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एक साल में हिमाचल में 50 से अधिक बार भूकंप, डर से ज्यादा सतर्कता जरूरी

हिमाचल में चंबा-कांगड़ा और किन्नौर सहित शिमला जिला में अपेक्षाकृत अधिक भूकंप (Earthquake) आते हैं. यह देखने में आया है कि एक दशक में बड़ी तीव्रता का कोई भूचाल नहीं आया है. परंतु हिमाचल को हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है. हिमाचल प्रदेश चौथे और पांचवें सिस्मिक जोन में (Himachal in 4th and 5th seismic zone) आता है. हर समय हिमाचल में भूकंप का खतरा (Earthquake threat in Himachal) बना रहता है.

earthquake in himachal
हिमाचल में भूकंप
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Published : Nov 25, 2021, 7:35 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 2:48 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश भूकंप (Earthquake) के लिहाज से बेहद संवेदनशील जोन (sensitive zone) में आता है. पिछली सदी में वर्ष 1905 में आए विनाशकारी भूकंप की भयावह यादें अभी भी दहशत पैदा कर देती हैं. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश (Hill State Himachal Pradesh) के लोग अक्सर भूकंप के डर से सहमे रहते हैं. हाल ही में एक हफ्ते में चार बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं. पिछले शुक्रवार मंडी और बिलासपुर में भूचाल आने से डर का माहौल पैदा हो गया. खासकर मंडी जिला के कुछ इलाकों में तो चार से छह सेकंड तक जोर के झटके लगने से डरे लोग रात को घरों से बाहर निकल आए. भूकंप (Earthquake) की दृष्टि से संवेदनशील पांचवें जोन में पड़ने वाले हिमाचल में इस साल 53 छोटे बड़े भूकंप आ चुके हैं. यदि अक्टूबर और नवंबर महीने की बात करें तो छह बार भूकंप आ चुका है.

पहाड़ी राज्य होने के कारण बड़ा भूकंप हिमाचल के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता और सतर्कता (Awareness and Vigilance) से भूकंप के दौरान नुकसान (damage during earthquake) को न्यूनतम किया जा सकता है. नेपाल में विनाशकारी भूकंप के बाद राहत और पुनर्वास कार्यों से जुड़ी विशेषज्ञ मीनाक्षी रघुवंशी का कहना है कि अधिक खतरे वाले इलाकों में भूकंप रोधी मकान (earthquake proof houses) बनाने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. साथ ही नियमित अंतराल पर सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं को स्कूलों व पंचायतों में जागरूकता शिविर (Awareness Camp) आयोजित किए जाने चाहिए.

राज्य सरकार के प्रधान सचिव (Principal Secretary to State Government) ओंकार शर्मा के अनुसार सभी जिलों को समय-समय पर मॉक ड्रिल (Mock Drill) आयोजित करने के निर्देश हैं. कई स्वयं सेवी संस्थाएं निजी तौर पर जागरूकता शिविर आयोजित करती हैं जिन्हें सरकार हर संभव सहायता प्रदान करती है.

हिमाचल के लिए यह राहत की बात है कि लंबे समय से किसी भूकंप में जानमाल की कोई क्षति नहीं हुई है. विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यदि नियमित अंतराल पर कम तीव्रता के भूकंप आते रहें तो किसी बड़े भूकंप के आने के आसार कम भी हो सकते हैं. कई बार आम जनता के बीच चर्चा रही है कि 1905 में आए भूकंप (1905 earthquake) की पुनरावृत्ति हो सकती है. इसे सौ साल के अंतराल के बाद संभावित माना जा रहा था लेकिन सौभाग्य से हिमाचल ऐसी आपदा से सुरक्षित है. भू-विज्ञान विशेषज्ञ (geology specialist) और यूएनओ (UNO) के साथ मिलकर भूकंप के खतरों को न्यूनतम करने की दिशा में लंबा अनुभव रखने वाली मीनाक्षी रघुवंशी (Meenakshi Raghuvanshi) का कहना है कि हिमाचल जैसे राज्य में सरकार का रोल अधिक अहम है. भूकंप रोधी मकान बनाने का प्रशिक्षण पंचायत स्तर पर दिया जाना चाहिए. भूकंप आने पर खुद का बचाव करने के उपाय संबंधी पंफलेट भी सर्कुलेट किए जाने चाहिए.



