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SFI ने शिमला में की प्रेस वार्ता, इस मुद्दे पर विश्वविद्यालय प्रशासन को घेरा - एसएफआई का आरोप

एसएफआई का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन मात्र अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए धांधलियां पीएचडी के अंदर कर रहा है. विश्वविद्यालय में जो भी एडमिशन पीएचडी में हुई है, यूजीसी और विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस के नियमों को दरकिनार करते हुए कुलपति द्वारा अपने फायदे के लिए की गई है.

एसएफआई की प्रेस वार्ता
एसएफआई की प्रेस वार्ता
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Published : Oct 25, 2021, 5:31 PM IST

शिमला: विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई ने पीएचडी में बिना प्रवेश परीक्षा के हुए दाखिलों को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और उन दाखिलों को निरस्त करने की मांग उठाई. प्रेस वार्ता में कैंपस सचिव रॉकी ने विश्वविद्यालय में हुई हाल ही में पीएचडी में हुए दाखिलों पर आपत्ति जताते हुए इसे अध्यादेश और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अवहेलना बताया.

परिसर सचिव रॉकी का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन मात्र अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए इस तरह की धांधलियां पीएचडी के अंदर कर रहा है. विश्वविद्यालय में जो भी एडमिशन पीएचडी में हुई है, यूजीसी और विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस के नियमों को दरकिनार करते हुए कुलपति द्वारा अपने फायदे के लिए की गई है.

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एसएफआई का कहना है यदि इस तरह की सुपरन्यूमैरेरी सीट आप रख रहे हैं तो, इसमें जितने भी प्राध्यापक कॉलेजों और विश्वविद्यालय के अंदर पढ़ाते हैं उन्हें समान अवसर का मौका मिलना चाहिए. जो कि प्रवेश परीक्षा के माध्यम से ही दिया जाना था. जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नहीं दिया गया, क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश की सरकार अपने चहेतों का दाखिला पीएचडी के अंदर करवाना चाहती हैं. इस विश्वविद्यालय को एक विशेष विचारधारा का अड्डा बनाना चाहती है.

एसएफआई ने सवाल उठाया की अगर एक छात्र पीएचडी में प्रवेश के लिए परीक्षा पास कर सकता है तो एक अध्यापक क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी भगवाकरण की इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए 21 अगस्त 2021 को एग्जीक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में यह पारित किया की विश्वविद्यालय का प्राध्यापक व कर्मचारी वर्ग अपने बच्चों की एडमिशन पीएचडी के अंदर बिना किसी प्रवेश परीक्षा के करवा सकता है. सबसे पहले जिनके बच्चे इसके माध्यम से पीएचडी में दाखिला लेते हैं, वह विश्वविद्यालय का कुलपति, डीन ऑफ सोशल साइंसेज, डायरेक्टर हैं.

इससे यह सिद्ध होता है की यह कहीं ना कहीं उन 1200 से अधिक कर्मचारियों व 300 से अधिक प्राध्यापकों के बच्चों के साथ भी भेदभाव है. समान अवसर के अधिकार को छीन लिया गया है, क्योंकि सबसे पहले जिनके बच्चों की भर्ती पीएचडी में हुई है वे विश्वविद्यालय के सबसे सर्वोच्च स्थान पर बैठे हुए अधिकारी हैं और कहीं ना कहीं प्रभावशाली लोग हैं.

विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई सचिव रॉकी ने कहा कि ईसी के द्वारा इस कोटे के तहत यह सीटें निकाली गई, लेकिन इन सीटों को विज्ञापित भी नहीं किया गया और ना ही प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया. जो कि समान अवसर के अधिकार की भी छीनना है और यूजीसी की गाइडलाइंस की अवहेलना है. ऐसे में एसएफआई इन भर्तियों को निरस्त करने की मांग करती है.

बता दें कि विश्वविद्यालय के अंदर कार्यकारी परिषद ईसी में तय किया गया की हाल ही में जिन प्रोफेसर की भर्तियां हुई हैं और जिन अध्यापकों की पीएचडी पूरी नहीं हुई है, वो पीएचडी में बिना एंट्रेस एग्जाम के एडमिशन ले सकते हैं. उनके लिए ईसी के अंदर एक सुपरन्यूमैरेरी सीट का प्रस्ताव पास किया गया है.

