शिमला: हमारी संस्कृति और इतिहास में महर्षि वाल्मीकि का सर्वोच्च स्थान है. ऋषि-मुनि, जिन्होंने सनातन संस्कृति का पोषण किया है, उनमें महर्षि वाल्मीकि सबसे ऊपर हैं, इसलिए वे हम सबके लिए वंदनीय और पूजनीय हैं. यह बात हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर ने बुधवार को महर्षि वाल्मीकि के प्रकटोत्सव पर शिमला के कृष्णानगर स्थित भगवान वाल्मीकि मंदिर में पूजा-अर्चना के दौरान कहीं.
प्रदेशवासियों को वाल्मीकि जयंती की शुभकामनाएं देते हुए राज्यपाल ने कहा कि महर्षि का जीवन हम सब के लिए आदर्श रहा है. उन्होंने देश में सदैव प्रेम, भाईचारा और सौहार्द का वातावरण कायम रहने की कामना की. राज्यपाल ने वाल्मीकि सभा द्वारा आयोजित भोज में भी भाग लिया. राजधानी में वाल्मीकि जयंती का प्रकाशोत्सव हर्षोल्लास से मनाया गया.
वाल्मीकि सभा की ओर से कृष्णानगर मंदिर में विशेष पूजा अर्चना का आयोजन हुआ. इस अवसर पर शहर के अन्य वाल्मीकि मंदिर में भी कई तरह के आयोजन किए गए थे. वाल्मीकि सभा शिमला की ओर से भव्य कार्यक्रम कृष्णा नगर स्थित वाल्मीकि मंदिर में किया गया. सभा के महासचिव जोगिंदर ने बताया कि पिछले 95 वर्षों से हम भगवान वाल्मीकि का प्रकाशोत्सव मनाते आ रहे हैं. वाल्मीकि मंदिर में सैकड़ों की तादाद में लोगों ने शीश नवाया. पूजा अर्चना करने के लिए मंदिर में शाम तक लोग पहुंचते रहे. कृष्णा नगर में इस दौरान भंडारे का भी आयोजन किया गया, जिसमें सेकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया.
सभा के महासचिव ने कहा कि वाल्मीकि महान संत थे. हमें उनकी बताई शिक्षाओं को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए और समाज के सभी व्यक्तियों को समान समझना चाहिए. वाल्मीकि ने राम अवतार से पहले ही रामायण लिखी थी. जिसके कारण उन्हें भगवान माना जाता है. वाल्मीकि ने एक श्लोक पर ही पूरी रामायण लिखी थी. अखिल भारतीय वाल्मीकि महासभा की ओर से लक्कड़ बाजार और आईजीएमसी में महर्षि वाल्मीकि की जयंती पर भजन कीर्तन व भंडारे का आयोजन किया जाता था, लेकिन इस बार कोरोना महामारी के चलते यह कार्यक्रम नहीं किए गए.