वर्ष 2021 में साल के शुरुआत में ही चंबा जिला ने भूचाल महसूस किया. जिला में 6 जनवरी को चंबा में 3.2 तीव्रता का भूकंप आया था. इसी दौरान जनवरी महीने में ही एक रात में मंडी, कांगड़ा, कुल्लू और बिलासपुर में तीन बार भूडोल हुआ. फरवरी महीने में 13 तारीख को शिमला में भूकंप आया इसी तरह अप्रैल महीने में 5 और 16 तारीख को चंबा और लाहौल स्पीति में धरती के भीतर हलचल से दहशत फैल गई. मंडी में इसी साल 22 अप्रैल को भी भूकंप आया था. मई महीने में 8 तारीख को धर्मशाला में भूकंप आया.

हिमाचल प्रदेश एक हिमालयी राज्य है, लिहाजा हिमालयन रेंज (Himalayan range) में किसी भी जगह आए बड़े भूकंप का असर यहां देखने को मिलेगा. उदाहरण के लिए फरवरी महीने में नॉर्थ इंडिया (North India) में रात के समय भूकंप के भारी झटके महसूस किए गए. उस समय इसका प्रथम केंद्र तजाकिस्तान और दूसरा केंद्र पंजाब का अमृतसर इलाका था. यह भूकंप इतना भारी था कि इसके झटके हिमाचल के हमीरपुर, सोलन, सिरमौर, ऊना, कांगड़ा, कुल्लू, चंबा और बिलासपुर जिलों में भी महसूस किए गए. मार्च महीने में तो तीन दिन में तीन बार प्राकृतिक आपदा के झटके आए. किन्नौर व चंबा में कम तीव्रता के झटके आये. अब नवंबर महीने में 24 घंटे के अंदर चार भूकंप आ गए इस बार लोग अधिक डरे हुए हैं क्योंकि मंडी जिला में आया झटका काफी बड़ा रहा है.

वर्ष 2020 में भी कई बार धरती कांपती रही. उससे पहले 20 दिसंबर 2019 को अफगानिस्तान के हिंदुकुश रीजन में भूकंप का केंद्र था. जिसका असर कुल्लू, ऊना और कांगड़ा में भी दिखाई दिया. इस साल 9 जनवरी को कांगड़ा की करेरी झील भूकंप का केंद्र बनी तो उसके झटके मनाली में भी महसूस किए गए. ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि हिमाचल में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद हल्के झटके आ रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में आरंभ से ही भूकंप का खतरा रहा है. यदि एक दशक के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो पिछले दशक में 2006 से 2016 तक 10 साल की अवधि में पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में कुल 75 भूकंप आये. चम्बा और लाहौल स्पीति में सबसे अधिक बार धरती डोली.

इन 75 भूकंपों में से 40 की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 4 से कम रही. इस दौरान 60 बार हिमाचल में भूकंप का केंद्र (earthquake epicenter) रहा है जबकि पंद्रह बार नेपाल, जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भूकंप का केंद्र होने से हिमाचल में झटके महसूस किए गए हैं. बीते दस साल में हिमाचल में आए भूकंपों में 42 प्रतिशत का केंद्र जिला चंबा और चंबा की जम्मू-कश्मीर के साथ लगती सीमा रही है. हिमाचल में दो जनजातीय जिले हैं. लाहौल स्पीति और किन्नौर के अलावा चंबा का कुछ इलाका भी जनजातीय है. हिमाचल की सीमा पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर से लगती है. विशेषज्ञों का आकलन देखें तो लाहौल स्पीति जिला और जम्मू-कश्मीर से लगती सीमा 23 प्रतिशत बार भूकंप का केंद्र रही है. कांगड़ा (आठ प्रतिशत), किन्नौर (पांच प्रतिशत), मंडी (छह प्रतिशत), शिमला (छह प्रतिशत) और सोलन (दो प्रतिशत) भी भूकंप का केंद्र रहा है.

हिमाचल के पास भूकंप की बेहद दुखदाई यादें हैं. पिछली सदी में 4 अप्रैल 1905 को कांगड़ा में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया जिसमें 20 हजार से अधिक लोगों की जान गई. वर्ष 1906 में 28 फरवरी को कुल्लू में 6.4 तीव्रता का भूकंप आया था. हिमाचल की 40 से अधिक पंचायतों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण (disaster management training) और भूकंप के दौरान काम आने वाले सामान प्रदान करने वाली संस्था से जुड़ी आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ मीनाक्षी रघुवंशी का कहना है कि भूकंप से डरने नहीं बल्कि सतर्क रहने की जरूरत है. हिमाचल प्रदेश चौथे और पांचवें सिस्मिक जोन (seismic zone) में आता है. यहां हर समय भूकंप का खतरा बना रहता है. ऐसे में लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है.


