शिमला: (Hati community declared ST) पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश का दुर्गम जिला सिरमौर पिछड़ेपन का दंश झेलता आया है. गिरिपार इलाका तो इतना दुर्गम है कि जनता को रोजमर्रा की जरूरतों का सामान लाने के लिए उत्तराखंड के चूड़पुर, विकासनगर, हरियाणा के अंबाला तक जाना पड़ता था. हाट का सामान लाने की इसी कसरत ने गिरिपार (Giripar of Sirmour) इलाके की जनता को हाटी बनाया. वे इन इलाकों में अपने यहां के उत्पाद भी बेचने के लिए ले जाते रहे हैं. इस तरह अपना सामान बेचने और अपनी जरूरत का सामान लाने अथवा हाट करने के लिए जाने वाले लोग हाटी कहलाए.
इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ी: दशकों तक पिछड़ेपन और विकास से महरूम हाटियों के जख्म पर अब मरहम लगा है. उन्हें जनजातीय का दर्जा मिलने के बाद अब केंद्र से विकास योजनाओं के लिए जनजातीय मदों में फंड मिलेगा और आरक्षण की सुविधा भी. एक जैसी परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके को लंबे समय से ये दर्जा मिला हुआ है. इस बार सिरमौर के गिरिपार इलाके के लोगों ने आरपार की लड़ाई ठानी थी. केंद्र के समक्ष भी मजबूती से पक्ष रखा गया और परिणाम सभी के सामने है.
जौनसार बावर और गिरिपार की भौगोलिक परिस्थितियां समान: उत्तराखंड के अटाल के रहने वाले पदम सम्मान से अलंकृत प्रेमचंद शर्मा ने भी सिरमौर की इस मांग का समर्थन किया था. हिमाचल और उत्तराखंड इन दोनों पहाड़ी राज्यों की एक जैसी परिस्थितियां हैं. उत्तराखंड का जौनसार बावर इलाका और हिमाचल के सिरमौर जिले का गिरिपार इलाका. दोनों की भौगोलिक परिस्थितियां एक जैसी और दोनों इलाकों में बसने वाले लोगों की पीड़ाएं भी एक समान. इन दोनों क्षेत्रों में सब कुछ समान है, लेकिन एक बात में सिरमौर का गिरिपार क्षेत्र आज तक यानी 14 सितंबर 2022 तक उत्तराखंड के जौनसार बावर से भी पिछड़ा हुआ था.
हिमाचल की मांग सालों से अनसुनी थी: अब ये मामला भी सुलझ गया है. हाटी को जनजातीय का दर्जा मिलने (Hati community of Himachal) से अब दोनों पहाड़ी राज्यों में एक और समानता आ गई है. उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके को 60 के दशक में ही जनजातीय इलाके का दर्जा मिल गया था. हिमाचल की मांग अब तक अनसुनी था, लेकिन अब पूरी हुई. हाटी समुदाय ने अपने हक के लिए निरंतर शांतिपूर्ण और रचनात्मक आंदोलन किया. हिमाचल में चुनावी साल में गिरिपार इलाके की 3 लाख की आबादी को नजर अंदाज करना न तो भाजपा के लिए आसान था और न ही कांग्रेस में इतनी हिम्मत थी कि हाटी आंदोलन की अनदेखी करे. केंद्रीय हाटी समिति के महत्वपूर्ण पदाधिकारी एफसी चौहान कहते हैं कि इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ी गई.
यह रही आंदोलन की प्रमुख वजह: गिरिपार इलाका कैसा है और यहां के हाटी समुदाय की पीड़ा क्या है, इस पर चर्चा जरूरी है. हिमाचल के पिछड़े जिले सिरमौर का इलाका है गिरिपार. कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां विकास परियोजनाओं से जुड़े निर्माण कार्य मुश्किल हो जाते हैं. यहां के युवा कठिन भौगोलिक परिवेश के कारण कई समस्याओं का सामना करते हैं. उन्हें अध्ययन के लिए वैसी सुविधाएं नहीं मिल पाती. इलाज की व्यवस्था भी आसानी से नहीं होती. ऐसे में गिरिपार इलाके के हाटी समुदाय की मांग है कि उन्हें जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाए, ताकि आरक्षण व अन्य सुविधाएं मिलने से यहां का विकास हो सके. मूल रूप से आंदोलन की यही प्रमुख वजह है.
