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हिमाचल प्रदेश के लाइब्रेरी में सहेज कर रखी गई पांडुलिपियां और दुर्लभ ग्रन्थ होंगे डिजिटलाइज्ड

प्रदेश की संस्कृति पर आधारित पांडुलिपियों, रेयर बुक्स को आज भी प्रदेश के पुस्तकालय सहेजे हुए हैं. फिर चाहे बात हिमाचल संस्कृति अकादमी के पुस्तकालय की हो या जिलों में चलाए जा रहे पुस्तकालयों की. यहां पांडुलिपियों, प्राचीन ग्रंथों और दुर्लभ पुस्तकों की भरमार है. जिनमें हिमाचली संस्कृति और यहां का इतिहास छुपा पड़ा है लेकिन यह पुस्तकें इतनी पुरानी है कि इन्हें कागजों के पन्ने में सहेजना मुश्किल होता जा रहा है.

manuscripts and rare texts kept in the library will be digitized in himachal pradesh
पांडुलिपियां और दुर्लभ ग्रन्थ होंगे डिजिटलाइज्ड
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Published : Feb 13, 2020, 6:25 PM IST

शिमला: प्रदेश की संस्कृति पर आधारित पांडुलिपियों, रेयर बुक्स को आज भी प्रदेश के पुस्तकालय सहेजे हुए हैं. फिर चाहे बात हिमाचल संस्कृति अकादमी के पुस्तकालय की हो या जिलों में चलाए जा रहे पुस्तकालयों की. यहां पांडुलिपियों, प्राचीन ग्रंथों और दुर्लभ पुस्तकों की भरमार है. जिनमें हिमाचली संस्कृति और यहां का इतिहास छुपा पड़ा है लेकिन यह पुस्तकें इतनी पुरानी है कि इन्हें कागजों के पन्ने में सहेजना मुश्किल होता जा रहा है.

इसी को देखते हुए अब अकादमी की ओर से इन पांडुलिपियों, ग्रंथों और रेयर बुक्स की डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है. पहले चरण में जहां प्रदेश राज्य संग्रहालय के पुस्तकालय के ग्रंथ और किताबों को डिजिटलाइज्ड करने की प्रक्रिया को पूरा किया गया है तो वहीं अब अकादमी पुस्तकालय में यह प्रक्रिया चल रही है. यह काम पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी की ओर से किया जा रहा है.

प्रदेश में प्राचीन काल की पौराणिक हस्तलिखित पांडुलिपियों का भंडार है. अगर बात की जाए अकादमी के पुस्तकालय की तो यहां पांडुलिपियों के बहुमूल्य भंडार है, जिसमें ज्यादातर लिपियां धार्मिक साहित्य, ज्योतिष, आर्युवेद, ज्योतिष, इतिहास और धर्मग्रंथ शामिल है. ये सभी पांडुलिपियां हस्तलिखित हैं और कई नष्ट होने की कगार पर भी है. अकादमी के पुस्तकालय में संरक्षित कर रखी गई है उसमें कांगड़ा में 600 साल पुराना कराड़ा सूत्र जो भोटी लिपि में लिखा गया है, जो आर्युवेद से संबंधित है. इसके साथ ही पांगी में चस्क भटोरी पांडुलिपि भी अकादमी ने संरक्षित की है जिसका वजन 18 किलो तक है. अकादमी के पुस्तकालय में पाउची, पंडवानी, चंदवानी, भटाक्षरी चार प्रमुख लिपियों में लिखे ग्रन्थ और पुस्तकें शामिल है.

अकादमी ने जिन पांडुलिपियों को संरक्षित किया है उसमें मेघ बिलास मुनि मेघ बिलास द्वारा रचित, हनुमान नाटक जो प्रदेश की एक मात्र किताब है. गृह प्रवेश पूजन की विधि, वास्तु शास्त्र, अथ शिव शस्त्र नामावली जिसमें भगवान शिव के 1008 नाम शामिल है. इसके साथ ही टांकरी लिपि में काग भाषा का 100 मीटर का स्क्रॉल, शौली मंदिर का इतिहास, कुर्सीनामा, सांचा सब संरक्षित किया गया है. अकादमी के पुस्तकालय में कहलूर, बिलासपुर-नालागढ़, सिरमौर रियासत के इतिहास जो कि उर्दू में है. इसके अलावा कटोच वंश का इतिहास, कनावर जिसमें किन्नौर का इतिहास, राजघराने, नूरपूर पठानिया, पठानिया वंश का इतिहास, बृजभाषा में रसविलास, सिरमौर सांचा, रामपुर के ढलोग से मंत्र-तंत्र, राजगढ़ से 300 साला पुराना इतिहास, 12 वी शताब्दी में राजस्थान के पंडित रानी के दहेज में आए थे वो भी संरक्षित कर रखे गए हैं.