उन्होंने कहा कि भूकंप से कई प्रकार से नुकसान होता है. फिर चाहे वो मानवीय क्षति हो या आर्थिक रूप से नुकसान. जिस प्रकार कांगड़ा में 1905 में भूकंप आया था अगर आज के समय में यह भूकंप आता है तो क्षति 50 गुना बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन नियमों (disaster management rules) के तहत भवन निर्माण करना चाहिए. इसके अलावा जब भी भूकंप आये तो एकदम खुले में चले जाएं. रात को सोते समय पानी और टॉर्च अपने आसपास रखनी चाहिए. भूकंप आने पर सबसे पहले खुद का बचाव करें.

मीनाक्षी के अनुसार रात के समय आने वाले भूकंप अधिक कष्टकारी होते हैं. रात में राहत और बचाव कार्यों में दिक्कत आती है. आपदा की स्थिति में सबसे पहले जिला प्रशासन की मशीनरी का प्रशिक्षित होना सबसे जरूरी है. उनका कहना है कि शिमला और सोलन जैसे शहरों में अवैज्ञानिक और बेतरतीब निर्माण भयावह स्थितियां पैदा कर रहा है. दुर्भाग्यवश यदि बड़ी तीव्रता का भूकंप आए तो राहत और बचाव कार्य में बहुत दिक्कत पेश आएगी.

वहीं, राज्य सरकार के राजस्व मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर (Revenue Minister Mahendra Singh Thakur) का कहना है कि राज्य में आपदा प्रबंधन कमेटियां सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं. जिला प्रशासन को हर समय सतर्क रहने के निर्देश हैं. आपदा प्रबंधन कमेटियां (disaster management committees) भूकंप और अन्य आपदाओं के समय जिला प्रशासन की मशीनरी के साथ संपर्क में रहती हैं. उन्होंने कहा कि भूकंप के दौरान तुरंत राहत और बचाव कार्य (Quick relief and rescue operations during earthquake) शुरू करने के लिए राज्य सरकार की आपदा प्रबंधन से जुड़ी मशीनरी पूरी तरह प्रशिक्षित है.

ये भी पढ़ें : अनुराग ठाकुर के 'आदर्श गांव' की हकीकत: निर्मल का तमगा हासिल कर चुकी अणु पंचायत में गंदगी का अंबार

शिमला: हिमाचल प्रदेश भूकंप (Earthquake) के लिहाज से बेहद संवेदनशील जोन (sensitive zone) में आता है. पिछली सदी में वर्ष 1905 में आए विनाशकारी भूकंप की भयावह यादें अभी भी दहशत पैदा कर देती हैं. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश (Hill State Himachal Pradesh) के लोग अक्सर भूकंप के डर से सहमे रहते हैं. हाल ही में एक हफ्ते में चार बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं. पिछले शुक्रवार मंडी और बिलासपुर में भूचाल आने से डर का माहौल पैदा हो गया. खासकर मंडी जिला के कुछ इलाकों में तो चार से छह सेकंड तक जोर के झटके लगने से डरे लोग रात को घरों से बाहर निकल आए. भूकंप (Earthquake) की दृष्टि से संवेदनशील पांचवें जोन में पड़ने वाले हिमाचल में इस साल 53 छोटे बड़े भूकंप आ चुके हैं. यदि अक्टूबर और नवंबर महीने की बात करें तो छह बार भूकंप आ चुका है.

पहाड़ी राज्य होने के कारण बड़ा भूकंप हिमाचल के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता और सतर्कता (Awareness and Vigilance) से भूकंप के दौरान नुकसान (damage during earthquake) को न्यूनतम किया जा सकता है. नेपाल में विनाशकारी भूकंप के बाद राहत और पुनर्वास कार्यों से जुड़ी विशेषज्ञ मीनाक्षी रघुवंशी का कहना है कि अधिक खतरे वाले इलाकों में भूकंप रोधी मकान (earthquake proof houses) बनाने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. साथ ही नियमित अंतराल पर सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं को स्कूलों व पंचायतों में जागरूकता शिविर (Awareness Camp) आयोजित किए जाने चाहिए.

