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आधुनिक चक्कियों की रफ्तार में दब गया घराटों का शोर,  खत्म होने की कगार पर है ये पुरानी तकनीक - gharat water mill kunihar

एक जमाने में लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर घराट में आटा पिसवाने आते थे, लेकिन अभ लोग पौष्टिक तत्वों से भरपूर घराट के आटे को भूलते जा रहे हैं. जिला सोलन के कुनिहार क्षेत्र में आज भी कई ग्रामीणों ने घराट की विरासत को सहेज कर रखा है. जानिए पूरी खबर.

gharat water mill story from kunihar
यहां आज भी जिंदा है घराट चक्की की विरासत
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Published : Jan 22, 2020, 11:47 AM IST

सोलन: एक जमाने में लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर घराट में आटा पिसवाने आते थे, लेकिन अब लोग पौष्टिक तत्वों से भरपूर घराट के आटे को भूलते जा रहे हैं. जिसके चलते घराटा चलाने वालों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए घराटों का पीसा हुआ आटा लोगों के घर-घर जाकर बेचना पड़ रहा है. जिला सोलन के कुनिहार क्षेत्र में आज से करीब 60 -70 साल पहले कई घराट थे, लेकिन सरकार और प्रशासन की अनदेखी के कारण एक-एक करके सब बंद होते चले गए.

पुराने समय में आटा पीसने के लिए मशीनें नहीं होती थीं, जिससे गांव के लोगों ने आटा पीसने की विशेष विधि की खोज की. ग्रामीण पानी के तेज बहाव से चलने वाली चक्की से आटे को पीसते थे. जिसको घराट कहा जाता है, लेकिन मौजूदा समय में प्रदेश के अधिकतर क्षेत्रों में अब कुछ ही घराट बचे हैं वह भी अपनी अंतिम सासें ले रहे हैं.

वीडियो रिपोर्ट

स्थानीय निवासी ओमप्रकाश ने बताया कि खड़ के पानी के बहाव को कूहल(छोटी सी नहर) के जरिए घराट की तरफ मोड़ा जाता है और घराट चक्की के नीचे पंखों पर डाला जाता है. जिससे पंखे तेजी से घूमने लगते हैं. जिस के कारण घराट की चक्की चलती है. उन्होंने बताया कि पानी के बहाव के अनुसार ही 80 से 100 किलो तक आटा पीसा जा सकता है, क्योंकि चक्की में दानें धीरे धीरे निकलते हैं. घराट का आटा पोष्टिक, लजीज और स्वास्थ्यवर्धक होता है. मशीनी युग मे आज भी लोग घराट में पीसा आटा खाना पसंद करते है.

देलग गावं में चार घराट करीब एक सदी से आज भी चल रहे हैं. देलग में घराट चलाने वाले ओमप्रकाश ने बताया कि पूरे दिन में करीब एक क्विंटल आटा पिसा जाता है.पहले कुनिहार, डुमेहर, रामशहर आदि क्षेत्रों के लोग इस क्षेत्र के घराटों से ही आटा ले जाते थे.

ये भी पढ़ें: पांचवी और आठवीं कक्षा की डेटशीट जारी, मार्च में होंगी परीक्षाएं

सोलन: एक जमाने में लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर घराट में आटा पिसवाने आते थे, लेकिन अब लोग पौष्टिक तत्वों से भरपूर घराट के आटे को भूलते जा रहे हैं. जिसके चलते घराटा चलाने वालों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए घराटों का पीसा हुआ आटा लोगों के घर-घर जाकर बेचना पड़ रहा है. जिला सोलन के कुनिहार क्षेत्र में आज से करीब 60 -70 साल पहले कई घराट थे, लेकिन सरकार और प्रशासन की अनदेखी के कारण एक-एक करके सब बंद होते चले गए.

पुराने समय में आटा पीसने के लिए मशीनें नहीं होती थीं, जिससे गांव के लोगों ने आटा पीसने की विशेष विधि की खोज की. ग्रामीण पानी के तेज बहाव से चलने वाली चक्की से आटे को पीसते थे. जिसको घराट कहा जाता है, लेकिन मौजूदा समय में प्रदेश के अधिकतर क्षेत्रों में अब कुछ ही घराट बचे हैं वह भी अपनी अंतिम सासें ले रहे हैं.

