शिमला: घोर आर्थिक संकट से घिरे हिमाचल का खजाना जंगलों में पड़े सूखे पेड़ भर सकते हैं. सूख कर गिर चुके पेड़ों का उपयोग करने के लिए सरकार विभिन्न स्तरों पर काम कर रही है. रिजर्व फारेस्ट एरिया में असंख्य सूखे पेड़ गिरे हुए हैं. अभी तक उनका उपयोग करने के लिए कोई नीति नहीं थी. सत्ता में आने के बाद जयराम सरकार ने पहल की. वन मंत्री राकेश पठानिया का कहना है कि एचपी स्टेट फॉरेस्ट कॉरपोरेशन लकड़ी विक्रय से लाभ में आ गया है. अब रिजर्व फॉरेस्ट में पड़े सूखे लॉग्स को उपयोग में लाया जाएगा. सर्दी का सीजन खत्म होने के बाद इस दिशा में तेजी से काम होगा. मंत्री राकेश पठानिया ने ईटीवी भारत को बताया कि जंगलों में पड़ी सूखी लकड़ी और बड़े पेड़ों को उपयोग के अनुसार वन निगम के माध्यम से बिक्री कर रेवेन्यू जुटाया जा रहा है.
गौरतलब है कि वरिष्ठ भाजपा नेता और ज्वालामुखी से विधायक रमेश धवाला ने इस मामले में सबसे पहले राज्य सरकार को सुझाव दिया था. धवाला ने तो यहां तक कहा था कि प्रदेश का सारा कर्ज सूखे पेड़ चुका सकते हैं. सत्ता में आने के बाद जयराम सरकार ने फैसला लिया था कि वो बरसात, बर्फबारी व अन्य कारणों से सामान्य व रिजर्व फॉरेस्ट (forest area of himachal pradesh) में गिरे पेड़ों को बेचेगी. इसके अलावा सूख चुके पेड़ों की लकड़ी भी बेचने (Himachal govt will sell dry wood) पर सहमति बनी थी. बाद में 2019 में राज्य सरकार ने हिमाचल के जंगलों में गिरे और सूखे यानी अन इकॉनोमिकल पेड़ों के लिए नई नीति लाई. नीति लागू होने के बाद इन पेड़ों से न केवल इमारती व ईंधन के लिए लकड़ी का उपयोग शुरू हुआ, बल्कि सरकार की आय भी बढ़ी. इससे पूर्व गिरे-पड़े पेड़ों को गैर किफायती यानी अन इकॉनोमिकल (uneconomical trees in himachal forest) घोषित किया जाता था.
हिमाचल सरकार के वन मंत्री राकेश पठानिया के अनुसार इस महत्वपूर्ण निर्णय और नीति से वन विभाग को विभागीय कार्यों में इस्तेमाल को नि:शुल्क लकड़ी मिल रही है. साथ ही, गिरे पेड़ों के एवज में वन निगम से बड़ी राशि की मांग करने वाले ठेकेदारों की मनमानी पर भी रोक लगी है. इससे पूर्व ठेकेदार पेड़ों से लकड़ी निकालने के लिए वन निगम से मनमाने दाम का दबाव डालते थे और मजबूरन निगम को यह बड़ी राशि अदा कर घाटा झेलना पड़ता था या फिर उन पेड़ों को गैर-किफायती घोषित कर दिया जाता था.
जयराम सरकार ने सत्ता संभालने के बाद पहल की थी. मौजूदा नीति के तहत गैर-किफायती (अन-इकॉनोमिकल) टिंबर का इस्तेमाल अब सरकारी विभागों, मसलन लोक निर्माण, सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, वन और वन निगम आदि द्वारा बनाए जा रहे सरकारी भवनों, वन विभाग और निगम की कार्यशालाओं में फर्नीचर बनाने के लिए प्रयोग किया जा रहा है. हालांकि कोरोना के कारण इस प्रक्रिया में देरी हुई है, लेकिन सर्दी का दौर खत्म होने के बाद इसमें तेजी लाई जाएगी.
वन मंत्री राकेश पठानिया ने इस नीति के लाभ गिनाते हुए बताया कि जंगलों में इन पेड़ों के स्थान पर नई पौध भी तैयार हो सकेगी. इससे प्रदेश के जंगलों में हरियाली बढ़ेगी और जंगल पहले से अधिक हरे भरे होंगे. इस नीति से सरकार को अन्य कई लाभ होंगे. वन निगम में भर्ती किये गए चिरानी-ढुलानियों से भी काम लिया जा सकेगा. पूर्व में चिरानियों-ढुलानियों की भर्ती तो कर दी गई थी, लेकिन उनसे तय काम नहीं लिया गया.
