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गाय के नाम जयराम सरकार ने इकट्ठे किए 25 करोड़, फिर भी लंपी वायरस से मर रही गाय

हिमाचल प्रदेश में लगातार लंपी वायरस के मामले बढ़ते जा रहे हैं. बीते 24 घंटों के दौरान हिमाचल में 170 पशुओं की लंपी वायरस से मौत हो (Lumpy virus death in Himachal) गई. प्रदेश में लंपी वायरस से मरने वाले पशुओं की संख्या बढ़कर 2630 पहुंच गई है. इस बीच 35147 एक्टिव केस हैं, जबकि 61201 पशु इस संक्रमण से ग्रसित होने के बाद ठीक हो चुके (Lampy Virus cases in Himachal) हैं.

Lumpy virus death in Himachal
हिमाचल में लंपी वायरस की रिपोर्ट
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Published : Sep 10, 2022, 9:57 AM IST

शिमला: हिमाचल सरकार ने मंदिर न्यास और शराब की बोतलों पर गौ सेस लगाकर अब तक 25 करोड़ से अधिक की रकम जुटाई है, लेकिन राज्य में लंपी वायरस लगातार पशुओं की मौत का कारण बन रहा (Lampy Virus in Himachal) है. हिमाचल में ढाई हजार से अधिक गोवंश लंपी वायरस की भेंट चढ़ चुका है, लेकिन सरकार की तरफ से जुटाया गया काऊ सेस और दूसरे प्रयास किसी काम नहीं आ रहे. हिमाचल सरकार ने शराब की हर बोतल पर डेढ़ रुपए गो सेस लगाया है. इस मद में अब तक 24 करोड़ 66 लाख 29 हजार 826 रुपए जुटाए हैं. वहीं, मंदिरों की आय पर लगाए गए गो सेस से 1 करोड़ 03 लाख 73 हजार 708 रुपए जमा हुए हैं.

ग्वालों की हो रही आजीविका प्रभावित: जिन पशुपालकों के पशुधन की हानि हुई है उनमें से अधिकांश को मुआवजा नहीं मिला है. राजधानी शिमला के नजदीकी गांव चौरा में एक दलित परिवार की 2 दुधारू गाय लंपी वायरस से प्रभावित है. दोनों 35 लीटर से अधिक दूध रोजाना देती थी. इसके अलावा मंगतराम के पास कुल 12 पशु है. उसकी आजीविका दूध बेचने से चलती है. लंपी वायरस के कारण उनकी आजीविका प्रभावित हुई (Lampy Virus cases in Himachal) है. वहीं, शिमला की निकटवर्ती पंचायत रझाना के संवि गांव में 2 बहनों कमला और विमला का पशुधन भी लंपी वायरस से प्रभावित है.

इन जिलों में लंपी वायरस का सर्वाधिक प्रकोप: हिमाचल के सोलन, सिरमौर व ऊना जिलों में लंपी वायरस का सर्वाधिक प्रकोप है. पशुपालक इस वायरस के कारण बहुत दिक्कत का सामना कर रहे हैं. राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती सड़कों पर घूम रहा बेसहारा गोवंश है. हिमाचल में अभी भी 9163 गौ वंश सड़कों पर घूमने को मजबूर (lampy Virus In Cow) है. हालांकि, राज्य सरकार ने गौ सेवा आयोग के माध्यम से बेसहारा गोवंश के लिए करीब 35 करोड़ की राशि स्वीकृत की है. इसके अलावा राज्य सरकार ने भी 35.88 करोड़ रुपए गौ सदन और बेसहारा गोवंश के लिए दिए हैं, लेकिन हिमाचल में गोवंश की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं.

इलाज के लिए बनाई विशेष टीमें: राज्य सरकार ने वैक्सीनेशन और लंपी वायरस से प्रभावित पशुओं के इलाज के लिए विशेष टीमें बनाई हैं. हिमाचल की अधिकतर आबादी गांव में रहती है. अधिकांश ग्रामीण पशु पालते हैं. दूध बेचकर आजीविका के लिए धन एकत्र करना मुख्य साधन रहता है. ऐसे में लंपी वायरस से ग्रामीणों को भारी हानि हो रही है. दूध की कमी से सीधे तौर पर धन हानि तो हो ही रही है और अगर पशु मर जाता है तो भारी नुकसान उठाना पड़ता (what is lumpy skin disease) है.

हिमाचल में लंपी वायरस की स्थिति: लंपी वायरस से बीते 24 घंटों के दौरान प्रदेश में 170 पशुओं की इस संक्रमण से मौत हो गई. प्रदेश में लंपी वायरस से मरने वाले पशुओं की संख्या बढ़कर 2630 पहुंच गई (Lumpy virus death in Himachal) है. इस बीच 35147 एक्टिव केस हैं, जबकि 61201 पशु इस संक्रमण से ग्रसित होने के बाद ठीक हो चुके हैं. लंपी वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों ने पशुपालकों और सरकार दोनों को चिंता में डाल दिया (Lampy Virus cases in Himachal) है. पशुपालन विभाग भी इस लगातार निगरानी रखे हुए है. लंपी वायरस से बचाव के लिए अब तक 165310 पशुओं का टीकाकरण कर दिया गया है. 64477 वैक्सीन अभी सरकार के पास मौजूद, लेकिन बेसहारा गोवंश का टीकाकरण अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है.

