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हिमाचल में इसलिए पड़ी धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून की जरूरत, वीरभद्र सिंह ने डेढ़ दशक पहले भांप लिया था खतरा

Conversion in Himachal, देश में सबसे पहले हिमाचल प्रदेश में साल 2006 में धर्मांतरण पर वीरभद्र सिंह सरकार ने कानून बनाया था. बाद में साल 2019 में जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार ने धर्मपरिवर्तन पर सख्त कानून बनाया. वैसे तो हिमाचल में करीब 97 फीसदी हिंदू आबाजी है और 2.1 फीसदी मुस्लिम आबादी है बावजूद इसके छोटा सा पहाड़ी राज्य में धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून की जरूरत पड़ गई है. जानिए क्या है कारण...

strict law against conversion in himachal
हिमाचल में धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून.
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Published : Aug 17, 2022, 10:53 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में 97 प्रतिशत हिंदु आबादी है. यहां मुस्लिमों की जनसंख्या 2.1 फीसदी है. इसके अलावा सिक्ख व इसाई समुदाय की जनसंख्या भी बहुत कम है. इस तरह ये हैरानी वाली बात है कि करीब 97 फीसदी हिंदु आबादी वाले राज्य में सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून (strict law against conversion in himachal) की जरूरत आखिर क्यों पड़ी? वैसे बहुत कम लोगों को ये जानकारी होगी कि देश में सबसे पहले धर्मांतरण विरोधी कानून पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की सरकार ने लाया था. उसके बाद मौजूदा सरकार ने इसमें दो बार संशोधन किए.

पहले वर्ष 2019 में व दूसरा 2022 में हाल ही में किया गया. दरअसल, राज्य सरकार के पास विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट आई है कि हिमाचल में धर्मांतरण का सिलसिला तेजी से चल रहा है. खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने विधानसभा के मानसून सत्र (Himachal Assembly monsoon session 2022) में डेमोग्राफिक चेंज पर चिंता जताई है. सीएम जयराम ठाकुर ने इशारों ही इशारों में कहा है-ये देखना होगा कि हर शुक्रवार व रविवार को लोग कहां जा रहे हैं. इससे स्पष्ट है कि सरकार के पास मुस्लिम व इसाई संस्थाओं की गतिविधियों की रिपोर्ट है.

2006 में वीरभद्र सींह की सरकार में धर्मांतरण के खिलाफ कानून: हालांकि दूरदर्शी नेता वीरभद्र सिंह ने पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में बहुत पहले ही धर्मांतरण के खतरे को पहचान लिया था. हिमाचल देश का पहला राज्य है, जहां धर्मांतरण विरोधी कानून लाया गया था. वीरभद्र सिंह सरकार ने वर्ष 2006 में धर्मांतरण के खिलाफ कानून ( virbhadra singh on conversion in himachal) लाया था. उसके 13 साल बाद जयराम सरकार ने इसमें संशोधन किया. आखिर फिर क्या जरूरत हुई कि तीन साल के भीतर ही और संशोधन करना पड़ा है.

यहां इस कानून को लाने की जरूरत पर बात करना प्रासंगिक होगा. दरअसल, वीरभद्र सिंह की दूरदर्शी सोच ने ये भांप लिया था कि हिमाचल के साथ पंजाब, हरियाणा व उत्तराखंड सहित जेएंडके के कारण यहां धर्मांतरण का खतरा हो सकता है. साथ ही उन्होंने भविष्य में झांक लिया था कि हिमाचल में ईसाई मिशनरियां दुर्गम इलाकों में गरीब व साधनहीन लोगों को लालच देकर धर्म परिवर्तन करवा सकती है. समय के साथ वीरभद्र सिंह सरकार द्वारा लाए गए कानून में संशोधन की जरूरत महसूस हुई.

गरीब लोगों को लालच देकर धर्मांतरण की सूचनाएं: हुआ यूं था कि ऊपरी शिमला में अनुसूचित जाति के गरीब लोगों को लालच देकर धर्मांतरण की सूचनाएं (Conversion in Himachal) सरकार को मिली. धीरे-धीरे ये ट्रेंड बढऩे लगा और रविवार को ईसाइयों की प्रार्थना सभा में पहाड़ के कई लोग खासकर महिलाएं नजर आने लगीं. फिर सरकार के पास ये रिपोर्ट आई कि धर्म परिवर्तन करने वाले अपना नाम नहीं बदल रहे हैं और हिंदु धर्म में जाति विशेष के नाते मिलने वाले लाभ भी ले रहे हैं. जब अलग-अलग एजेंसियों की रिपोर्ट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Himachal CM Jairam Thakur) के पास पहुंची तो सरकार के कान खड़े हुए.

