सोलन: पूर्व सांसद व अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष वीरेंद्र कश्यप को सीडी मामले में स्पेशल कोर्ट से बड़ी राहत (Virender Kashyap got clean chit in CD case) मिली है. कोर्ट ने इस मामले में कश्यप को क्लीन चिट देते हुए बरी किया है. इस पर उन्होंने कहा कि 2009 में विरोधियों ने राजनीतिक भविष्य कलंकित करने के लिए षडयंत्र रचा था, इससे नुकसान भी हुआ, लेकिन अब कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए उन्हें इस मामले में बरी किया है.
वीरेंद्र कश्यप ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सत्य की जीत हुई है. उन्होंने कहा कि, '2009 में जब मैं लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रत्याशी बनने की कोशिश कर रहा था तो एक दिन राजनीतिक द्वेष के चलते कुछ लोगों ने उनके साथ ये खेल खेला था, जिसमें वे कामयाब नहीं हो पाए.अलबता, इससे नुकसान जरूर हुआ है. विरोधियों ने इसे कई जगह इस्तेमाल किया.' हालांकि उन्होंने इस वजह से 2019 में टिकट कटने की बात से इत्तेफाक नहीं रखते.
उन्होंने कहा कि पार्टी ने 2009 और 2014 में भी उन्हें लोकसभा की टिकट दी और वे जीतने में कामयाब रहे. इस मौके पर मौजूद केस की पैरवी करने वाले एडवोकेट सुधीर ठाकुर ने कहा कि एक फर्जी सीडी तैयार की गई थी जो 17 अप्रैल, 2009 की बताई गई और इसे 5 फरवरी, 2010 को जारी किया गया. 2014 को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (anti corruption act) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. कोर्ट ने इस सीडी को सही नहीं पाया और इसमें छेड़छाड़ से इनकार नहीं किया.
कांग्रेस ने शुरू करवाई थी जांच: वीरेंद्र कश्यप ने कहा कि इस मामले में एसआईटी गठित की गई थी. जांच में के बाद पाया गया कि इसमें केस नहीं बनता, क्योंकि उस समय वे किसी पद पर नहीं थे. कांग्रेस के सत्ता में आते ही इस मामले को चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि जिस समय यह घटना घटी, उस समय प्रदेश में भाजपा सरकार थी. उसके बाद वह सांसद बन गए. इस कारण मामले की जांच ठीक नहीं हो सकी.
वहीं, उन्होंने कहा कि इस पर सरकार की ओर से दायर शपथपत्र के अनुसार सितंबर, 2014 में उनके खिलाफ विजिलेंस विभाग ने मामला दर्ज किया. कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद (Former MP Virender Kashyap on Congress) सितंबर, 2014 में विजिलेंस विभाग ने केस दर्ज फिर जांच की. इस मामले में कोर्ट में 31 लोगों की गवाही हुई और इसके बाद उन्हें बाइज्जत बरी किया गया.
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