शिमला: हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वह शारीरिक शिक्षा अध्यापक के पद पर बैचवाइज नियुक्ति के लिए भर्ती और पदोन्नति नियमों (आर एंड पी) में छूट देने के लिए विचार (Appointment of Physical Education Teachers in Himachal ) करें. न्यायालय ने इस बाबत राज्य सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है. यह आदेश पारित करते हुए न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने कहा कि वर्तमान में राज्य में शारीरिक शिक्षा अध्यापकों के 870 से अधिक पद खाली पड़े हैं.
इस तरह, याचिकाकर्ताओं के मामलों पर बैच के आधार पर पीईटी के पदों पर नियुक्ति (HP PET batch wise Appointment) के लिए आसानी से विचार किया जा सकता है. इस बारे में 15 फरवरी, 2011 को जारी अधिसूचना के अनुसार न्यूनतम योग्यता में उन उम्मीदवारों को एक बार छूट दी गई थी, जिनके पास नए भर्ती और पदोन्नति नियमों के अनुसार अपेक्षित योग्यता नहीं थी. अदालत ने यह आदेश पीटीई के पद के लिए उम्मीदवारों द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह पर पारित किया, जिसमें कहा गया था कि 15 फरवरी 2011 को जारी अधिसूचना के बाद से राज्य के अधिकारियों ने स्वयं ऐसे उम्मीदवारों को छूट देने का फैसला किया है. जिन्होंने एक साल का डिप्लोमा पास किया था.
पीईटी के पद के खिलाफ नियुक्ति इस शर्त के अधीन है कि उन्हें अपनी शैक्षणिक योग्यता में पांच साल की अवधि में सुधार करना होगा. उनके मामलों पर अन्य पात्र उम्मीदवारों के बीच पीईटी की नियुक्ति के लिए विचार किया जाना चाहिए था. लेकिन सरकार ने उनकी पात्रता को इस आधार पर खारिज कर दिया है कि उनके पास नए आर एंड पी नियम, 2011 के तहत निर्धारित आवश्यक योग्यता नहीं है. जिसके तहत शारीरिक शिक्षा अध्यापक के पद के लिए आवश्यक योग्यता 50 प्रतिशत अंकों के साथ 10+2 और दो साल के डिप्लोमा के रूप में निर्धारित की गई थी.
अदालत ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि सभी याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 1996-99 में शारीरिक शिक्षा में एक वर्ष का डिप्लोमा उत्तीर्ण करने के बाद राज्य भर के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में अपना नाम पंजीकृत कराया. राज्य सरकार ने स्वयं योग्यता में छूट देने का एक सचेत निर्णय लिया और इस संबंध में अधिसूचना जारी की और अब याचिकाकर्ताओं को अधिसूचना का लाभ न देना न केवल भेदभाव के बराबर है. बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के उनके अधिकार का भी उल्लंघन करता है. साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत नियुक्ति और पदोन्नति के मामले में समानता के सिद्धांत के खिलाफ है.