राज्य सरकार के प्रधान सचिव (Principal Secretary to State Government) ओंकार शर्मा के अनुसार सभी जिलों को समय-समय पर मॉक ड्रिल (Mock Drill) आयोजित करने के निर्देश हैं. कई स्वयं सेवी संस्थाएं निजी तौर पर जागरूकता शिविर आयोजित करती हैं जिन्हें सरकार हर संभव सहायता प्रदान करती है.

हिमाचल के लिए यह राहत की बात है कि लंबे समय से किसी भूकंप में जानमाल की कोई क्षति नहीं हुई है. विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यदि नियमित अंतराल पर कम तीव्रता के भूकंप आते रहें तो किसी बड़े भूकंप के आने के आसार कम भी हो सकते हैं. कई बार आम जनता के बीच चर्चा रही है कि 1905 में आए भूकंप (1905 earthquake) की पुनरावृत्ति हो सकती है. इसे सौ साल के अंतराल के बाद संभावित माना जा रहा था लेकिन सौभाग्य से हिमाचल ऐसी आपदा से सुरक्षित है. भू-विज्ञान विशेषज्ञ (geology specialist) और यूएनओ (UNO) के साथ मिलकर भूकंप के खतरों को न्यूनतम करने की दिशा में लंबा अनुभव रखने वाली मीनाक्षी रघुवंशी (Meenakshi Raghuvanshi) का कहना है कि हिमाचल जैसे राज्य में सरकार का रोल अधिक अहम है. भूकंप रोधी मकान बनाने का प्रशिक्षण पंचायत स्तर पर दिया जाना चाहिए. भूकंप आने पर खुद का बचाव करने के उपाय संबंधी पंफलेट भी सर्कुलेट किए जाने चाहिए.



वर्ष 2021 में साल के शुरुआत में ही चंबा जिला ने भूचाल महसूस किया. जिला में 6 जनवरी को चंबा में 3.2 तीव्रता का भूकंप आया था. इसी दौरान जनवरी महीने में ही एक रात में मंडी, कांगड़ा, कुल्लू और बिलासपुर में तीन बार भूडोल हुआ. फरवरी महीने में 13 तारीख को शिमला में भूकंप आया इसी तरह अप्रैल महीने में 5 और 16 तारीख को चंबा और लाहौल स्पीति में धरती के भीतर हलचल से दहशत फैल गई. मंडी में इसी साल 22 अप्रैल को भी भूकंप आया था. मई महीने में 8 तारीख को धर्मशाला में भूकंप आया.

हिमाचल प्रदेश एक हिमालयी राज्य है, लिहाजा हिमालयन रेंज (Himalayan range) में किसी भी जगह आए बड़े भूकंप का असर यहां देखने को मिलेगा. उदाहरण के लिए फरवरी महीने में नॉर्थ इंडिया (North India) में रात के समय भूकंप के भारी झटके महसूस किए गए. उस समय इसका प्रथम केंद्र तजाकिस्तान और दूसरा केंद्र पंजाब का अमृतसर इलाका था. यह भूकंप इतना भारी था कि इसके झटके हिमाचल के हमीरपुर, सोलन, सिरमौर, ऊना, कांगड़ा, कुल्लू, चंबा और बिलासपुर जिलों में भी महसूस किए गए. मार्च महीने में तो तीन दिन में तीन बार प्राकृतिक आपदा के झटके आए. किन्नौर व चंबा में कम तीव्रता के झटके आये. अब नवंबर महीने में 24 घंटे के अंदर चार भूकंप आ गए इस बार लोग अधिक डरे हुए हैं क्योंकि मंडी जिला में आया झटका काफी बड़ा रहा है.

वर्ष 2020 में भी कई बार धरती कांपती रही. उससे पहले 20 दिसंबर 2019 को अफगानिस्तान के हिंदुकुश रीजन में भूकंप का केंद्र था. जिसका असर कुल्लू, ऊना और कांगड़ा में भी दिखाई दिया. इस साल 9 जनवरी को कांगड़ा की करेरी झील भूकंप का केंद्र बनी तो उसके झटके मनाली में भी महसूस किए गए. ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि हिमाचल में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद हल्के झटके आ रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में आरंभ से ही भूकंप का खतरा रहा है. यदि एक दशक के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो पिछले दशक में 2006 से 2016 तक 10 साल की अवधि में पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में कुल 75 भूकंप आये. चम्बा और लाहौल स्पीति में सबसे अधिक बार धरती डोली.

