शिमला: कांग्रेस के प्रमुख हस्ताक्षर और दिग्गज राजनेता वीरभद्र सिंह पिछले बरस जुलाई महीने में देह से स्मृति हो गए. हर साल 23 जून को उनकी जन्म तिथि मनाई जाती है. वीरभद्र सिंह से भावनात्मक रूप से जुड़े प्रदेश की जनता के लिए इस बार 23 जून की तारीख अलग होगी. इस दिन वीरभद्र सिंह देह रूप में नहीं दिखेंगे, लेकिन जनता के मन में उनकी स्मृतियां ताजा हैं. पिछले साल जिस समय वीरभद्र सिंह अनंत के सफर पर निकले थे तो शिमला में उनके सरकारी आवास होली लॉज के बाहर खड़े एक बुजुर्ग ने रुंधे हुए गले से कहा था-वीरभद्र सिंह राजनीति के राजा थे और हमेशा रहेंगे. ये शब्द एक ऐसे समर्थक के थे, जिसे सत्ता के गलियारों में बेशक कोई न पहचाने लेकिन ये आम जन से लेकर खास जन की भावना थी.
राजनीति के किंग थे वीरभद्र सिंह: वीरभद्र सिंह को राजनीति का किंग कहा जाता (virbhadra singh king of politics) है. जीवट वाले इस राजनेता (congress leader virbhadra singh) ने दो बार कोविड संक्रमण को मात दी थी, लेकिन लंबे समय से बीमारी को झेल रहे राजनीति के राजा अंतत: प्राणों की लड़ाई हार गए थे. हिमाचल की राजनीति की चर्चा वीरभद्र सिंह के बिना अधूरा मानी जाएगी. वे स्वभाव से ही संघर्षशील थे. पिछले साल यानी 2021 में अप्रैल महीने से आईजीएमसी अस्पताल में वे जीवन संघर्ष की मिसाल बने. दो बार कोविड को पराजित करना उनके जीवट की निशानी थी, किंतु उम्र के उस पड़ाव में अन्य गंभीर बीमारियों से वे पार नहीं पा सके. पक्ष और विपक्ष में समान रूप से आदर कमाने वाले वीरभद्र सिंह जनता के प्यार की पूंजी समेट कर पिछले साल जुलाई महीने में अनंत सफर पर चले गए.
छह बार रहे हिमाचल के मुख्यमंत्री: छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री पद की कमान संभालने वाले वीरभद्र सिंह ने पांच दशक से अधिक के अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन में जनता का भरपूर प्यार व समर्थन हासिल किया. इस पहाड़ी प्रदेश की नींव हिमाचल निर्माता डॉक्टर वाईएस परमार ने रखी और वीरभद्र सिंह ने उस नींव पर विकास का मजबूत ढांचा खड़ा किया. वीरभद्र सिंह ने केंद्र में भी महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले थे. कांग्रेस के महान नेता लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रेरणा से राजनीति में आए वीरभद्र सिंह ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव के साथ काम किया. अटल बिहारी वाजपेयी से भी उनके अच्छे संबंध रहे. अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान पर शिमला में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में वीरभद्र सिंह प्रमुखता के साथ शामिल हुए थे.
