शिमला: चुनावी साल में हिमाचल की फिजाओं में एक बड़ा सवाल गूंज रहा है. क्या प्रदेश का सबसे बड़ा वोट बैंक सरकारी कर्मचारी भाजपा को सबक सिखाने के मूड में है? क्या मिशन रिपीट (Mission repeat in Himachal) के रास्ते में ओपीएस बड़ी बाधा है. सरकारी कर्मियों की यूं तो कई मांगें हैं, लेकिन ओपीएस उनमें सबसे प्रमुख है. उधर, विपक्षी दल कांग्रेस हर मंच से ये वादा कर रहा है कि सत्ता में आने पर वे ओपीएस बहाल (Demand of OPS in Himachal) करेंगे. कांग्रेस के सभी नेता इस मुद्दे पर एकमत हैं. यहां तक कि हाईकमान ने भी प्रदेश कांग्रेस को फ्री हैंड दिया कि वो ओपीएस पर हर मंच से पार्टी का पक्ष रखें.
कांग्रेस के हिमाचल चुनाव प्रभारी भूपेश बघेल ने शिमला में बा-कायदा प्रेस वार्ता में ओपीएस बहाल करने का ऐलान किया है. वहीं, भाजपा इस मसले पर मुख्य सचिव की अगुवाई में सिर्फ कमेटी बनाने तक ही सीमित है. कर्मचारी भी भांप गए हैं कि भाजपा सत्ता में वापिस आई तो ओपीएस पर फिर से टालमटोल होगी. ऐसे में ये सवाल टॉक ऑफ दि टाउन है कि क्या कर्मचारी भाजपा को इस बार चुनाव में सबक सिखाएंगे?
हिमाचल कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद दस दिन के भीतर ओपीएस लागू करने का वादा किया है. कांग्रेस ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ व झारखंड में ओपीएस को लेकर अपने वादे पर शुरुआती कदम बढ़ा दिए हैं. ओपीएस लागू करने के ऐलान के साथ ही कांग्रेस ने हिमाचल में भाजपा को मनोवैज्ञानिक रूप से बैक फुट पर धकेल दिया है. कांग्रेस का रुख साफ है कि सत्ता में आने पर हर हाल में ओपीएस लागू करेंगे. यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने ओपीएस बहाली को लेकर मां चिंतपूर्णी की कसम खाई है. वहीं, भाजपा की तरफ से ये कहा जा रहा है कि ओपीएस लागू करने के रास्ते में कई अड़चनें हैं.
सीएम जयराम ठाकुर ने कई मर्तबा मीडिया से बातचीत में कहा है कि राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने ओपीएस लागू करने का ऐलान किया है, लेकिन केंद्र के समक्ष मदद का हाथ पसार रहे हैं. जयपुर में उत्तर क्षेत्रीय परिषद की मीटिंग में गहलोत ने गृह मंत्री अमित शाह के समक्ष कहा कि केंद्र की मदद के बिना ओपीएस लागू करना संभव नहीं है. इधर, सरकारी कर्मचारियों का तर्क है कि ओपीएस उनका अधिकार है. अगस्त महीने के पहले पखवाड़े में न्यू पेंशन स्कीम के तहत आने वाले कर्मचारी शिमला से लेकर प्रदेश के अन्य स्थानों पर क्रमिक अनशन पर बैठे हैं. उन्हें जनसमर्थन भी मिल रहा है.
अब यदि प्रदेश में कर्मचारियों (Demands of employees in Himachal) के वोट बैंक पर नजर डालें तो कई समीकरण स्पष्ट होते हैं. प्रदेश में इस समय सरकाी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में 2,40,640 कर्मचारी सेवारत हैं. इसके अलावा प्रदेश में 1,90,000 पेंशनर्ज हैं. यदि ढाई लाख कर्मचारियों के साथ दस लोग भी जुड़े हों तो ये संख्या 25 लाख हो जाती हैं. इसमें से 20 लाख वोटर्स हो सकते हैं. ये वोटर्स यदि एक तरफ झुक जाएं तो सत्ता का तख्ता पलट जाएगा. इस समय सरकार से कर्मचारी अलग-अलग मुद्दों पर सरकार से नाराज हैं. सबसे बड़ा मुद्दा ओपीएस की बहाली है.
इसके अलावा नए वेतनमान के अनुसार वित्तीय लाभ का मसला भी है. एरियर के भुगतान को लेकर भी नाराजगी है. प्रदेश में तीस हजार से अधिक आउटसोर्स कर्मचारी हैं. वे भी अपने लिए पॉलिसी की मांग कर रहे हैं. सरकार ने उनकी मांगों को लेकर हाई पावर कमेटी भी बनाई है. इसे लेकर बैठकें भी हुई, लेकिन कोई ठोस आश्वासन अभी तक नहीं मिला है. ऐसे में सरकारी कर्मियों का हर वर्ग नाराज है. उधर, सीएम जयराम ठाकुर का कहना है कि उनकी सरकार ने कर्मियों को कई तरह के वित्तीय लाभ दिए हैं. यूजीसी स्केल लागू करने वाला हिमाचल अग्रणी राज्य है. यूजीसी स्केल देने से ही सालाना सरकार पर 300 करोड़ रुपए से अधिक का बोझ पड़ा है.
सरकार ने चार साल में कर्मियों को 7800 करोड़ रुपए से अधिक के वित्तीय लाभ दिए हैं. वरिष्ठ मीडिया कर्मी ओपी वर्मा का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारी हर चुनाव (Himachal Assembly Election 2022) में बड़ा फैक्टर है. ये प्रदेश का सबसे बड़ा वोट बैंक है. बेशक प्रदेश सरकार दावे कर रही है कि उसने कर्मचारियों को कई लाभ दिए हैं, लेकिन ओपीएस, आउटसोर्स व एरियर आदि को लेकर कर्मचारी नाराज हैं. यही नाराजगी भाजपा पर भारी पड़ेगी. कांग्रेस ने ओपीएस का मुद्दा लपक लिया है.
ये बात अलग है कि इसे बहाल करना इतना आसान नहीं होगा. भाजपा मुखिया सुरेश कश्यप का कहना है कि उनकी सरकार ने कर्मचारियों को कई तरह के लाभ दिए हैं. विपक्ष ओपीएस को लेकर वादा और दावा तो कर रहा है, लेकिन उसके पास रोडमैप नहीं है. फिलहाल, जिस तरह से सरकारी कर्मचारी ओपीएस, राइडर, एरियर आदि को लेकर सरकार से नाराज है, उससे भाजपा को चिंता होना लाजिम है.
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