीचे आने लगे कि अचानक तकनीकी खराबी के चलते ट्रॉली बीच रास्ते मे फंस गई. पहले तो पर्यटकों ने रिसॉर्ट प्रशासन से मदद मांगी लेकिन जब राहत बचाव कार्य शुरू नहीं हुआ तो मजबूरन पर्यटकों को वीडियो बना सोशल मीडिया पर वायरल करना पड़ा. मीडिया में खबर आने के बाद जिला प्रशासन के भी हाथ-पांव फूले और पुलिस प्रशासन मौके पर पहुंच राहत बचाव कार्य में जुटा.
पर्यटकों ने रिसॉर्ट प्रशासन पर लगाए आरोप, सरकार का जताया आभार: हैरानी की बात ये रही कि रिसॉर्ट प्रशासन (Timber Trail Resort) पर पर्यटकों ने मदद न करने के आरोप लगाए. ईटीवी भारत ने जब पर्यटकों से बात की तो उनका कड़े और साफ शब्दों में ये कहना था कि रिसॉर्ट प्रशासन ने उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया था. उन्हें अपने दम (Parwanoo Timber Trail Accident) पर रस्सी से नीचे उतरने के लिए कहा गया. पर्यटको में अधिकांश लोग किडनी, हार्ट और अन्य बीमारी के मरीज थे. इतनी ऊंचाई पर डर लगना लाजमी था. लेकिन पर्यटकों ने सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का आभार व्यक्त किया. जिन्होंने समय रहते खुद मोर्चा संभाला और मदद के लिए एनडीआरएफ और एयरफोर्स की टीमें मौके पर भेजी. वहीं, मौके पर पहुंचे एनडीआरएफ के कमांडेंट बलजिंदर सिंह ने बताया कि उन्हें जैसे ही सूचना मिली वे मौके पर पहुंचे और सभी यात्रियों को केबल कार से उतारा. लम्बी जद्दोजहद के बाद एक-एक करके सभी यात्रियों को केबल कार के माध्यम से पूरी सुरक्षा अपनाते हुए निकाला गया.
परवाणू हादसे पर ये बोले सीएम जयराम: परवाणू टीटीआर में हुए हादसे को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि इस तरह के हादसे हिमाचल में होना चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि जब यात्री इस माहौल में फंस चुके थे तो टीटीआर प्रशासन को जल्द से जल्द प्रशासन को सूचित करना चाहिए था. उन्होंने कहा कि जैसे ही प्रशासन को सूचना मिली वैसे ही एनडीआरएफ और एयर फोर्स की टीमें मौके पर पहुंच गई थी और उन्हें पर्यटकों को रेस्क्यू किया गया. वहीं, सीएम जयराम ठाकुर ने पर्यटकों से भी आग्रह किया कि जब भी वे लोग हिमाचल आएं तो उनका स्वागत है लेकिन वे लोग सुरक्षा नियमों का पालन करें. वहीं, मुख्यमंत्री ने इस मामले को लेकर जांच के आदेश दिए हैं. उन्होंने कहा कि जहां कहीं भी सुरक्षा के हिसाब से चूक हुई होगी वहां निश्चित रूप से कड़ा संज्ञान लिया जाएगा.
अक्टूबर 1992 में भी हुआ था हादसा: जिंदगी के दौड़ भरे सफर (timber trail rescue operation 1992) में कुछ घटनाएं हमेशा यादों में बनी रहती हैं और उन्हें भूलना मुश्किल होता है. ऐसी ही घटना कसौली तहसील के परवाणू क्षेत्र में अक्टूबर, 1992 में हुई थी, जब दस लोगों की सांसें हवा में अटक गई थी. आज भी लोग उस समय को याद करते हैं तो सिहर उठते हैं.
तीन दिन तक हवा में अटकी थी दस लोगों की सांसें: तीन दिन तक दस लोगों की सांसें हवा में अटकी रही. इस दौरान एक व्यक्ति की मौत भी हुई थी. उस समय आर्मी व एयर फोर्स के जवानों ने सैकडों फीट की ऊंचाई में फंसे लोगों की जान को बचाया था. टिंबर ट्रेल रोपवे में ट्रॉली फंसने की सूचना चारों तरफ आग की तरह फैल गई थी. इसमें फंसे पर्यटक दिल्ली व पंजाब के थे. टीटीआर रिसोर्ट परवाणू में लोगों का जमावड़ा लग गया था, लेकिन कोई भी कुछ नहीं कर पा रहा था.
ट्रॉली अटेंडेंट की हुई थी मौत: 11 अक्टूबर, 1992 को कालका-शिमला नेशन हाइवे पर स्थित परवाणू के समीप बने टिंबर ट्रेल रिसॉर्ट में चलने वाली रोपवे ट्रॉली में पर्यटक बैठकर जा रहे थे तो सैकड़ों फीट की ऊंचाई पर ट्रॉली अचानक एक झटके के साथ रुक गई. अंदर बैठे लोगों समेत ही ट्रॉली तार पर पैंडूलम की हिचकोले खाने लगी. काफी समय के बाद भी ट्रॉली न आगे बढ़ी न ही पीछे हट पाई. अंदर बैठे पर्यटकों में भी इससे खलबली मच गई थी. जानकारी के अनुसार ट्रॉली में अटेंडेंट समेत 12 लोग मौजूद थे, जिसमें एक छोटा बच्चा भी शामिल था. इसी दौरान ट्रॉली अटेंडेंट गुलाम हुसैन ने जान बचाने के लिए छलांग लगा दी थी, जिस कारण उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी. वहीं, दरवाजा बंद होने से पहले ही एक व्यक्ति भी गिरने से घायल हो गया था.
कसौली में सेना को किया गया था रेस्क्यू के लिए संपर्क: शाम छह बजे कसौली में सेना को इसकी जानकारी दी गई. वहां से वेस्ट्रन कमांड चंडी मंदिर से सेना को सहायता के लिए बुलाया गया. हेलीकॉप्टर के माध्यम से ट्रॉली तक पहुंचने के काफी प्रयास किए गए. घटना के एक दिन बाद भी यात्रियों को बाहर निकालने में सफलता नहीं मिली तो विशेष कमांडो दस्ते को बुलाया गया. 13 अक्टूबर को इस दस्ते के मेजर क्रैस्टो अपने हेलीकॉप्टर के साथ ठीक ट्रॉली के ऊपर पहुंचे और एक रस्सी की सहायता से छत पर उतरे. एक-एक करके सभी को रस्सी की सहायता से हेलीकॉप्टर तक पहुंचाकर वहां से सुरक्षित बाहर निकाला गया. बचाव अभियान में शामिल तत्कालीन मेजर इवान जोसेफ क्रैस्टो, ग्रुप कैप्टन फली होमी, विग कमांडर सुभाष चंद्र, फ्लाइट लेफ्टिनेंट पी उपाध्याय को सम्मानित भी किया गया था.
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