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महिला को बुरी तरह से पीटने का मामला: हाईकोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर खड़े किए सवाल - assault with woman in kasauli

सोलन जिले में महिला को बुरी तरह से पीटने के मामले में हिमाचल हाईकोर्ट ने पुलिस की कार्य शैली पर खेद जताते हुए महिला की शिकायत पर पुनः विचार करने के मजिस्ट्रेट कसौली (High Court in case of assault with woman in kasauli) को आदेश जारी किए हैं. कोर्ट ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोप पूरी तरह से यह निष्कर्ष निकालने के लिए मजबूर करते हैं कि पुलिस ने निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम नहीं किया है.

Himachal Pradesh High Court
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय
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Published : Apr 20, 2022, 9:10 PM IST

शिमला: महिला को बुरी तरह से पीटने (assault with woman in kasauli) के आरोपी की जांच में ढील बरतने पर हाईकोर्ट ने पुलिस की कार्य शैली पर खेद जताते हुए महिला की शिकायत पर पुनः विचार करने के मजिस्ट्रेट कसौली को आदेश जारी किए हैं. न्यायाधीश संदीप शर्मा ने विपाशा द्वारा दायर याचिका पर अपना निर्णय पारित करते हुए कहा कि दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में शिकायतकर्ता ने पुलिस द्वारा दायर की गई स्टेटस रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज की, जिसमें उसने फिर से दोहराया कि जांच निष्पक्ष तरीके से नहीं की गई है और पुलिस द्वारा पुलिस कर्मियों को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

आपराधिक दण्ड प्रक्रिया की धारा 156(3) के प्रावधानों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने से स्पष्ट रूप से पता चलता (High Court in case of assault with woman in kasauli) है कि पुलिस द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन करने पर मजिस्ट्रेट द्वारा जांच का प्रावधान है और जहां मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि पुलिस ने अपना कर्तव्य सही से निर्वहन नहीं किया है या फिर संतोषजनक ढंग से जांच नहीं की है. वह पुलिस को जांच ठीक से करने का निर्देश दे सकता है.

कोर्ट ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोप पूरी तरह से यह निष्कर्ष निकालने के लिए मजबूर करते हैं कि पुलिस ने निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम नहीं किया है, केवल पुलिसकर्मियों को बचाने का प्रयास किया गया है. हालांकि, पुलिस उपाधीक्षक परवाणू को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था, लेकिन उसने कसौली थाने में दर्ज शुरुआती शिकायत के आधार पर ही मामले की जांच की है.

एक बार जब मजिस्ट्रेट को धारा 156 (3) आपराधिक दण्ड प्रक्रिया के तहत शिकायत मिली थी, जिसमें पुलिस कर्मियों के खिलाफ गंभीर आरोप थे, तो आरोपों की शुद्धता का पता लगाने के लिए जांच के लिए पुलिस को शिकायत भेजनी चाहिए थी. रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद मजिस्ट्रेट या तो इस कारण कार्यवाही को बंद कर सकता है कि शिकायत में निहित आरोपों के संबंध में प्राथमिकी पहले से ही दर्ज है या वह शिकायत में नामित आरोपी के खिलाफ उचित कानून प्रावधानों के तहत मामला दर्ज करने का आदेश दे सकता है.

हालांकि, उक्त मामले में मजिस्ट्रेट ने निहित आरोपों की शुद्धता का पता लगाने का प्रयास किए बिना शिकायत, जिसे अन्यथा जांच अधिकारी को संदर्भित करके पता लगाया जा सकता है, इस कारण कार्यवाही को बंद करने आदेश पारित किए कि उक्त मामले को लेकर प्राथमिकी पहले से ही दिनांक 25 नवंबर 2021 को पंजीकृत है. हाईकोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, कसौली, जिला सोलन द्वारा पारित निर्णय में त्रुटि पाते हुए निर्णय को रद्द करने व आपराधिक दण्ड प्रक्रिया की धारा 156 (3) के तहत दायर शिकायत पर चार सप्ताह की अवधि के भीतर विचार करने के आदेश जारी किए.

ये भी पढ़ें: हाईकोर्ट का आदेश, अडानी समूह को अदा करें जंगी थोपन प्रोजेक्ट की अग्रिम प्रीमियम राशि

शिमला: महिला को बुरी तरह से पीटने (assault with woman in kasauli) के आरोपी की जांच में ढील बरतने पर हाईकोर्ट ने पुलिस की कार्य शैली पर खेद जताते हुए महिला की शिकायत पर पुनः विचार करने के मजिस्ट्रेट कसौली को आदेश जारी किए हैं. न्यायाधीश संदीप शर्मा ने विपाशा द्वारा दायर याचिका पर अपना निर्णय पारित करते हुए कहा कि दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में शिकायतकर्ता ने पुलिस द्वारा दायर की गई स्टेटस रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज की, जिसमें उसने फिर से दोहराया कि जांच निष्पक्ष तरीके से नहीं की गई है और पुलिस द्वारा पुलिस कर्मियों को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

आपराधिक दण्ड प्रक्रिया की धारा 156(3) के प्रावधानों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने से स्पष्ट रूप से पता चलता (High Court in case of assault with woman in kasauli) है कि पुलिस द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन करने पर मजिस्ट्रेट द्वारा जांच का प्रावधान है और जहां मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि पुलिस ने अपना कर्तव्य सही से निर्वहन नहीं किया है या फिर संतोषजनक ढंग से जांच नहीं की है. वह पुलिस को जांच ठीक से करने का निर्देश दे सकता है.

कोर्ट ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोप पूरी तरह से यह निष्कर्ष निकालने के लिए मजबूर करते हैं कि पुलिस ने निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम नहीं किया है, केवल पुलिसकर्मियों को बचाने का प्रयास किया गया है. हालांकि, पुलिस उपाधीक्षक परवाणू को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था, लेकिन उसने कसौली थाने में दर्ज शुरुआती शिकायत के आधार पर ही मामले की जांच की है.

एक बार जब मजिस्ट्रेट को धारा 156 (3) आपराधिक दण्ड प्रक्रिया के तहत शिकायत मिली थी, जिसमें पुलिस कर्मियों के खिलाफ गंभीर आरोप थे, तो आरोपों की शुद्धता का पता लगाने के लिए जांच के लिए पुलिस को शिकायत भेजनी चाहिए थी. रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद मजिस्ट्रेट या तो इस कारण कार्यवाही को बंद कर सकता है कि शिकायत में निहित आरोपों के संबंध में प्राथमिकी पहले से ही दर्ज है या वह शिकायत में नामित आरोपी के खिलाफ उचित कानून प्रावधानों के तहत मामला दर्ज करने का आदेश दे सकता है.

हालांकि, उक्त मामले में मजिस्ट्रेट ने निहित आरोपों की शुद्धता का पता लगाने का प्रयास किए बिना शिकायत, जिसे अन्यथा जांच अधिकारी को संदर्भित करके पता लगाया जा सकता है, इस कारण कार्यवाही को बंद करने आदेश पारित किए कि उक्त मामले को लेकर प्राथमिकी पहले से ही दिनांक 25 नवंबर 2021 को पंजीकृत है. हाईकोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, कसौली, जिला सोलन द्वारा पारित निर्णय में त्रुटि पाते हुए निर्णय को रद्द करने व आपराधिक दण्ड प्रक्रिया की धारा 156 (3) के तहत दायर शिकायत पर चार सप्ताह की अवधि के भीतर विचार करने के आदेश जारी किए.

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