आम जनता से जुड़े थे राजा साहब: आखिर ऐसा क्या था कि वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश की जनता और यहां के राजनीतिक गलियारों में इतने लोकप्रिय रहे. इसके पीछे कई कारण हैं. वीरभद्र सिंह आम जनता से जुड़े रहे. साधनहीन लोगों के प्रति उनके मन में करुणा थी. वे जरूरतमंद लोगों के लिए हमेशा मदद पहुंचाते थे. वीरभद्र सिंह एक कुशल प्रशासक के तौर पर तो जाने ही जाते थे, उनका प्रदेश के विकास को लेकर भी स्पष्ट विजन था. वे अकेले अपने दम पर पार्टी को सत्ता में लाने में सक्षम थे. वर्ष 2012 के चुनाव से पूर्व हिमाचल में भाजपा काफी अच्छी स्थिति में थी. तब वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति से वापिस हिमाचल आए और अकेले अपने दम पर कांग्रेस को सत्ता में ले आए. वे छठी बार राज्य के सीएम बने थे. वीरभद्र सिंह भी हिमाचल की जनता की नब्ज से वाकिफ थे.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में किया विकास: हिमाचल प्रदेश में इस समय स्वास्थ्य व अन्य क्षेत्रों में जो आधारभूत ढांचा है, उसके पीछे वीरभद्र सिंह का ही विजन रहा है. आईजीएमसी अस्पताल में सुपर स्पेशिएलिटी डिपार्टमेंट्स शुरू करवाने में उनका योगदान था. यहां ओपन हार्ट सर्जरी की सुविधा इनके ही कार्यकाल में आरंभ हुई थी. तब वीरभद्र सिंह के प्रयासों से ही एम्स की टीम ने वर्ष 2005 में यहां आकर शुरुआती ऑपरेशन किए थे.
जब एक महिला ने राजा साहब से मांगी थी मदद: होली लॉज पहुंचने वाले हर फरियादी को वीरभद्र सिंह ने कभी खाली हाथ नहीं लौटाया. एक बार उनकी ससुराल जुन्गा की एक महिला बरसात के समय शिमला में फंस गई. घर जाने के लिए किराया नहीं था और छाता भी नहीं था. तब वो महिला किसी तरह होली लॉज पहुंची और वीरभद्र सिंह से कहा कि वो उनके ससुराल से है और मदद चाहती है. ये घटना 1995 की है. तब वीरभद्र सिंह ने उस महिला को पांच सौ रुपए दिए और साथ ही एक छाता भी दिया. इसी तरह सीएम रिलीफ फंड से मदद करने में भी वीरभद्र सिंह ने कभी भेदभाव नहीं किया. वर्ष 2006 में मंडी जिले के एक भाजपा समर्थक की बाइपास सर्जरी के लिए 1.26 लाख रुपए सेंक्शन किए थे. ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो उनकी लोकप्रियता को चार चांद लगाते रहे.
वीरभद्र सिंह का अफसरशाही पर था जबरदस्त कंट्रोल: हिमाचल के वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश लोहुमी, कृष्ण भानु, धनंजय शर्मा, संजीव शर्मा ने उनके राजनीतिक जीवन को करीब से देखा. इन सभी का कहना है कि वीरभद्र सिंह का कद इतना बड़ा रहा है कि उसे पक्ष-विपक्ष के दायरे में नहीं बांधा जा सकता. जो राजनेता छह बार प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो, उसका जनता से जुड़ाव का अंदाजा लगाया जा सकता है. हिमाचल में मीडिया कर्मी इस बात को एक मत से स्वीकार करते हैं कि वीरभद्र सिंह विजनरी नेता रहे और उनका अफसरशाही पर जबरदस्त कंट्रोल था. यही कारण है कि विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने में वे सफल रहे थे. जनता से सीधा संवाद और समर्थकों का आंख मूंदकर भरोसा करना वीरभद्र सिंह को वीरभद्र सिंह बनाता था.
ऐसे हुई थी राजनीतिक जीवन की शुरूआत: हिमाचल के 6 बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के (virbhadra singh political career) राजनीतिक जीवन के पांच दशकों की यात्रा की शुरुआत भी अचानक हुई है. देश के महान सपूत और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की प्रेरणा से वीरभद्र सिंह राजनीति में आए. वीरभद्र सिंह का इरादा अध्यापन करने का था. बुशहर रियासत के इस राजा ने आरंभिक स्कूली शिक्षा शिमला के विख्यात बिशप कॉटन स्कूल से की. उसके बाद दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से बीए (आनर्स) की डिग्री हासिल की. अध्ययन के बाद वे लाल बहादुर शास्त्री की सलाह पर 1962 के लोकसभा चुनाव में खड़े हो गए. महासू सीट से उन्होंने चुनाव जीता और तीसरी लोकसभा में पहली बार सांसद बने.
