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हिमाचल का सबसे बड़ा स्कैम: 250 करोड़ का छात्रवृत्ति घोटाला, HC की सख्ती के बाद नींद से जागी सीबीआई

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Published : Apr 9, 2022, 9:59 AM IST

Updated : Apr 9, 2022, 11:50 AM IST

छात्रवृत्ति घोटाले में सीबीआई ने (Scholarship scam in himachal) तीन निजी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधकों और दो रजिस्ट्रार समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया है. सीबीआई ने यह बड़ी कार्रवाई हिमाचल प्रदेश के अलावा चंडीगढ़ और हरियाणा में की है. हैरत की बात है कि आठ साल पहले के घोटाले की जांच लंबे समय से सीबीआई के पास है. इस दौरान जांच एजेंसी ने अदालत में सील्ड कवर रिपोर्ट्स पेश की हैं, लेकिन छह महीने में सीबीआई कोई चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई है. जांच एजेंसी अब तक हाईकोर्ट में मामले की जांच को लेकर सात स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल कर चुकी है

scholarship scam in himachal pradesh
हिमाचल का सबसे बड़ा स्कैम

शिमला: हिमाचल प्रदेश में स्कॉलरशिप स्कैम (HP Scholarship scam) लगातार सुर्खियों में रहा है. इतिहास के सबसे बड़े घोटाले (Scholarship scam in himachal) में देश की सबसे तेजतर्रार जांच एजेंसी सीबीआई भी अपनी साख के अनुरूप परिणाम नहीं दे पा रही है. ढ़ाई सौ करोड़ से अधिक के स्कॉलरशिप स्कैम मामले में हाईकोर्ट में भी याचिका दाखिल है और अदालत सीबीआई से स्टेट्स रिपोर्ट तलब करती है. इसी कड़ी में हाईकोर्ट ने चार अप्रैल को सीबीआई को धीमी जांच के लिए फटकार लगाई. हाईकोर्ट की सख्ती के बाद सीबीआई की नींद टूटी और 8 अप्रैल को जांच एजेंसी ने घोटाले से जुड़े सात लोगों को गिरफ्तार किया.

हैरत की बात है कि आठ साल पहले के घोटाले की जांच लंबे समय से सीबीआई के पास है. इस दौरान जांच एजेंसी ने अदालत में सील्ड कवर रिपोर्ट्स पेश की हैं, लेकिन छह महीने में सीबीआई कोई चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई है. जांच एजेंसी अब तक हाईकोर्ट में मामले की जांच को लेकर सात स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल कर चुकी है. हाल ही में हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई पर सीबीआई को फटकार लगाई. अदालत ने हैरानी जताई कि अक्टूबर 2021 में जांच का जो स्टेट्स था, चार महीने बीत जाने के बाद भी जांच वहीं खड़ी है. अब हाईकोर्ट ने सीबीआई को सक्षम कोर्ट के सामने आरोप पत्र दाखिल करने का एक और मौका दिया है. यही नहीं, सीबीआई को 20 अप्रैल को हाईकोर्ट में ताजा स्टेट्स रिपोर्ट पेश करनी होगी. अदालत की इसी सख्ती के कारण सीबीआई ने जांच में तेजी लाई है. शुक्रवार को सात लोगों की गिरफ्तारी इसका संकेत है.

आखिर ये स्कॉलरशिप स्कैम (Himachal Scholarship scam) है क्या और अब तक इस मामले में क्या अपडेट हुई हैं, ये जानना जरूरी है. हिमाचल के छात्रों के हक पर डाले जा रहे इस डाके की पोल बड़े समय बाद खुली थी. जैसे ही घोटाले का पता चला, हिमाचल की जयराम सरकार ने इसकी सीबीआई जांच के आदेश दिए। मई 2019 यानी करीब तीन साल पहले सीबीआई ने विधिवत मामला दर्ज कर जांच शुरू की. अब जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार का कार्यकाल पूरा होने की दिशा में है, लेकिन जांच अभी अधूरी है. कुल घोटाला 250 करोड़ रुपए का है. हिमाचल ही नहीं, देश के अन्य राज्यों में भी ठगों का जाल फैला था, जिसने इस घोटाले को अंजाम दिया. दरअसल, फर्जी संस्थान खोलकर बैंक खातों में फर्जी तरीके से स्कॉलरशिप की रकम जमा की जाती रही.