अकादमी के पास लाहौल स्पीति की स्वर्णाक्षरों में लिखी एक पांडुलिपि भी है. ये ग्रन्थ पाउची लिपि में लिखे गए हैं जिनको डिजिटलाइज्ड किया जाना है. हिमाचल संस्कृति अकादमी के सचिव डॉक्टर कर्म सिंह ने कहा कि अकादमी के पुस्तकालय के साथ ही जिलों के पुस्तकालय में जो भी खजाना पड़ा है उसका डिजिटलाइजेशन किया जाएगा. इसके बाद सारा डाटा एकत्र कर अकादमी के पुस्तकालय डिजिटल रूप में उपलब्ध करवाया जाएगा और यह प्रयास किया जाएगा की डिजिटल फॉर्म में ही यह डाटा ऑनलाइन पाठकों को भी उपलब्ध करवाया जाए जिससे उन्हें इसका लाभ मिल सके और प्रदेश की संस्कृति परंपरा और यहां के इतिहास को भी सहेज कर रखा जा सके.

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शिमला: प्रदेश की संस्कृति पर आधारित पांडुलिपियों, रेयर बुक्स को आज भी प्रदेश के पुस्तकालय सहेजे हुए हैं. फिर चाहे बात हिमाचल संस्कृति अकादमी के पुस्तकालय की हो या जिलों में चलाए जा रहे पुस्तकालयों की. यहां पांडुलिपियों, प्राचीन ग्रंथों और दुर्लभ पुस्तकों की भरमार है. जिनमें हिमाचली संस्कृति और यहां का इतिहास छुपा पड़ा है लेकिन यह पुस्तकें इतनी पुरानी है कि इन्हें कागजों के पन्ने में सहेजना मुश्किल होता जा रहा है.

इसी को देखते हुए अब अकादमी की ओर से इन पांडुलिपियों, ग्रंथों और रेयर बुक्स की डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है. पहले चरण में जहां प्रदेश राज्य संग्रहालय के पुस्तकालय के ग्रंथ और किताबों को डिजिटलाइज्ड करने की प्रक्रिया को पूरा किया गया है तो वहीं अब अकादमी पुस्तकालय में यह प्रक्रिया चल रही है. यह काम पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी की ओर से किया जा रहा है.

प्रदेश में प्राचीन काल की पौराणिक हस्तलिखित पांडुलिपियों का भंडार है. अगर बात की जाए अकादमी के पुस्तकालय की तो यहां पांडुलिपियों के बहुमूल्य भंडार है, जिसमें ज्यादातर लिपियां धार्मिक साहित्य, ज्योतिष, आर्युवेद, ज्योतिष, इतिहास और धर्मग्रंथ शामिल है. ये सभी पांडुलिपियां हस्तलिखित हैं और कई नष्ट होने की कगार पर भी है. अकादमी के पुस्तकालय में संरक्षित कर रखी गई है उसमें कांगड़ा में 600 साल पुराना कराड़ा सूत्र जो भोटी लिपि में लिखा गया है, जो आर्युवेद से संबंधित है. इसके साथ ही पांगी में चस्क भटोरी पांडुलिपि भी अकादमी ने संरक्षित की है जिसका वजन 18 किलो तक है. अकादमी के पुस्तकालय में पाउची, पंडवानी, चंदवानी, भटाक्षरी चार प्रमुख लिपियों में लिखे ग्रन्थ और पुस्तकें शामिल है.

अकादमी ने जिन पांडुलिपियों को संरक्षित किया है उसमें मेघ बिलास मुनि मेघ बिलास द्वारा रचित, हनुमान नाटक जो प्रदेश की एक मात्र किताब है. गृह प्रवेश पूजन की विधि, वास्तु शास्त्र, अथ शिव शस्त्र नामावली जिसमें भगवान शिव के 1008 नाम शामिल है. इसके साथ ही टांकरी लिपि में काग भाषा का 100 मीटर का स्क्रॉल, शौली मंदिर का इतिहास, कुर्सीनामा, सांचा सब संरक्षित किया गया है. अकादमी के पुस्तकालय में कहलूर, बिलासपुर-नालागढ़, सिरमौर रियासत के इतिहास जो कि उर्दू में है. इसके अलावा कटोच वंश का इतिहास, कनावर जिसमें किन्नौर का इतिहास, राजघराने, नूरपूर पठानिया, पठानिया वंश का इतिहास, बृजभाषा में रसविलास, सिरमौर सांचा, रामपुर के ढलोग से मंत्र-तंत्र, राजगढ़ से 300 साला पुराना इतिहास, 12 वी शताब्दी में राजस्थान के पंडित रानी के दहेज में आए थे वो भी संरक्षित कर रखे गए हैं.

अकादमी के पास लाहौल स्पीति की स्वर्णाक्षरों में लिखी एक पांडुलिपि भी है. ये ग्रन्थ पाउची लिपि में लिखे गए हैं जिनको डिजिटलाइज्ड किया जाना है. हिमाचल संस्कृति अकादमी के सचिव डॉक्टर कर्म सिंह ने कहा कि अकादमी के पुस्तकालय के साथ ही जिलों के पुस्तकालय में जो भी खजाना पड़ा है उसका डिजिटलाइजेशन किया जाएगा. इसके बाद सारा डाटा एकत्र कर अकादमी के पुस्तकालय डिजिटल रूप में उपलब्ध करवाया जाएगा और यह प्रयास किया जाएगा की डिजिटल फॉर्म में ही यह डाटा ऑनलाइन पाठकों को भी उपलब्ध करवाया जाए जिससे उन्हें इसका लाभ मिल सके और प्रदेश की संस्कृति परंपरा और यहां के इतिहास को भी सहेज कर रखा जा सके.

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