ये भी पढ़ें: चुनाव के अंतिम दिनों में भाजपा बांटेगी पैसा और शराब: MLA विक्रमादित्य सिंह

शिमला: विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई ने पीएचडी में बिना प्रवेश परीक्षा के हुए दाखिलों को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और उन दाखिलों को निरस्त करने की मांग उठाई. प्रेस वार्ता में कैंपस सचिव रॉकी ने विश्वविद्यालय में हुई हाल ही में पीएचडी में हुए दाखिलों पर आपत्ति जताते हुए इसे अध्यादेश और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अवहेलना बताया.

परिसर सचिव रॉकी का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन मात्र अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए इस तरह की धांधलियां पीएचडी के अंदर कर रहा है. विश्वविद्यालय में जो भी एडमिशन पीएचडी में हुई है, यूजीसी और विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस के नियमों को दरकिनार करते हुए कुलपति द्वारा अपने फायदे के लिए की गई है.

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एसएफआई का कहना है यदि इस तरह की सुपरन्यूमैरेरी सीट आप रख रहे हैं तो, इसमें जितने भी प्राध्यापक कॉलेजों और विश्वविद्यालय के अंदर पढ़ाते हैं उन्हें समान अवसर का मौका मिलना चाहिए. जो कि प्रवेश परीक्षा के माध्यम से ही दिया जाना था. जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नहीं दिया गया, क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश की सरकार अपने चहेतों का दाखिला पीएचडी के अंदर करवाना चाहती हैं. इस विश्वविद्यालय को एक विशेष विचारधारा का अड्डा बनाना चाहती है.

एसएफआई ने सवाल उठाया की अगर एक छात्र पीएचडी में प्रवेश के लिए परीक्षा पास कर सकता है तो एक अध्यापक क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी भगवाकरण की इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए 21 अगस्त 2021 को एग्जीक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में यह पारित किया की विश्वविद्यालय का प्राध्यापक व कर्मचारी वर्ग अपने बच्चों की एडमिशन पीएचडी के अंदर बिना किसी प्रवेश परीक्षा के करवा सकता है. सबसे पहले जिनके बच्चे इसके माध्यम से पीएचडी में दाखिला लेते हैं, वह विश्वविद्यालय का कुलपति, डीन ऑफ सोशल साइंसेज, डायरेक्टर हैं.

इससे यह सिद्ध होता है की यह कहीं ना कहीं उन 1200 से अधिक कर्मचारियों व 300 से अधिक प्राध्यापकों के बच्चों के साथ भी भेदभाव है. समान अवसर के अधिकार को छीन लिया गया है, क्योंकि सबसे पहले जिनके बच्चों की भर्ती पीएचडी में हुई है वे विश्वविद्यालय के सबसे सर्वोच्च स्थान पर बैठे हुए अधिकारी हैं और कहीं ना कहीं प्रभावशाली लोग हैं.

विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई सचिव रॉकी ने कहा कि ईसी के द्वारा इस कोटे के तहत यह सीटें निकाली गई, लेकिन इन सीटों को विज्ञापित भी नहीं किया गया और ना ही प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया. जो कि समान अवसर के अधिकार की भी छीनना है और यूजीसी की गाइडलाइंस की अवहेलना है. ऐसे में एसएफआई इन भर्तियों को निरस्त करने की मांग करती है.

बता दें कि विश्वविद्यालय के अंदर कार्यकारी परिषद ईसी में तय किया गया की हाल ही में जिन प्रोफेसर की भर्तियां हुई हैं और जिन अध्यापकों की पीएचडी पूरी नहीं हुई है, वो पीएचडी में बिना एंट्रेस एग्जाम के एडमिशन ले सकते हैं. उनके लिए ईसी के अंदर एक सुपरन्यूमैरेरी सीट का प्रस्ताव पास किया गया है.

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