घोटाले की तह में जाने से पहले मामले की ताजा स्थिति पर नजर डालते हैं. सीबीआई ने हाल ही में हाईकोर्ट में जो स्टेट्स रिपोर्ट पेश की है, उसके अनुसार अब तक की जांच में 1176 संस्थानों की संलिप्तता का पता चला है. छात्रवृत्ति देने वाले 266 निजी संस्थानों में से 28 संस्थानों को घोटाले में शामिल पाया गया है. सीबीआई के अनुसार उन 28 संस्थानों में से 11 की जांच पहले ही पूरी हो चुकी है. जांच के बाद आरोप पत्र भी दाखिल किए गए हैं. अभी 17 संस्थानों के खिलाफ जांच चल रही है.

कुल ढाई सौ करोड़ रुपए से अधिक के स्कॉलरशिप स्कैम में एक-एक कदम पर जमकर धांधली हुई. छात्रवृत्ति की रकम की मनमानी बंदरबांट की गई. संस्थानों के दस्तावेजों की जांच किए बिना ही पैसा बांट दिया गया।. यहां बता दें कि वित्तीय वर्ष 2013-14 में स्कॉलरशिप का ऑन लाइन पोर्टल तैयार हुआ. फिर समय-समय पर 250 करोड़ की रकम निजी शिक्षण संस्थानों के खाते में डाल दी गई. इस रकम में से कुल 56 करोड़ की राशि ही सरकारी संस्थानों में अध्ययन करने वाले बच्चों के खाते में जमा हुई. हैरत है कि 2013-14 के बाद से ही कई छात्र शिक्षा विभाग में शिकायत कर रहे थे कि उन्हें स्कॉलरशिप का पैसा नहीं मिल रहा है, लेकिन किसी ने भी इन शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया.

केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं के तहत राज्य का शिक्षा विभाग छात्रवृत्ति में पहले अपने हिस्से की रकम डाल कर देता है. इसके बाद इस राशि का उपयोगिता प्रमाण (यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट यानी यूसी) पत्र केंद्र को भेजा जाता है. फिर केंद्र सरकार इसके बाद अपने हिस्से का पैसा जारी करती है. धांधली का आलम ये था कि हिमाचल शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने उपयोगिता प्रमाण पत्र भेजने में भी दस्तावेजों की हेराफेरी की. स्कॉलरशिप की रकम किस संस्थान में पढ़ रहे किस छात्र को दी गई, इसकी कोई जानकारी ही दर्ज नहीं की गई.

प्रदेश के जनजातीय जिलों के स्टूडेंट्स के नाम पर भी करीब 50 करोड़ की रकम जमा हुई, लेकिन लाहौल स्पीति से शिकायतें आई कि छात्रों को स्कॉलरशिप का भुगतान ही नहीं हुआ है. वर्ष 2016 में कैग ने छात्रवृत्ति की 8 करोड़ की रकम गैर यूजीसी मान्यता हासिल संस्थानों को बांटने का मामला उजागर किया. फिर भी शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अफसरों पर कोई असर नहीं हुआ. शिक्षा विभाग ने कैग की रिपोर्ट पर जवाब दिया कि छात्रवृत्ति की राशि आबंटन में यह नहीं लिखा गया है कि सिर्फ यूजीसी की तरफ से मान्यता हासिल संस्थानों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को ही इस राशि का भुगतान किया जा सकता है.

मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद केंद्र व प्रदेश सरकार की 20 से अधिक योजनाओं के तहत स्कॉलरशिप दी जाती है. स्कॉलरशिप योजना 2013 से पहले ऑन लाइन नहीं थी, लिहाजा इससे पहले के घोटाले को पकड़ पाना खासा मुश्किल है, लेकिन सारी प्रक्रिया ऑनलाइन होने के बाद से ही गैर मान्यता प्राप्त तथा मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में छात्रों के फर्जी बैंक एकाउंट खोल कर एक ही कान्टैक्ट नंबर बताते हुए घोटाला किया गया. एक ही संस्थान में सिर्फ एक साल में अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं के नाम पर करोड़ों का भुगतान फर्जी तरीके से हुआ और तो और संस्थानों में प्रवेश लेने वाले सभी छात्रों के बैंक खाते भी एक ही बैंक में दिखाए गए. राज्य सरकार के तत्कालीन शिक्षा सचिव डॉ. अरुण शर्मा ने इस घोटाले की परतें उघाडऩे में बड़ा काम किया था. घोटाले को लेकर राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉ. रामलाल मारकंडा सहित अन्यों ने भी शिकायत की थी.

सीबीआई ने अब तक तीन साल में 47 हार्ड डिस्क, साढ़े दस हजार फाइलों और पैन ड्राइव आदि से डाटा जुटाया है. इस मामले में शिक्षा विभाग के अधीक्षक अरविंद राज्टा गिरफ्तार हुए थे, लेकिन जमानत के बाद अब उनकी बहाली भी हो चुकी है. सीबीआई ने घोटाले के आरोपियों पर न केवल हिमाचल बल्कि हरियाणा व पंजाब के निजी संस्थानों पर भी नकेल कसी है. पंजाब के नवांशहर, खरड़, मोहाली आदि के संस्थान भी जांच के दायरे में हैं. फिलहाल, इस घोटाले की सीबीआई जांच और अन्य पहलुओं पर अब सभी की नजरें हाईकोर्ट में 20 अप्रैल की सुनवाई पर हैं.

ये भी पढ़ें: हाईकोर्ट की सख्ती के बाद एक्शन में CBI, 250 करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले में 7 अरेस्ट

शिमला: हिमाचल प्रदेश में स्कॉलरशिप स्कैम (HP Scholarship scam) लगातार सुर्खियों में रहा है. इतिहास के सबसे बड़े घोटाले (Scholarship scam in himachal) में देश की सबसे तेजतर्रार जांच एजेंसी सीबीआई भी अपनी साख के अनुरूप परिणाम नहीं दे पा रही है. ढ़ाई सौ करोड़ से अधिक के स्कॉलरशिप स्कैम मामले में हाईकोर्ट में भी याचिका दाखिल है और अदालत सीबीआई से स्टेट्स रिपोर्ट तलब करती है. इसी कड़ी में हाईकोर्ट ने चार अप्रैल को सीबीआई को धीमी जांच के लिए फटकार लगाई. हाईकोर्ट की सख्ती के बाद सीबीआई की नींद टूटी और 8 अप्रैल को जांच एजेंसी ने घोटाले से जुड़े सात लोगों को गिरफ्तार किया.

हैरत की बात है कि आठ साल पहले के घोटाले की जांच लंबे समय से सीबीआई के पास है. इस दौरान जांच एजेंसी ने अदालत में सील्ड कवर रिपोर्ट्स पेश की हैं, लेकिन छह महीने में सीबीआई कोई चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई है. जांच एजेंसी अब तक हाईकोर्ट में मामले की जांच को लेकर सात स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल कर चुकी है. हाल ही में हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई पर सीबीआई को फटकार लगाई. अदालत ने हैरानी जताई कि अक्टूबर 2021 में जांच का जो स्टेट्स था, चार महीने बीत जाने के बाद भी जांच वहीं खड़ी है. अब हाईकोर्ट ने सीबीआई को सक्षम कोर्ट के सामने आरोप पत्र दाखिल करने का एक और मौका दिया है. यही नहीं, सीबीआई को 20 अप्रैल को हाईकोर्ट में ताजा स्टेट्स रिपोर्ट पेश करनी होगी. अदालत की इसी सख्ती के कारण सीबीआई ने जांच में तेजी लाई है. शुक्रवार को सात लोगों की गिरफ्तारी इसका संकेत है.

आखिर ये स्कॉलरशिप स्कैम (Himachal Scholarship scam) है क्या और अब तक इस मामले में क्या अपडेट हुई हैं, ये जानना जरूरी है. हिमाचल के छात्रों के हक पर डाले जा रहे इस डाके की पोल बड़े समय बाद खुली थी. जैसे ही घोटाले का पता चला, हिमाचल की जयराम सरकार ने इसकी सीबीआई जांच के आदेश दिए। मई 2019 यानी करीब तीन साल पहले सीबीआई ने विधिवत मामला दर्ज कर जांच शुरू की. अब जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार का कार्यकाल पूरा होने की दिशा में है, लेकिन जांच अभी अधूरी है. कुल घोटाला 250 करोड़ रुपए का है. हिमाचल ही नहीं, देश के अन्य राज्यों में भी ठगों का जाल फैला था, जिसने इस घोटाले को अंजाम दिया. दरअसल, फर्जी संस्थान खोलकर बैंक खातों में फर्जी तरीके से स्कॉलरशिप की रकम जमा की जाती रही.

घोटाले की तह में जाने से पहले मामले की ताजा स्थिति पर नजर डालते हैं. सीबीआई ने हाल ही में हाईकोर्ट में जो स्टेट्स रिपोर्ट पेश की है, उसके अनुसार अब तक की जांच में 1176 संस्थानों की संलिप्तता का पता चला है. छात्रवृत्ति देने वाले 266 निजी संस्थानों में से 28 संस्थानों को घोटाले में शामिल पाया गया है. सीबीआई के अनुसार उन 28 संस्थानों में से 11 की जांच पहले ही पूरी हो चुकी है. जांच के बाद आरोप पत्र भी दाखिल किए गए हैं. अभी 17 संस्थानों के खिलाफ जांच चल रही है.

कुल ढाई सौ करोड़ रुपए से अधिक के स्कॉलरशिप स्कैम में एक-एक कदम पर जमकर धांधली हुई. छात्रवृत्ति की रकम की मनमानी बंदरबांट की गई. संस्थानों के दस्तावेजों की जांच किए बिना ही पैसा बांट दिया गया।. यहां बता दें कि वित्तीय वर्ष 2013-14 में स्कॉलरशिप का ऑन लाइन पोर्टल तैयार हुआ. फिर समय-समय पर 250 करोड़ की रकम निजी शिक्षण संस्थानों के खाते में डाल दी गई. इस रकम में से कुल 56 करोड़ की राशि ही सरकारी संस्थानों में अध्ययन करने वाले बच्चों के खाते में जमा हुई. हैरत है कि 2013-14 के बाद से ही कई छात्र शिक्षा विभाग में शिकायत कर रहे थे कि उन्हें स्कॉलरशिप का पैसा नहीं मिल रहा है, लेकिन किसी ने भी इन शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया.

केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं के तहत राज्य का शिक्षा विभाग छात्रवृत्ति में पहले अपने हिस्से की रकम डाल कर देता है. इसके बाद इस राशि का उपयोगिता प्रमाण (यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट यानी यूसी) पत्र केंद्र को भेजा जाता है. फिर केंद्र सरकार इसके बाद अपने हिस्से का पैसा जारी करती है. धांधली का आलम ये था कि हिमाचल शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने उपयोगिता प्रमाण पत्र भेजने में भी दस्तावेजों की हेराफेरी की. स्कॉलरशिप की रकम किस संस्थान में पढ़ रहे किस छात्र को दी गई, इसकी कोई जानकारी ही दर्ज नहीं की गई.

प्रदेश के जनजातीय जिलों के स्टूडेंट्स के नाम पर भी करीब 50 करोड़ की रकम जमा हुई, लेकिन लाहौल स्पीति से शिकायतें आई कि छात्रों को स्कॉलरशिप का भुगतान ही नहीं हुआ है. वर्ष 2016 में कैग ने छात्रवृत्ति की 8 करोड़ की रकम गैर यूजीसी मान्यता हासिल संस्थानों को बांटने का मामला उजागर किया. फिर भी शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अफसरों पर कोई असर नहीं हुआ. शिक्षा विभाग ने कैग की रिपोर्ट पर जवाब दिया कि छात्रवृत्ति की राशि आबंटन में यह नहीं लिखा गया है कि सिर्फ यूजीसी की तरफ से मान्यता हासिल संस्थानों में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को ही इस राशि का भुगतान किया जा सकता है.

मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद केंद्र व प्रदेश सरकार की 20 से अधिक योजनाओं के तहत स्कॉलरशिप दी जाती है. स्कॉलरशिप योजना 2013 से पहले ऑन लाइन नहीं थी, लिहाजा इससे पहले के घोटाले को पकड़ पाना खासा मुश्किल है, लेकिन सारी प्रक्रिया ऑनलाइन होने के बाद से ही गैर मान्यता प्राप्त तथा मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में छात्रों के फर्जी बैंक एकाउंट खोल कर एक ही कान्टैक्ट नंबर बताते हुए घोटाला किया गया. एक ही संस्थान में सिर्फ एक साल में अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं के नाम पर करोड़ों का भुगतान फर्जी तरीके से हुआ और तो और संस्थानों में प्रवेश लेने वाले सभी छात्रों के बैंक खाते भी एक ही बैंक में दिखाए गए. राज्य सरकार के तत्कालीन शिक्षा सचिव डॉ. अरुण शर्मा ने इस घोटाले की परतें उघाडऩे में बड़ा काम किया था. घोटाले को लेकर राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉ. रामलाल मारकंडा सहित अन्यों ने भी शिकायत की थी.

सीबीआई ने अब तक तीन साल में 47 हार्ड डिस्क, साढ़े दस हजार फाइलों और पैन ड्राइव आदि से डाटा जुटाया है. इस मामले में शिक्षा विभाग के अधीक्षक अरविंद राज्टा गिरफ्तार हुए थे, लेकिन जमानत के बाद अब उनकी बहाली भी हो चुकी है. सीबीआई ने घोटाले के आरोपियों पर न केवल हिमाचल बल्कि हरियाणा व पंजाब के निजी संस्थानों पर भी नकेल कसी है. पंजाब के नवांशहर, खरड़, मोहाली आदि के संस्थान भी जांच के दायरे में हैं. फिलहाल, इस घोटाले की सीबीआई जांच और अन्य पहलुओं पर अब सभी की नजरें हाईकोर्ट में 20 अप्रैल की सुनवाई पर हैं.

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Last Updated : Apr 9, 2022, 11:50 AM IST
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