इन 75 भूकंपों में से 40 की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 4 से कम रही. इस दौरान 60 बार हिमाचल में भूकंप का केंद्र (earthquake epicenter) रहा है जबकि पंद्रह बार नेपाल, जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भूकंप का केंद्र होने से हिमाचल में झटके महसूस किए गए हैं. बीते दस साल में हिमाचल में आए भूकंपों में 42 प्रतिशत का केंद्र जिला चंबा और चंबा की जम्मू-कश्मीर के साथ लगती सीमा रही है. हिमाचल में दो जनजातीय जिले हैं. लाहौल स्पीति और किन्नौर के अलावा चंबा का कुछ इलाका भी जनजातीय है. हिमाचल की सीमा पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर से लगती है. विशेषज्ञों का आकलन देखें तो लाहौल स्पीति जिला और जम्मू-कश्मीर से लगती सीमा 23 प्रतिशत बार भूकंप का केंद्र रही है. कांगड़ा (आठ प्रतिशत), किन्नौर (पांच प्रतिशत), मंडी (छह प्रतिशत), शिमला (छह प्रतिशत) और सोलन (दो प्रतिशत) भी भूकंप का केंद्र रहा है.

हिमाचल के पास भूकंप की बेहद दुखदाई यादें हैं. पिछली सदी में 4 अप्रैल 1905 को कांगड़ा में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया जिसमें 20 हजार से अधिक लोगों की जान गई. वर्ष 1906 में 28 फरवरी को कुल्लू में 6.4 तीव्रता का भूकंप आया था. हिमाचल की 40 से अधिक पंचायतों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण (disaster management training) और भूकंप के दौरान काम आने वाले सामान प्रदान करने वाली संस्था से जुड़ी आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ मीनाक्षी रघुवंशी का कहना है कि भूकंप से डरने नहीं बल्कि सतर्क रहने की जरूरत है. हिमाचल प्रदेश चौथे और पांचवें सिस्मिक जोन (seismic zone) में आता है. यहां हर समय भूकंप का खतरा बना रहता है. ऐसे में लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है.


उन्होंने कहा कि भूकंप से कई प्रकार से नुकसान होता है. फिर चाहे वो मानवीय क्षति हो या आर्थिक रूप से नुकसान. जिस प्रकार कांगड़ा में 1905 में भूकंप आया था अगर आज के समय में यह भूकंप आता है तो क्षति 50 गुना बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन नियमों (disaster management rules) के तहत भवन निर्माण करना चाहिए. इसके अलावा जब भी भूकंप आये तो एकदम खुले में चले जाएं. रात को सोते समय पानी और टॉर्च अपने आसपास रखनी चाहिए. भूकंप आने पर सबसे पहले खुद का बचाव करें.

मीनाक्षी के अनुसार रात के समय आने वाले भूकंप अधिक कष्टकारी होते हैं. रात में राहत और बचाव कार्यों में दिक्कत आती है. आपदा की स्थिति में सबसे पहले जिला प्रशासन की मशीनरी का प्रशिक्षित होना सबसे जरूरी है. उनका कहना है कि शिमला और सोलन जैसे शहरों में अवैज्ञानिक और बेतरतीब निर्माण भयावह स्थितियां पैदा कर रहा है. दुर्भाग्यवश यदि बड़ी तीव्रता का भूकंप आए तो राहत और बचाव कार्य में बहुत दिक्कत पेश आएगी.

वहीं, राज्य सरकार के राजस्व मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर (Revenue Minister Mahendra Singh Thakur) का कहना है कि राज्य में आपदा प्रबंधन कमेटियां सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं. जिला प्रशासन को हर समय सतर्क रहने के निर्देश हैं. आपदा प्रबंधन कमेटियां (disaster management committees) भूकंप और अन्य आपदाओं के समय जिला प्रशासन की मशीनरी के साथ संपर्क में रहती हैं. उन्होंने कहा कि भूकंप के दौरान तुरंत राहत और बचाव कार्य (Quick relief and rescue operations during earthquake) शुरू करने के लिए राज्य सरकार की आपदा प्रबंधन से जुड़ी मशीनरी पूरी तरह प्रशिक्षित है.

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Last Updated : Jan 4, 2022, 2:48 PM IST
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