शिमला: प्रदेश उच्च न्यायालय(high Court) ने उत्तर पुस्तिका के मूल्यांकन में लापरवाही और याचिकाकर्ता के करियर की अपूरणीय क्षति से जुड़े मामले में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय(Himachal Pradesh University) के रजिस्ट्रार(registrar) और परीक्षा नियंत्रक(examination controller) को नोटिस(notice) जारी कर जवाब तलब किया है. मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक(Chief Justice Mohammad Rafiq) और न्यायमूर्ति सबीना(Justice Sabina) की खंडपीठ ने केशव सिंह द्वारा दायर याचिका पर ये आदेश पारित किए.
याचिका में आरोप लगाया गया कि प्रार्थी ने सत्र 2017-2020 के लिए सरकारी कॉलेज हमीरपुर(Government College Hamirpur) में बीएससी (गणित) में प्रवेश लिया था और नवंबर 2019 में 5वें सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल हुआ था. फरवरी 2020 में उसने आईआईटी जैम प्रवेश परीक्षा में शामिल हुआ और 100 में से 40.33 अंक प्राप्त किए और एम.एससी (पीजी कोर्स) एनआईटी में प्रवेश पाने के लिए पात्र बन गए.
जून 2020 में विश्वविद्यालय ने 5 वें सेमेस्टर के परिणाम घोषित किए और उसे एक पेपर में 70 में से केवल 5 अंक दिए. जिसके कारण उसे एनआईटी में प्रवेश नहीं मिल सका. आरोप लगाया गया है कि ,चूंकि उसका अकादमिक रिकॉर्ड अच्छा था और उसने इस पेपर में अधिकांश प्रश्नों का प्रयास किया था, इसलिए उसने अपने पेपर की रिचेकिंग के लिए आवेदन किया.
रिचेकिंग के बाद 42 अंक बढ़ाए गए और उस पेपर में 47 अंक हासिल किए, लेकिन पुनर्मूल्यांकन का परिणाम एमएससी की काउंसलिंग के बाद घोषित किया गया और उस समय तक सभी सीटें भर चुकी थीं और याचिकाकर्ता का प्रवेश स्वीकार नहीं किया गया था. आरोप लगाया है कि उसने फिर से आईआईटी जाम 2021 को क्वालीफाई कर लिया, लेकिन जिस मानसिक प्रताड़ना और अवसाद का उसने सामना किया है, वह अपूरणीय है.
इस प्रतियोगिता के दौर में उसने अपना एक बहुमूल्य साल का समय गंवा दिया और हजारों लोगों से वह पिछड़ गया. आरोप लगाया गया है कि प्रतिवादी विश्वविद्यालय की लापरवाही के कारण वह अपने करियर को उज्ज्वल बनाने के लिए अपने एक वर्ष के निवेश से वंचित हो गया, क्योंकि वे आईआईटी / एनआईटी जैम की किसी भी काउंसलिंग में शामिल नहीं हो सका ,और किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए कोई फॉर्म नहीं भर सका. याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों को उसे पर्याप्त मुआवजा देने और उत्तर पुस्तिकाओं की जांच का निष्पक्ष और उचित तरीका अपनाने का निर्देश देने की प्रार्थना की, ताकि भविष्य में किसी को भी ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े जो उसे झेलनी पड़ी. कोर्ट ने प्रतिवादियों को तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
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