अगला चुनाव भी वीरभद्र सिंह ने महासू से ही जीता. फिर 1971 के लोकसभा चुनाव में भी वे विजयी हुए. यही नहीं, वीरभद्र सिंह सातवीं लोकसभा में भी सदस्य थे. उन्होंने 1980 का लोकसभा चुनाव जीता. अंतिम लोकसभा चुनाव उन्होंने मंडी सीट से वर्ष 2009 में जीता और केंद्रीय इस्पात मंत्री बने. इस तरह वीरभद्र सिंह पांच बार सांसद रहे. वे पहली बार केंद्रीय कैबिनेट में वर्ष 1976 में पर्यटन व नागरिक उड्डयन मंत्री बने, फिर 1982 में उद्योग राज्यमंत्री का पदभार संभाला. वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वे केंद्रीय इस्पात मंत्री बने. बाद में उन्हें केंद्रीय सूक्ष्म, लघु व मध्यम इंटरप्राइजिज मंत्री बनाया गया.
पांच दशक का राजनीतिक करियर: वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति में बेशक सक्रिय रहे, लेकिन उनका अधिकांश राजनीतिक जीवन हिमाचल की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमता रहा. वे अक्टूबर 1983 में पहली बार विधानसभा चुनाव की जंग में विजयी रहे, यह उपचुनाव था. उसके बाद वे जनरल इलेक्शन में 1985 में रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र से जीते. फिर वीरभद्र सिंह की चुनावी कर्मभूमि रोहड़ू रही. यहां से वे लगातार चुनाव जीतते रहे. कुल पांच दफा वे रोहड़ू से निर्वाचित हुए. पहली बार उन्होंने 8 अप्रैल 1983 को सीएम का पदभार संभाला. उसके बाद अगला विधानसभा चुनाव उन्होंने शिमला (ग्रामीण) सीट से जीता और छठी बार 25 दिसंबर 2012 को सीएम बने. वे एक विधानसभा चुनाव हार भी चुके हैं. वीरभद्र सिंह 1988 से 2003 तक हिमाचल में नेता प्रतिपक्ष रहे. वे चार दफा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी विराजमान रहे.
अंतिम चुनाव अर्की से लड़ा: वर्ष 2017 में जिस समय वीरभद्र सिंह प्रदेश के सीएम थे, उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र शिमला ग्रामीण की जनता को सरकारी निवास ओक ओवर में बुलाया. उस दौरान वीरभद्र सिंह ने अपने मतदाताओं से कहा कि वे विक्रमादित्य सिंह को चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं. उसके बाद विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण से चुनाव जीते और वीरभद्र सिंह ने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल लिया. वीरभद्र सिंह ने अर्की से चुनाव जीतकर रिकार्ड बनाया. इस तरह सदन में पिता-पुत्र की जोड़ी पहली बार देखी गई. विक्रमादित्य सिंह अपने पिता वीरभद्र सिंह को आदर्श मानते हैं और उन्हें ही अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं.
जन्मदिन पर ये होंगे ये कार्यक्रम: 23 जून को हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह के जन्मदिन को (Virbhadra Singh birthday celebrate as Vikas Diwas) कांग्रेस पार्टी विकास दिवस के रूप में (Virbhadra Singh birthday celebrate as Vikas Diwas) मनाने जा रही है. उनके जन्मदिन पर हर जिला व ब्लॉक स्तर पर रक्तदान शिविर आयोजित किये जाएंगे.
वृद्धाश्रम व बाल आश्रम में फल वितरण कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे. सभी जिला व ब्लॉक अध्यक्षों को कार्यक्रम में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने को कहा है. मुख्य कार्यक्रम कांग्रेस कार्यालय राजीव भवन में आयोजित किया जाएगा. वहीं, भराड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नाम पर करवाए जा रहे क्रिकेट प्रतियोगिता में प्रतिभा सिंह शिरकत करेंगी और वहां पर रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया जाएगा. इसके अलावा गेयटी थियेटर में भी कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा.