शिमला: चुनावी साल (Himachal Assembly Elections 2022) में हिमाचल की राजनीति दिन-प्रतिदिन नए रंग बदल रही है. कांग्रेस ने भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री खीमीराम शर्मा को अपने पाले में खींचा तो बदले में भाजपा ने कांग्रेस के दो विधायक अपने खेमे में शामिल कर लिए. कांगड़ा के विधायक पवन काजल (pawan kajal Joins BJP) और नालागढ़ के विधायक लखविंद्र सिंह राणा ( lakhwinder rana joins bjp) को भाजपा ने दिल्ली में आयोजित समारोह में अपने रंग में रंग लिया. भाजपा ने कांग्रेस में टूटफूट मचाई तो इधर पार्टी विद ए डिफरेंस यानी भाजपा के कार्यकर्ता नाराज हो गए. कारण ये कि कांगड़ा और नालागढ़ में विधायक की टिकट के दावेदार असहज हो गए.
नालागढ़ से पूर्व में चुनाव लड़े केएल ठाकुर ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी जताई तो कांगड़ा के भाजपा कार्यकर्ता भी काजल की एंट्री से उखड़ गए. पवन काजल (himachal congress mla pawan kajal) के भाजपा में आने के बाद कांगड़ा में उनके स्वागत में पोस्टर लगाए गए थे. पोस्टर में लिखा था राजतिलक की करो तैयारी, आ रहे हैं भगवाधारी. अब जो माहौल बना है, उसमें भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को समझाएगी कि कांग्रेस से विधायकों को तोड़ने की रणनीति क्यों अपनाई गई?
भाजपा के रणनीतिकार ये भी समझाएंगे कि चुनावी साल में कांग्रेस को तोड़ना क्यों जरूरी था. शिमला में भाजपा की कोर ग्रुप की बैठक (BJP core group meeting in Shimla) में भी इस मसले पर गहन चिंतन हुआ. भाजपा का दावा है कि अभी कांग्रेस के और विधायक भी उनके संपर्क में हैं. बताया जा रहा है कि भाजपा हमीरपुर जिले में कांग्रेस में तोड़फोड़ करने के लिए प्रयास कर रही है. पिछले चुनाव में भाजपा के दिग्गज प्रेम कुमार धूमल को हराने वाले राजेंद्र राणा के भी भाजपा में जाने की अटकलें लग रही हैं, किंतु वे अभी इस बारे में साफ मना कर रहे हैं. वैसे राजनीति को संभावनाओं का खेल कहा जाता है और अचानक भी कई घटनाएं हो जाती हैं. ऐसे में भाजपा के उस दावे को हल्के में नहीं लिया जा सकता, जिसमें कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कम से कम पांच एमएलए उनके संपर्क में हैं.
फिलहाल, यहां चर्चा का विषय हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में आने वाले नेताओं के कारण पार्टी में जो नाराजगी (himachal congress mla joins bjp) है, उसे कैसे दूर किया जाए. भाजपा के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के नेता भाजपा में शामिल किए गए हैं, उसका मकसद कांग्रेस का मनोबल तोड़ना है. साथ ही चुनावी बेला में कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक झटका देकर पार्टी में निराशा का माहौल पैदा करना है, लेकिन बड़ा सवाल है कि जो विधायक कांग्रेस छोडक़र भाजपा में जाएंगे, उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं
साथ ही ये भी देखना दिलचस्प होगा कि उन विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय भाजपा के टिकट के दावेदार क्या करेंगे? पार्टी का अभी मानना है कि कैडर के लोगों को समझा लिया जाएगा. हाल ही में सीएम व अन्य नेताओं के बयान भी आए हैं कि जिन नेताओं को भाजपा में शामिल किया गया है, उनके टिकट की गारंटी की कोई बात नहीं हुई है. यदि पार्टी हाईकमान फिर भी कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं को टिकट देती है तो अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी को कैसे थामना है, इस पर भी भाजपा में मंथन हुआ है. बताया जा रहा है कि पार्टी के लिए कुर्बानी देने वाले नेताओं को रिवार्ड दिया जाएगा. ये रिवार्ड किस रूप में होगा, इसे लेकर भी रणनीति बनाई जा रही है. निगम व बोर्ड के चेयरमैन सहित अन्य दायित्व भी एक ऑप्शन हैं. इसके अलावा मिशन रिपीट की भावुक अपील भी एक उपाय है.
भाजपा नेतृत्व ने जब देखा कि कांगड़ा व नालागढ़ में पार्टी कार्यकर्ता कांग्रेस नेताओं की एंट्री से नाराज हैं तो डैमेज कंट्रोल के लिए अभी से प्रयास शुरू करने पर फैसला हुआ. कारण ये है कि आने वाले समय में कांग्रेस के कुछ और नेताओं को भाजपा अपने दल में शामिल करने की रणनीति पर काम कर रही है. ऐसे में पहले से शामिल हुए कांग्रेस नेताओं के विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना जरूरी है, ताकि बाद में शामिल होने वाले नेताओं के हल्कों में भी यही रणनीति अपनाई जा सके. चुनाव तक किसी तरह अपने कार्यकर्ताओं को मनाया जाएगा. पार्टी के सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस से उन्हीं नेताओं को तोड़ा जाएगा, जो अपनी सीट निकालने के प्रति आश्वस्त हैं.
हिमाचल भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप (Himachal BJP President Suresh Kashyap) का कहना है कि पार्टी में सभी निर्णय सामूहिक विचार के बाद लिए जाते हैं. जहां तक टिकट की बात है तो उसके लिए भी सैट प्रोसीजर है. जीत की क्षमता के साथ ही अन्य फैक्टर देखे जाते हैं. मंडल स्तर से नाम आगे बढ़ाया जाता है. फिर विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से कैडर संख्या व पिछले चुनाव की स्थिति पर विचार किया जाता है. ऐसे में टिकट किसे मिलेगा, ये सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद पार्लियामेंटरी बोर्ड तय करता है.
वहीं, सीनियर मीडिया कर्मी उदय पठानिया का मानना है कि चुनावी साल में कांग्रेस में तोडफ़ोड़ करके भाजपा को कोई खास लाभ नहीं होगा. भाजपा वैसे तो कैडर की मजबूती का दावा करती है, लेकिन हाल ही के समय में विपक्ष में तोडफ़ोड़ का मॉडल अपना रही है. हिमाचल में मतदाता जागरूक है और अपने विवेक से फैसला लेता है. ये भी संभव है कि चुनावी साल में भाजपा की ये रणनीति उसे भारी न पड़ जाए. खैर, अभी पहली बाधा टिकट वितरण की है और जल्द ही ये पता चल जाएगा कि कांग्रेस से आए नेताओं को पार्टी कैसे एडजस्ट करती है और अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी को थामने के लिए बनाई रणनीति कितनी कारगर साबित होती है.
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