अब केंद्रीय योजनाओं का फंड मिलेगा: जनजातीय दर्जा मिलने के बाद अब केंद्र से विकास व ट्राइबल इलाके के लिए केंद्रीय योजनाओं का फंड मिल सकेगा. नौकरियों में आरक्षण भी मिलेगा. शिक्षण संस्थान व स्वास्थ्य संस्थानों के निर्माण में गति आएगी. सडक़ों का विस्तार होगा और कृषि उपज मार्केट में आसानी से पहुंचेगी. एक तरह से कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाके का कायाकल्प होगा. जौनसार बावर इलाका इसकी मिसाल है. वहां के निवासियों के जीवन में जनजातीय का दर्जा मिलने के बाद सार्थक बदलाव आया है.
आरजीआई के समक्ष दस्ताजेव पेश किए: हाटी समुदाय के प्रयासों पर नजर डाली जाए तो यहां की जनता ने केंद्रीय हाटी समिति के बैनर तले रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया यानी आरजीआई के समक्ष (Documents presented before RGI )सभी दस्ताजेव पेश किए. इनमें 1979-1980 की अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट, वर्ष 1993 में पेश हिमाचल की सातवीं विधानसभा की याचिका समिति की रिपोर्ट, 1996 में जनजातीय अध्ययन संस्थान शिमला की रिपोर्ट, हिमाचल कैबिनेट और राज्यपाल की तरफ से वर्ष 2016 की रिपोर्ट के साथ ही सितंबर 2021 की ताजा रिपोर्ट ( आरजीआई के सभी बिंदुओं की क्लेरिफिकेशन सहित शामिल थी.
समय की मांग थी: मीडिया कर्मी और हाटी आंदोलन में सक्रिय रहे डॉ. रमेश सिंगटा का कहना है कि गिरिपार इलाके विकास के लिए उसे जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना समय की मांग थी. वैसे तो इस हक को काफी पहले ही दिया जाना चाहिए था, लेकिन अब भी ये हक मिल गया है तो हाटी समुदाय पिछली पीड़ा भूलने की कोशिश करेगा. ये इलाका शिमला संसदीय क्षेत्र के तहत आता है. शिमला के पूर्व सांसद प्रोफेसर वीरेंद्र कश्यप का कहना है कि उन्होंने इस समुदाय की मांग को कई मर्तबा प्रभावी तरीके से आरजीआई के समक्ष व संसद में भी उठाया. मौजूदा सांसद सुरेश कश्यप ने तो कुछ समय पहले ही आरजीआई से मुलाकात की थी. सुरेश कश्यप का कहना है कि भाजपा ने प्रभावी रूप से इस मांग को उठाया. उन्होंने कहा कि पार्टी पूरी तरह से हाटी समुदाय के साथ है.
सीएम जयराम ने उठाया मुद्दा: मुख्यमंत्री जयराम ने भी केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस विषय को उठाया था. भाजपा की नजर इस वोट बैंक पर थी. भाजपा चाहती है कि हाटी समुदाय को जनजातीय का दर्जा मिल जाए तो उसका लाभ चुनाव में (modi cabinet decision on hati ST) लें. हाटी समुदाय ने इस मांग को लेकर सिरमौर के कई इलाकों में खुमली व महाखुमली का आयोजन किया था. खुमली एक परंपरा है, जिसमें इलाका विशेष के लोग अपनी मांग को शांतिपूर्ण तरीके से उठाते हैं. इसे एक तरह की पंचायत कह सकते हैं. हाटी समिति ने पूरे इलाके में कई खुमलियों व महाखुमलियों का आयोजन किया था.
परंपराएं पांडव काल से भी जुड़ती: हाटी समुदाय की अपनी विशिष्ट जनजातीय संस्कृति है. यहां का खानपान, लोक संगीत, लोक परंपराएं अद्भुत हैं. ये परंपराएं पांडव काल से भी जुड़ती हैं. यहां की लोक गायन शैलियों में कई पौराणिक बातों का जिक्र आता है. वहीं, दुर्गम इलाका होने के कारण यहां रोजमर्रा के जीवन का संघर्ष बहुत अधिक था. हाटी समुदाय के लोगों की विशिष्ट पहचान उनका पहनावा भी है. वे लोइया और सुथण पहनते हैं. सिर पर सफेद कश्ती टोपी उनकी खास पहचान है. हाटी समुदाय के लोक व्यंजन भी विशिष्ट हैं. गायन परंपरा अभी भी जीवित है. करीब 150 पंचायतों में फैले हाटी समुदाय के लोगों की संख्या 3 लाख करीब है.