शिमला: चुनावी साल में हिमाचल कांग्रेस में टूट-फूट का दौर जारी है. पंडित सुखराम के पोते और मंडी सदर से भाजपा विधायक अनिल शर्मा के बेटे ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आश्रय ले लिया है. शुक्रवार को ठीक जिस समय मंडी में ये सब हुआ, उसी समय बिलासपुर में कांग्रेस के कद्दावर नेता रामलाल ठाकुर अपनी ही पार्टी के नेता कौल सिंह पर सवाल उठा रहे थे कि वे एम्स को मंडी ले जाना चाहते थे, लेकिन हम कोठीपुरा पर अड़े रहे. (Himachal Congress leaders join BJP)
हाथ का साथ छोड़ रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता: आश्रय शर्मा ने कांग्रेस को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बताते हुए पार्टी से किनारा कर लिया है. उससे पहले दिल्ली में भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस नेता हर्ष महाजन ने पार्टी को मां-बेटे की पार्टी करार दिया था. हर्ष महाजन का भाजपा में शामिल होना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका रहा, क्योंकि वे साढ़े चार दशक से कांग्रेस के लिए समर्पित रहे और वीरभद्र सिंह के विश्वस्त सहयोगी भी थे. उससे पहले कांग्रेस के एक और कार्यकारी अध्यक्ष और मौजूदा विधायक पवन काजल एक और विधायक लखविंद्र राणा भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे. (lakhwinder rana joins bjp) (pawan kajal joins bjp)
इसके साथ ही 4 अक्टूबर को हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से पूर्व लोकसभा सांसद सुरेश चंदेल ने भी कांग्रेस से इस्तीफा (suresh chandel resigns from congress) दे दिया. सुरेश चंदेल ने कहा कि वो कांग्रेस की कार्यप्रणाली से खिन्न (Suresh Chandel attacks on congress) थे, इसलिये उन्होंने पार्टी छोड़ने का फैसला लिया है. सुरेश चंदेल ने कहा कि वो पीएम मोदी देश हित में बेहतरीन काम कर रहे हैं. वैसे चंदेल ने कांग्रेस के साथ सिर्फ 3 साल की सियासी पारी खेली है, इससे पहले वो बीजेपी में रहे हैं और संसद से लेकर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तक रह चुके हैं.
चुनावी साल में कांग्रेस को झटका: चुनावी साल में एक के बाद एक झटकों से कांग्रेस कार्यकर्ता हताशा महसूस कर रहे हैं. राजनीतिक जानकार एक सुर में ये स्वीकार कर रहे हैं कि वीरभद्र सिंह की गैर मौजूदगी में कांग्रेस को एकजुट रखना हर किसी के बस की बात नहीं है. वीरभद्र सिंह अकेले अपने दम पर पार्टी को एक सूत्र में बांधे रखते थे. कांग्रेस हाईकमान ने प्रतिभा सिंह को राज्य में पार्टी की मुखिया बनाया तो भी औपचारिक पत्र में वीरभद्र सिंह के नाम का प्रयोग किया. वीरभद्र सिंह के नाम को भुनाने के लिए ही उनकी पत्नी को संगठन की कमान सौंपी गई लेकिन इसका कोई असर कांग्रेस के पक्ष में नहीं दिख रहा है.
खैर, यहां चर्चा का विषय है कि क्या चुनावी साल में कांग्रेस में नेताओं का दम घुट रहा है. चुनाव सिर पर हों, सत्तारूढ़ दल एंटी इन्कम्बेंसी से जूझ रही हो, ऐसी परिस्थितियों में तो विपक्ष को और आक्रामक तरीके से हमलावर होना चाहिए. नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री (Leader of Opposition Mukesh Agnihotri) जरूर सीएम जयराम ठाकुर व सरकार पर जोरदार राजनीतिक वार करते हैं, लेकिन पार्टी में एकजुटता के साथ भाजपा का मुकाबला करने की ललक नजर नहीं आती. ऐसे ही माहौल को देखते हुए छह दिन पहले सीएम जयराम ठाकुर ने कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह तक को भाजपा में आने का न्योता दे दिया था. (Dispute in Himachal Congress)
चुनाव से पहले कांग्रेस को और झटका देने की तैयारी में बीजेपी: अभी ये चर्चा है कि भाजपा हिमाचल में कांग्रेस को ऐन चुनाव से पहले बड़ा झटका देने की तैयारी में है. कांग्रेस के कुछ ऐसे नेताओं को भाजपा में शामिल करने की जोरशोर से कोशिश हो रही है, जिससे हिमाचल की राजनीति में भूचाल आ जाए. इस कड़ी में हमीरपुर और शिमला से कुछ नेताओं के नामों पर चर्चा है. देखा जाए तो पार्टी रूपी परिवार में मजबूत और कड़क मुखिया के न होने से ऐसी स्थितियां पेश आती हैं. कांग्रेस में हर कोई सीएम पद का दावेदार है. विपक्षी दल भाजपा तो ऐसा कहेगा ही, लेकिन कांग्रेस के मजबूत नेता रामलाल ठाकुर भी इस बात को दोहरा चुके हैं.
कांग्रेस में सीएम पद को लेकर असमंजस: इससे पता चलता है कि पार्टी में सब ठीक नहीं है. अमूमन चुनावी साल (Himachal Assembly Elections 2022) में ये संकेत मिल जाते हैं कि सत्ता मिलने पर कौन सीएम होगा. कांग्रेस में इसे लेकर असमंजस है. इस समय मुकेश अग्निहोत्री, सुखविंद्र सिंह सुक्खू के अलावा कौल सिंह ठाकुर और खुद प्रतिभा सिंह भी दौड़ में हैं. कौल सिंह की सीएम बनने की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. जब कोई सर्वमान्य नेता न हो तो ऐसे हालात पैदा होते हैं. कांग्रेस में इसी अनिश्चितता के कारण नेताओं का यहां दम घुट रहा है. राष्ट्रीय स्तर पर भी कई नेता कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं. गुलाम नबी आजाद ने अलग दल बना लिया. देशभर में सिमट रही कांग्रेस भी कई नेताओं को पाला बदलने पर मजबूर कर रही है.
आपसी कलह से जूझ रही कांग्रेस: राजस्थान में कांग्रेस की सरकार चल रही थी, लेकिन वहां भी हाईकमान ने फिजूल में पंगा मोल ले लिया. राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी परिस्थितियों का प्रभाव राज्यों पर भी पड़ता है. सत्ताधारी दल को घेरने में समय और ऊर्जा लगाने की बजाय यदि कांग्रेस को अपनी ही पार्टी के भीतरी संघर्ष से जूझना पड़े तो कई नेताओं को पार्टी में दम घुटना लाजिमी है. राजस्थान से लेकर हिमाचल और पंजाब से लेकर हरियाणा तक हर राज्य में कांग्रेस के यही हालात हैं, पार्टी कई धड़ों में बंटी है और अंदरूनी कलह चरम पर है. जिसके कारण चुनावी दस्तक के बीच नेता दूसरे दलों का दरवाजा खटखटाते हैं. फिलहाल, हर्ष महाजन के बाद अब पंडित सुखराम के परिवार ने भी भाजपा में ही आश्रय (ashray sharma resigns from congress) ले लिया है. देखना यह है कि टिकट बंटने के बाद कांग्रेस में और टूट होती है या नहीं.
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