वीडियो रिपोर्ट

स्थानीय निवासी ओमप्रकाश ने बताया कि खड़ के पानी के बहाव को कूहल(छोटी सी नहर) के जरिए घराट की तरफ मोड़ा जाता है और घराट चक्की के नीचे पंखों पर डाला जाता है. जिससे पंखे तेजी से घूमने लगते हैं. जिस के कारण घराट की चक्की चलती है. उन्होंने बताया कि पानी के बहाव के अनुसार ही 80 से 100 किलो तक आटा पीसा जा सकता है, क्योंकि चक्की में दानें धीरे धीरे निकलते हैं. घराट का आटा पोष्टिक, लजीज और स्वास्थ्यवर्धक होता है. मशीनी युग मे आज भी लोग घराट में पीसा आटा खाना पसंद करते है.

देलग गावं में चार घराट करीब एक सदी से आज भी चल रहे हैं. देलग में घराट चलाने वाले ओमप्रकाश ने बताया कि पूरे दिन में करीब एक क्विंटल आटा पिसा जाता है.पहले कुनिहार, डुमेहर, रामशहर आदि क्षेत्रों के लोग इस क्षेत्र के घराटों से ही आटा ले जाते थे.

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HP#Solan# Devbhoomi Himachal#


ना जाने कहा घूम हो गए वो नदी किनारे लगे घराट.....

■वर्तमान मशीनी युग में लुप्त हो रहे पन चक्की(घराट)...
■ पौष्टिक तत्वों से भरपूर घराट के आटे का लोग भूल चुके है स्वाद


आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग पौष्टिक तत्वों से भरपूर घराट के आटे का स्वाद पुरी तरह से भूल चुके हैं। जिसके चलते घराट चलाने वालों को अपने परिवार के पालन पोषण के लिए कृषि सहित अन्य व्यवसाय की ओर रुख करना पड़ रहा है।पुराने समय में आटा पीसने के लिए मशीनें आदि नहीं होती थी । इसलिए आटा पीसने के लिए विशेष विधि की खोज की गई थी। पानी के तेज बहाव से चलने वाली पनचक्की से आटे को पिस्सा जाता था। जिसको हम घराट कहते थे। कुनिहार क्षेत्र में करीब 60 -70 वर्ष पूर्व 40 -50 घराट होते थे ,जो आज मशीनी युग आरम्भ होने से व कुछ अन्य कारणों से बंद हो गए ।

परन्तु इसके बावजूद भी कुनिहार क्षेत्र में कई जगहों पर आज भी घराट के पोष्टिक आटे का आनंद लिया जा सकता है। देलग व ऑन आदि गांवो में इस विरासत को आज भी जीवित रखा हुआ है।


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ओमप्रकाश के अनुसार खड़ के पानी के बहाव को कूल दवारा घराट की तरफ मोड़ा जाता है और घराटो के भीतर से पानी को पंखों पर डाला जाता है जिससे पंखे तेजी से घुमने लगते हैं जिस के कारण घराट की चक्की चलती है।उन्होंने बताया कि पानी के बहाव के अनुसार ही 80 से 100 किलो तक आटा पीसा जा सकता है ,क्योंकि चक्की में दाने धीरे धीरे निकलते है । घराट का आटा पोष्टिक ,लजीज व स्वास्थ्यवर्धक होता है।मशीनी युग मे आज भी लोग घराट में पीसा आटा खाना पसंद करते है।
Conclusion:जाडली, आउना, गम्बरपुल,देलग आदि गावं में आज भी कई परिवार घराट चलाकर परिवार का पोषण कर रहे है। गांव के लोग खड्ड के पानी को मोड कर कूल द्वारा पानी के बहाव से घराट को चलाते थे तथा गेहूं एवं मक्की की पिसाई करते थे परन्तु आज मशीनी दौर आने से कई परिवार घराट का काम छोड़कर मजदूरी व अन्य व्यवसाय करने के लिए मजबूर हो गए हैं।

देलग गावं में चार घराट करीब एक सदी से आज भी चल रहे है। देलग में घराट चलाने वाले ओमप्रकाश ने बताया कि पूरे दिन में करीब एक क्विंटल आटा पिसा जाता है।पहले कुनिहार,डुमेहर,रामशहर आदि क्षेत्रो के लोग इस क्षेत्र के घराटों से ही आटा ले जाते थे।

शिमला,सोलन सहित चंडीगढ़ तक यंहा से आटा जाता था।परन्तु आज पानी की कमी के कारण अधिकांश पन चक्कियां बंद हो गई है व लोगो द्वारा खड्ड से मोटर व पम्पों के माध्यम से कृषि के लिए पानी उठाने से गर्मियों में पानी की किल्लत हो जाती है व दो तीन महीनों तक यह कारोबार ठप्प हो जाता है।


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