शिमला: हिमाचल प्रदेश में राजभवन व सरकार के बीच टकराव इन दिनों चर्चा में है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार ने विधानसभा के मानसून सेशन में दल बदलने वाले कानून के तहत अयोग्य घोषित हुए विधायकों की पेंशन और भत्ते रोकने वाला बिल पास किया था. तय प्रक्रिया के अनुसार विधानसभा के पारित किए गए उस बिल को मंजूरी के लिए राजभवन भेजा गया था. राजभवन ने बिल पर आपत्तियां दर्ज कीं. राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने बिल पर कुछ सवाल उठाए और टिप्पणी भी दर्ज की थी. अब राजभवन से ये बिल वापस सरकार को भेज दिया गया है,
क्या लिखा है राजभवन ने?
हिमाचल प्रदेश राजभवन ने बिल में टिप्पणी दर्ज की है. उस टिप्पणी में लिखा है "हिमाचल प्रदेश विधानसभा (सदस्यों के भत्ते और पेंशन) संशोधन विधेयक 2024 को विधानसभा द्वारा पारित कर मेरी अनुमति हेतु भेजा गया है. नास्ति का अवलोकन करने पर पाया गया है कि संशोधन विधेयक की धारा 6 (ख) में लागू होने की तिथि नहीं बताई गई है. संशोधन विधेयक 2024 में यह प्रस्तावित है कि संविधान की दसवीं अनुसूची के अनुसार किसी भी समय अयोग्य घोषित होने पर कोई व्यक्ति पेंशन पाने के लिए अयोग्य हो जाएगा. इसके अलावा यह प्रावधान किया गया है कि पहले से प्राप्त पेंशन की वसूली अयोग्य घोषित व्यक्ति से की जाएगी. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उपर्युक्त प्रावधान के अनुसार विधानसभा का फिर से सदस्य बनने के लिए व्यक्ति को दी जा रही अतिरिक्त पेंशन की भी वसूली की जानी है या नहीं? यदि कोई अयोग्य व्यक्ति फिर निर्वाचित होकर विधानसभा का सदस्य बनता है तो ऐसी स्थिति में क्या उसे अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद पेंशन मिलनी शुरू हो जाएगी या वह अयोग्य व्यक्ति के रूप में ही रहेगा? ऐसा व्यक्ति पेंशन का पात्र होगा या नहीं? यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है"
बीजेपी ने भी किया था बिल का विरोध
उल्लेखनीय है कि ये बिल विधानसभा के मानसून सेशन के दौरान 4 सितंबर को पारित हुआ था. उस समय विपक्ष के तौर पर भाजपा ने इस बिल का विरोध किया था. हिमाचल प्रदेश में फरवरी 2014 के दौरान राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी को पराजय का सामना करना पड़ा था. तब कांग्रेस के छह विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी. तीन निर्दलीय विधायकों ने भी भाजपा के प्रत्याशी को ही वोट दिया था. कांग्रेस विधायकों के खिलाफ बाद में पार्टी ने दलबदल कानून के तहत कार्रवाई की थी. बाद में सभी छह विधायकों ने भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ा. उनमें से सुधीर शर्मा व इंद्र दत्त लखनपाल फिर से चुनाव जीते और बाकी चुनाव हार गए थे.
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निर्दलीय आशीष शर्मा भी हमीरपुर से चुनाव जीत गए. दलबदल कानून के तहत अयोग्य करार दिए गए विधायकों की पेंशन व भत्ते रोकने के लिए ही विधेयक लाया गया था. विधेयक चार सिंतबर 2024 को पारित हुआ था. अब उसे राजभवन ने रोक कर वापस सरकार को लौटा दिया है.
नौतोड़ के मामले में भी टकराव
हिमाचल के जनजातीय इलाकों में पात्र लोगों को नौतोड़ कानून के तहत जमीन मिलती है. जनजातीय इलाकों में जिन लोगों के पास 20 बीघा से कम जमीन होती है, उन्हें 20 बीघा कुल भूमि देने के लिए नौतोड़ कानून के तहत मंजूरी मिलती है. इसके लिए पात्र व्यक्ति राजस्व विभाग में आवेदन करता है. इस समय राज्य के पास करीब 12 हजार 742 आवेदन लंबित हैं.
केंद्र के फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के प्रावधानों के लागू होने से जमीन उपलब्ध करवाने में दिक्कत आती है. राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में है कि वे जनजातीय इलाकों में एफसीए यानी फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के प्रावधानों को निरस्त कर सकते हैं. उसके बाद ही नौतोड़ के तहत आवेदनकर्ताओं को जमीन राज्य सरकार दे सकती है. जब राजभवन से एफसीए एक्ट जनजातीय इलाकों के लिए निलंबित होगा, तभी राजस्व विभाग पात्र आवेदकों को जमीन देगा. राजभवन ने इस विधेयक में पात्र लोगों के नाम व पते मांगे हैं. फिलहाल, ये बिल भी सरकार को वापस लौटाया गया है. अब इस बिल को लेकर राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी फिर से राजभवन में जाकर राज्यपाल से मुलाकात करने की बात कह रहे हैं.
हालांकि राजभवन व राजस्व मंत्री के बीच इस मसले पर बयानों की जंग भी देखने को मिल चुकी है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा ने कहा "राजभवन के पास ये अधिकार है कि वो विधानसभा में पारित बिलों पर सरकार से सवाल कर सकते हैं. राजभवन ना केवल बिल को होल्ड कर सकता है, बल्कि सरकार को वापस भी लौटा सकता है. ये राजभवन के विवेक पर निर्भर करता है."