इन क्षेत्रों में बढ़ रही मस्जिदों की संख्या: यही नहीं, सूत्रों के अनुसार संघ की गोपनीय बैठकों में भी ये मुद्दा उठा कि सिरमौर, ऊना, चंबा, मंडी में अचानक से मस्जिदों की संख्या बढ़ रही है और इन मस्जिदों में बाहरी राज्यों के मौलवी आ रहे हैं. उसके बाद सरकार ने धर्मांतरण कानून को और सख्त करने के लिए विधानसभा के मानसून सत्र में संशोधन बिल लाया. इसमें सजा को सात साल से बढ़ाकर दस साल किया गया और धर्मांतरण करने के बाद जाति विशेष के तहत मिलने वाले लाभों से भी वंचित करने का प्रावधान है. इसके अलावा सजा भी तय की गई है. हालांकि हिमाचल विधानसभा में विपक्ष की तरफ से ये कहा गया कि 97 फीसदी आबादी को तीन फीसदी से क्या खतरा है. इसी पर सीएम जयराम ठाकुर ने सदन में कहा था कि जो परिस्थितियां पैदा हुई हैं, उन्हें लेकर चुप नहीं रहा जा सकता.

हिमाचल में धर्मांतरण विरोधी कानून: उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में जिस समय जयराम सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून लाया था. तब भाजपा नेता राकेश पठानिया ने सदन में खुलकर कहा था कि पंजाब से रविवार को ईसाई मिशनरियां हिमाचल आकर भोले लोगों को लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाते हैं. तब तीन साल पहले सीएम जयराम ठाकुर ने भी कहा था कि जो आंखों के सामने हो रहा है, उसे अनदेखा नहीं कर सकते. वहीं, संसदीय का र्यमंत्री सुरेश भारद्वाज (Parliamentary Affairs Minister Suresh Bhardwaj) ने कहा था कि जब वर्ष 2006 में वीरभद्र सिंह सरकार ने ये कानून लाया था तो उन्होंने निजी तौर पर उनके आवास में जाकर बधाई दी थी.

सीमांत इलाकों में स्थिति चिंताजनक: फिलहाल, सरकार के पास आई रिपोर्ट में पता चला है कि सीमांत इलाकों में स्थिति चिंताजनक है. इसके अलावा हाल ही के वर्षों में सीमांत इलाकों में मस्जिदों की संख्या (Number of Mosques in Himachal) भी बढ़ी है. इसे देखते हुए सरकार ने फिर से धर्मांतरण विरोधी कानून में संशोधन किया है. नए संशोधित बिल में सजा को और सख्त किया गया है. साथ ही जाति विशेष के लाभ लेने वालों पर भी शिकंजा कसने का काम किया है. सूत्र बताते हैं कि सरकार ने प्रशासनिक मशीनरी को ये आदेश दिए हैं कि लालच देकर, जबरन और लव जिहाद के एंगल को कतई नजर अंदाज न किया जाए.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में अब और कड़ा हुआ धर्मांतरण कानून, अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान

शिमला: हिमाचल प्रदेश में 97 प्रतिशत हिंदु आबादी है. यहां मुस्लिमों की जनसंख्या 2.1 फीसदी है. इसके अलावा सिक्ख व इसाई समुदाय की जनसंख्या भी बहुत कम है. इस तरह ये हैरानी वाली बात है कि करीब 97 फीसदी हिंदु आबादी वाले राज्य में सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून (strict law against conversion in himachal) की जरूरत आखिर क्यों पड़ी? वैसे बहुत कम लोगों को ये जानकारी होगी कि देश में सबसे पहले धर्मांतरण विरोधी कानून पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की सरकार ने लाया था. उसके बाद मौजूदा सरकार ने इसमें दो बार संशोधन किए.

पहले वर्ष 2019 में व दूसरा 2022 में हाल ही में किया गया. दरअसल, राज्य सरकार के पास विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट आई है कि हिमाचल में धर्मांतरण का सिलसिला तेजी से चल रहा है. खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने विधानसभा के मानसून सत्र (Himachal Assembly monsoon session 2022) में डेमोग्राफिक चेंज पर चिंता जताई है. सीएम जयराम ठाकुर ने इशारों ही इशारों में कहा है-ये देखना होगा कि हर शुक्रवार व रविवार को लोग कहां जा रहे हैं. इससे स्पष्ट है कि सरकार के पास मुस्लिम व इसाई संस्थाओं की गतिविधियों की रिपोर्ट है.

2006 में वीरभद्र सींह की सरकार में धर्मांतरण के खिलाफ कानून: हालांकि दूरदर्शी नेता वीरभद्र सिंह ने पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में बहुत पहले ही धर्मांतरण के खतरे को पहचान लिया था. हिमाचल देश का पहला राज्य है, जहां धर्मांतरण विरोधी कानून लाया गया था. वीरभद्र सिंह सरकार ने वर्ष 2006 में धर्मांतरण के खिलाफ कानून ( virbhadra singh on conversion in himachal) लाया था. उसके 13 साल बाद जयराम सरकार ने इसमें संशोधन किया. आखिर फिर क्या जरूरत हुई कि तीन साल के भीतर ही और संशोधन करना पड़ा है.