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वन मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने हिमाचल के जंगलों में सड़ रहे उन खराब या गिरे पड़े पेड़ों (साल्वेज टिंबर) की तरफ ध्यान दिया है, जिसे अब तक गैर-किफायती समझ कर जंगलों में ही छोड़ दिया जाता था. वन निगम अब तक ऐसे पेड़ों को, अन-इकॉनोमिकल घोषित कर देता था और घाटा होने के डर से इस्तेमाल नहीं करता था. ऐसे में यह पेड़ गलने-सड़ने के कारण न केवल नए पौधों की पैदावार को कम करते थे, बल्कि स्पष्ट नीति न होने के कारण बेशकीमती लकड़ी जंगलों में ही सड़ जाती थी.
जयराम सरकार ने 27 जुलाई 2018 को एक अहम अधिसूचना जारी करते हुए साफ कर दिया था कि गैर-किफायती समझे जाने वाले हज़ारों पेड़ों को अब नजरअंदाज नहीं किया जाएगा, बल्कि इससे मिलने वाली लकड़ी का दोहन टीडी (टिंबर डिस्ट्रीब्यूशन)के तहत किया जाएगा. उन्होंने कहा कि जो लोग हिमाचल के जंगलों में अकारण लगने वाली आग को बुझाने में स्वयंसेवी के रूप में अहम योगदान देंगे, उन्हें विभाग प्राथमिकता के आधार पर इन पेड़ों से बढ़िया लकड़ी निकाल कर टी डी के तहत देगा.
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नई नीति के अनुसार हिमाचल प्रदेश वन विभाग ऐसी लकड़ी का इस्तेमाल वन विश्राम गृहों, निरीक्षण गृहों, ट्रांजिट आवासों, वन प्रशिक्षण केंद्रों, सामुदायिक भवनों, संवाद केंद्रों, चिड़ियाघरों आदि में कर सकेंगे. प्रदेश में इको टूरिज्म के तहत जंगलों में ट्रैकों पर तैयार लकड़ी के छोटे पुलों के लिए भी साल्वेज लकड़ी का इस्तेमाल किया जा सकेगा. वन विभाग और वन निगम की कार्यशालाएं भी अब इस साल्वेज टिंबर का इस्तेमाल फर्नीचर बनाने के लिए करेंगी. इसके लिए वर्कशॉप को मात्र 25 रुपये रॉयल्टी ही वन विभाग को देनी होगी. लकड़ी की चिराई का खर्चा वन विभाग और वन निगम उठाएंगे.
भाजपा नेता रमेश धवाला ने इसके साथ खैर के पेड़ों की बिक्री का सुझाव भी दिया था. यहां इस नीति की पृष्ठभूमि का जिक्र करना दिलचस्प रहेगा. जयराम सरकार के पहले बजट सत्र में भाजपा के वरिष्ठ नेता और ज्वालामुखी के विधायक रमेश ध्वाला ने कहा था कि हिमाचल की वन संपदा कर्ज की बीमारी को दूर कर सकती है. ध्वाला का मानना था कि प्रदेश के जंगलों में बड़ी संख्या में सूखे पेड़ गिरे हुए हैं. कोई पेड़ बरसात में टूटता है, कोई तूफान में तो कोई सूख जाने के कारण जड़ से उखड़ जाता है.
वन विभाग के वर्किंग प्लान में ये प्रावधान है कि ऐसे पेड़ों को काट कर उपयोग में लाया जा सकता है और उनकी जगह नए पौधे लगाए जा सकते हैं. पूरे हिमाचल में बेशुमार पेड़ सूख कर या अन्य कारणों से जंगलों में पड़े-पड़े सड़ रहे हैं. उनकी लकड़ी को बेचा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि खैर के पेड़ बेशकीमती होते हैं. वन माफिया के लोग अवैध रूप से उन्हें काटते हैं. खैर की लकड़ी कत्था बनाने के अलावा अन्य कई कार्यों में उपयोग में लाई जाती है. ध्वाला ने कहा कि हिमाचल में ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर व कांगड़ा, चंबा में खैर के पेड़ों की बहुतायत है. अकेले कांगड़ा जिला के खैर की लकड़ी ही समूचे प्रदेश को कर्ज के संकट से उबार सकती है.