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नौणी विश्वविद्यालय में मछली पालन शुरू, किसानों के साथ छात्र भी होंगे लाभन्वित

डॉ. वाईएस. परमार औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने विश्वविद्यालय ( Dr. Yashwant Singh Parmar University of Horticulture & Forestry) के तालाबों में मछली पालन शुरू कर दिया है. विश्वविद्यालय में मत्स्य पालन के क्षेत्र का अध्ययन करने के लिए सहायक निदेशक मात्स्यिकी डॉ. हमीर चंद ने मुख्य परिसर के खेतों का दौरा किया. मत्स्य पालन शुरू करने से पहले, डॉ. सोम नाथ, वरिष्ठ मत्स्य अधिकारी ने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और प्रबंधकीय कर्मियों को वैज्ञानिक मछली पालन के विभिन्न पहलुओं से परिचित करवाने के लिए दो प्रशिक्षण प्रदान किए.

Nauni university start fish farming
नौणी विश्वविद्यालय में मछली पालन शुरू
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Published : Sep 16, 2021, 7:11 PM IST

सोलन: कृषि-बागवानी और संबद्ध गतिविधियों से किसानों की आय बढ़ाने के लिए डॉ. वाईएस. परमार औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने विश्वविद्यालय ( Dr. Yashwant Singh Parmar University of Horticulture & Forestry) के तालाबों में मछली पालन शुरू कर दिया है. हाल ही में, विश्वविद्यालय ने चार उन्नत प्रजातियों की 3,000 छोटी मछलियों को विश्वविद्यालय के तालाबों में डाला गया. इसके साथ ही नालागढ़ और देवली में मछली प्रजनन फार्मों का एक्सपोजर दौरा भी किया गया.

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. परविंदर कौशल ने मुख्य परिसर के मॉडल फार्म में जल भंडारण तालाबों में इन मछलियों को डाला. इस अवसर पर डॉ. एम के ब्रह्मी, ओएसडी, डॉ. के एस मौजूद रहे. बता दें कि इन मछलियों को हिमाचल प्रदेश राज्य मत्स्य विभाग के नालागढ़ प्रजनन फार्म से खरीदा गया था. इनमें हंगेरियन कार्प, मृगल, जयंती रोहू और कटला शामिल हैं. जहां हंगेरियन कार्प और मृगल बॉटम फीडर हैं. वहीं, जयंती रोहू और कटला ये कॉलम और सरफेस फीडर होती है.

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इस अवसर पर डॉ. परविंदर कौशल ने कहा कि विश्वविद्यालय ने कृषि-बागवानी, वानिकी और डेयरी गतिविधियों के अलावा मत्स्य पालन भी शुरू किया है. उन्होंने कहा कि कृषि-बागवानी और डेयरी गतिविधियों के साथ मत्स्य पालन से कृषि आय में वृद्धि हो सकती है. डॉ कौशल ने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक तर्ज पर वाणिज्यिक मत्स्य पालन और उत्पादन प्रदर्शन इकाइयों की स्थापना करना और नए तकनीकी हस्तक्षेपों के माध्यम से मछली पालन और प्रजनन प्रौद्योगिकी के शोधन पर कार्य करना है. डॉ. कौशल ने कहा कि हम भविष्य में पोल्ट्री और डक कल्चर को शामिल करके मछली आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल स्थापित करने की दिशा में कार्य करना चाहते हैं.

विश्वविद्यालय मछली पालन को व्यापक बनाने और किसानों, विशेष रूप से राज्य के बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करेगा, जिससे मछली पालन क्षेत्र को बढ़ाने और मछली उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने और उत्थान में मददगार होगा और किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. इसके अलावा, विश्वविद्यालय छात्रों को व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित होगा. विश्वविद्यालय ने हिमाचल प्रदेश में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए 3.00 करोड़ रुपये के वैज्ञानिक हस्तक्षेप और क्षमता निर्माण पर एक परियोजना प्रस्ताव भी तैयार किया है जिसे राज्य सरकार के माध्यम से भारत सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana) के तहत वित्तीय सहायता के लिए भेजा जाएगा.

ये भी पढ़ें: चुनावी वादा बनकर रह गया सिकरी धार सीमेंट प्लांट, रोजगार के लिए दूसरे राज्यों का रुख कर रहे चंबा के युवा

सोलन: कृषि-बागवानी और संबद्ध गतिविधियों से किसानों की आय बढ़ाने के लिए डॉ. वाईएस. परमार औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने विश्वविद्यालय ( Dr. Yashwant Singh Parmar University of Horticulture & Forestry) के तालाबों में मछली पालन शुरू कर दिया है. हाल ही में, विश्वविद्यालय ने चार उन्नत प्रजातियों की 3,000 छोटी मछलियों को विश्वविद्यालय के तालाबों में डाला गया. इसके साथ ही नालागढ़ और देवली में मछली प्रजनन फार्मों का एक्सपोजर दौरा भी किया गया.

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. परविंदर कौशल ने मुख्य परिसर के मॉडल फार्म में जल भंडारण तालाबों में इन मछलियों को डाला. इस अवसर पर डॉ. एम के ब्रह्मी, ओएसडी, डॉ. के एस मौजूद रहे. बता दें कि इन मछलियों को हिमाचल प्रदेश राज्य मत्स्य विभाग के नालागढ़ प्रजनन फार्म से खरीदा गया था. इनमें हंगेरियन कार्प, मृगल, जयंती रोहू और कटला शामिल हैं. जहां हंगेरियन कार्प और मृगल बॉटम फीडर हैं. वहीं, जयंती रोहू और कटला ये कॉलम और सरफेस फीडर होती है.

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इस अवसर पर डॉ. परविंदर कौशल ने कहा कि विश्वविद्यालय ने कृषि-बागवानी, वानिकी और डेयरी गतिविधियों के अलावा मत्स्य पालन भी शुरू किया है. उन्होंने कहा कि कृषि-बागवानी और डेयरी गतिविधियों के साथ मत्स्य पालन से कृषि आय में वृद्धि हो सकती है. डॉ कौशल ने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक तर्ज पर वाणिज्यिक मत्स्य पालन और उत्पादन प्रदर्शन इकाइयों की स्थापना करना और नए तकनीकी हस्तक्षेपों के माध्यम से मछली पालन और प्रजनन प्रौद्योगिकी के शोधन पर कार्य करना है. डॉ. कौशल ने कहा कि हम भविष्य में पोल्ट्री और डक कल्चर को शामिल करके मछली आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल स्थापित करने की दिशा में कार्य करना चाहते हैं.

विश्वविद्यालय मछली पालन को व्यापक बनाने और किसानों, विशेष रूप से राज्य के बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करेगा, जिससे मछली पालन क्षेत्र को बढ़ाने और मछली उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने और उत्थान में मददगार होगा और किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. इसके अलावा, विश्वविद्यालय छात्रों को व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित होगा. विश्वविद्यालय ने हिमाचल प्रदेश में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए 3.00 करोड़ रुपये के वैज्ञानिक हस्तक्षेप और क्षमता निर्माण पर एक परियोजना प्रस्ताव भी तैयार किया है जिसे राज्य सरकार के माध्यम से भारत सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana) के तहत वित्तीय सहायता के लिए भेजा जाएगा.

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