यहां इस कानून को लाने की जरूरत पर बात करना प्रासंगिक होगा. दरअसल, वीरभद्र सिंह की दूरदर्शी सोच ने ये भांप लिया था कि हिमाचल के साथ पंजाब, हरियाणा व उत्तराखंड सहित जेएंडके के कारण यहां धर्मांतरण का खतरा हो सकता है. साथ ही उन्होंने भविष्य में झांक लिया था कि हिमाचल में ईसाई मिशनरियां दुर्गम इलाकों में गरीब व साधनहीन लोगों को लालच देकर धर्म परिवर्तन करवा सकती है. समय के साथ वीरभद्र सिंह सरकार द्वारा लाए गए कानून में संशोधन की जरूरत महसूस हुई.

गरीब लोगों को लालच देकर धर्मांतरण की सूचनाएं: हुआ यूं था कि ऊपरी शिमला में अनुसूचित जाति के गरीब लोगों को लालच देकर धर्मांतरण की सूचनाएं (Conversion in Himachal) सरकार को मिली. धीरे-धीरे ये ट्रेंड बढऩे लगा और रविवार को ईसाइयों की प्रार्थना सभा में पहाड़ के कई लोग खासकर महिलाएं नजर आने लगीं. फिर सरकार के पास ये रिपोर्ट आई कि धर्म परिवर्तन करने वाले अपना नाम नहीं बदल रहे हैं और हिंदु धर्म में जाति विशेष के नाते मिलने वाले लाभ भी ले रहे हैं. जब अलग-अलग एजेंसियों की रिपोर्ट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Himachal CM Jairam Thakur) के पास पहुंची तो सरकार के कान खड़े हुए.

इन क्षेत्रों में बढ़ रही मस्जिदों की संख्या: यही नहीं, सूत्रों के अनुसार संघ की गोपनीय बैठकों में भी ये मुद्दा उठा कि सिरमौर, ऊना, चंबा, मंडी में अचानक से मस्जिदों की संख्या बढ़ रही है और इन मस्जिदों में बाहरी राज्यों के मौलवी आ रहे हैं. उसके बाद सरकार ने धर्मांतरण कानून को और सख्त करने के लिए विधानसभा के मानसून सत्र में संशोधन बिल लाया. इसमें सजा को सात साल से बढ़ाकर दस साल किया गया और धर्मांतरण करने के बाद जाति विशेष के तहत मिलने वाले लाभों से भी वंचित करने का प्रावधान है. इसके अलावा सजा भी तय की गई है. हालांकि हिमाचल विधानसभा में विपक्ष की तरफ से ये कहा गया कि 97 फीसदी आबादी को तीन फीसदी से क्या खतरा है. इसी पर सीएम जयराम ठाकुर ने सदन में कहा था कि जो परिस्थितियां पैदा हुई हैं, उन्हें लेकर चुप नहीं रहा जा सकता.

हिमाचल में धर्मांतरण विरोधी कानून: उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में जिस समय जयराम सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून लाया था. तब भाजपा नेता राकेश पठानिया ने सदन में खुलकर कहा था कि पंजाब से रविवार को ईसाई मिशनरियां हिमाचल आकर भोले लोगों को लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाते हैं. तब तीन साल पहले सीएम जयराम ठाकुर ने भी कहा था कि जो आंखों के सामने हो रहा है, उसे अनदेखा नहीं कर सकते. वहीं, संसदीय का र्यमंत्री सुरेश भारद्वाज (Parliamentary Affairs Minister Suresh Bhardwaj) ने कहा था कि जब वर्ष 2006 में वीरभद्र सिंह सरकार ने ये कानून लाया था तो उन्होंने निजी तौर पर उनके आवास में जाकर बधाई दी थी.

सीमांत इलाकों में स्थिति चिंताजनक: फिलहाल, सरकार के पास आई रिपोर्ट में पता चला है कि सीमांत इलाकों में स्थिति चिंताजनक है. इसके अलावा हाल ही के वर्षों में सीमांत इलाकों में मस्जिदों की संख्या (Number of Mosques in Himachal) भी बढ़ी है. इसे देखते हुए सरकार ने फिर से धर्मांतरण विरोधी कानून में संशोधन किया है. नए संशोधित बिल में सजा को और सख्त किया गया है. साथ ही जाति विशेष के लाभ लेने वालों पर भी शिकंजा कसने का काम किया है. सूत्र बताते हैं कि सरकार ने प्रशासनिक मशीनरी को ये आदेश दिए हैं कि लालच देकर, जबरन और लव जिहाद के एंगल को कतई नजर अंदाज न किया जाए.

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