ये भी पढ़ें: लंपी वायरस से बचाव के लिए सरकार उठा रही हर कदम, गोशालाओं में टीकाकरण के लिए विशेष अभियान

शिमला: हिमाचल सरकार ने मंदिर न्यास और शराब की बोतलों पर गौ सेस लगाकर अब तक 25 करोड़ से अधिक की रकम जुटाई है, लेकिन राज्य में लंपी वायरस लगातार पशुओं की मौत का कारण बन रहा (Lampy Virus in Himachal) है. हिमाचल में ढाई हजार से अधिक गोवंश लंपी वायरस की भेंट चढ़ चुका है, लेकिन सरकार की तरफ से जुटाया गया काऊ सेस और दूसरे प्रयास किसी काम नहीं आ रहे. हिमाचल सरकार ने शराब की हर बोतल पर डेढ़ रुपए गो सेस लगाया है. इस मद में अब तक 24 करोड़ 66 लाख 29 हजार 826 रुपए जुटाए हैं. वहीं, मंदिरों की आय पर लगाए गए गो सेस से 1 करोड़ 03 लाख 73 हजार 708 रुपए जमा हुए हैं.

ग्वालों की हो रही आजीविका प्रभावित: जिन पशुपालकों के पशुधन की हानि हुई है उनमें से अधिकांश को मुआवजा नहीं मिला है. राजधानी शिमला के नजदीकी गांव चौरा में एक दलित परिवार की 2 दुधारू गाय लंपी वायरस से प्रभावित है. दोनों 35 लीटर से अधिक दूध रोजाना देती थी. इसके अलावा मंगतराम के पास कुल 12 पशु है. उसकी आजीविका दूध बेचने से चलती है. लंपी वायरस के कारण उनकी आजीविका प्रभावित हुई (Lampy Virus cases in Himachal) है. वहीं, शिमला की निकटवर्ती पंचायत रझाना के संवि गांव में 2 बहनों कमला और विमला का पशुधन भी लंपी वायरस से प्रभावित है.

इन जिलों में लंपी वायरस का सर्वाधिक प्रकोप: हिमाचल के सोलन, सिरमौर व ऊना जिलों में लंपी वायरस का सर्वाधिक प्रकोप है. पशुपालक इस वायरस के कारण बहुत दिक्कत का सामना कर रहे हैं. राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती सड़कों पर घूम रहा बेसहारा गोवंश है. हिमाचल में अभी भी 9163 गौ वंश सड़कों पर घूमने को मजबूर (lampy Virus In Cow) है. हालांकि, राज्य सरकार ने गौ सेवा आयोग के माध्यम से बेसहारा गोवंश के लिए करीब 35 करोड़ की राशि स्वीकृत की है. इसके अलावा राज्य सरकार ने भी 35.88 करोड़ रुपए गौ सदन और बेसहारा गोवंश के लिए दिए हैं, लेकिन हिमाचल में गोवंश की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं.

इलाज के लिए बनाई विशेष टीमें: राज्य सरकार ने वैक्सीनेशन और लंपी वायरस से प्रभावित पशुओं के इलाज के लिए विशेष टीमें बनाई हैं. हिमाचल की अधिकतर आबादी गांव में रहती है. अधिकांश ग्रामीण पशु पालते हैं. दूध बेचकर आजीविका के लिए धन एकत्र करना मुख्य साधन रहता है. ऐसे में लंपी वायरस से ग्रामीणों को भारी हानि हो रही है. दूध की कमी से सीधे तौर पर धन हानि तो हो ही रही है और अगर पशु मर जाता है तो भारी नुकसान उठाना पड़ता (what is lumpy skin disease) है.

हिमाचल में लंपी वायरस की स्थिति: लंपी वायरस से बीते 24 घंटों के दौरान प्रदेश में 170 पशुओं की इस संक्रमण से मौत हो गई. प्रदेश में लंपी वायरस से मरने वाले पशुओं की संख्या बढ़कर 2630 पहुंच गई (Lumpy virus death in Himachal) है. इस बीच 35147 एक्टिव केस हैं, जबकि 61201 पशु इस संक्रमण से ग्रसित होने के बाद ठीक हो चुके हैं. लंपी वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों ने पशुपालकों और सरकार दोनों को चिंता में डाल दिया (Lampy Virus cases in Himachal) है. पशुपालन विभाग भी इस लगातार निगरानी रखे हुए है. लंपी वायरस से बचाव के लिए अब तक 165310 पशुओं का टीकाकरण कर दिया गया है. 64477 वैक्सीन अभी सरकार के पास मौजूद, लेकिन बेसहारा गोवंश का टीकाकरण अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है.

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