शिमला: हिमाचल प्रदेश में इस बार मार्च के अंतिम सप्ताह में पारा आसमान पर चढ़ना शुरू हो गया था. अप्रैल की शुरुआत भी तापमान में बढ़ोतरी से हुई है. गर्मी ने एक दशक का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. ऐसे में हिमाचल प्रदेश में 15 अप्रैल से शुरू होने वाला फॉरेस्ट फायर सीजन (Forest Fire Season in Himachal) पहली अप्रैल से ही घोषित कर दिया गया है. वन विभाग ने फॉरेस्ट फायर की दृष्टि से अति संवेदनशील वन इलाकों की सुरक्षा करने वाले चार हजार के करीब वन कर्मियों का अवकाश रद्द कर दिया है.
हिमाचल प्रदेश में 163 लाख करोड़ रुपए से अधिक की वन संपदा है. हर साल हिमाचल का ग्रीन कवर (green cover of himachal) बढ़ रहा है. ऐसे में राज्य सरकार वनों को आग से बचाने के लिए अतिरिक्त उपाय कर रही है. उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में हर साल वनों में आग लगने की डेढ़ हजार से अधिक घटनाएं पेश आती हैं. कोरोना काल में इसमें कमी आई थी. कई बार समय से पहले बारिश होने के कारण भी वन आग से बच जाते हैं, लेकिन इस बार फॉरेस्ट फायर सीजन एक पखवाड़ा पहले से सर पर आने के कारण वन विभाग अभी से अलर्ट हो गया है.
हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन में छुट्टियां होती हैं रद्द: हिमाचल प्रदेश में वन विभाग (Forest Department in Himachal Pradesh) अलग-अलग स्तरों पर कार्य करता है. वन विभाग, वन्य प्राणी विंग के अलावा वनों की देखभाल के लिए अगल-अलग सैक्शन काम करते हैं. हिमाचल प्रदेश में कुल 2095 वन बीट हैं. इनमें से 339 बीट अत्यंत संवेदनशील हैं. हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन में डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर यानी डीएफओ से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक की छुट्टियां 15 अप्रैल से 15 जून तक कैंसल की जाती हैं.
इस दौरान स्थान विशेष पर तैनात वन कर्मी किसी आपात स्थिति के अलावा अवकाश नहीं ले सकते. इस बार फॉरेस्ट फायर सीजन एक पखवाड़ा शुरू हो गया. जिसके कारण वन विभाग ने 4000 कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं. जिन कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द हुई हैं उनमें से अधिकांश कर्मी अति संवेदनशील बीटों पर तैनात हैं. विभाग ने छुट्टियों पर फैसला लेने से पूर्व इन बीटों की छंटनी कर दी है.
प्रदेश भर में लगभग 50 फीसदी बीटें ऐसी हैं, जहां वनों में आग लगने की घटनाएं करीब हर साल होती रहीं हैं. इन बीटों पर तैनात डीएफओ से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. हिमाचल प्रदेश में वन विभाग के तहत विभिन्न स्तरों पर करीब 2095 फॉरेस्ट बीट हैं. इनमें से 182 बीट वाइल्ड लाइफ की हैं, जबकि 1913 बीटें वन विभाग के पास हैं. इन सभी बीटों को 585 ब्लॉक में बांटा गया है. इनमें 515 ब्लॉक वन विभाग के पास हैं, जबकि 70 ब्लॉक वाइल्ड लाइफ के पास हैं.
हिमाचल में वन अग्नि प्रबंधन योजना लागू: वैसे तो वन विभाग अपने कर्मचारियों को फॉरेस्ट फायर रोकने में लगाता है, लेकिन इसमें पंचायत प्रतिनिधि, आम जनता, स्वयं सहायता समूह, इको क्लब और स्वयं सेवी भी सहयोग करते हैं. वन विभाग सहयोग करने वाली एजेंसियों को पुरस्कृत भी करती है. हिमाचल प्रदेश में कई वन इतने दुर्गम हैं कि वहां आग बुझाने के उपकरण ले जाना मुश्किल होता है. राज्य सरकार ने हिमाचल में वन अग्नि प्रबंधन योजना लागू की है. इस योजना में जंगलों में अढ़ाई हजार किलो मीटर लंबी मौजूदा फायर लाइनों का रख रखाव सुनिश्चित किया है. हिमाचल प्रदेश में राज्य के कुल क्षेत्रफल का 68.16 फीसदी क्षेत्र वनों के अधीन है. राज्य का 37948 वर्ग किमी क्षेत्र वनों से ढका हुआ है. इस अनमोल संपदा को फॉरेस्ट फायर से बचाना जरूरी है.
नई घास की लालच में स्थानीय लोग लगा देते हैं आग: आम तौर पर देखा गया है कि वनों में नेचुरल फॉरेस्ट फायर की घटनाएं कम होती हैं, लेकिन अधिकांश घटनाएं लोगों द्वारा अनजाने व जानबूझ कर आग लगा देते हैं. स्थानीय लोग नई घास के लालच में जंगलों में जानबूझ कर आग लगा देते हैं. इसके अलावा अवैध कटान के बाद सुबूत मिटाने के लिए पेड़ों के ठूंठ जलाने के लिए अपराधी वनों को आग के हवाले कर देते हैं. कुछ लोग गुच्छी का उत्पादन बढ़ाने के लिए खरपतवार व घास जलाने के लिए और कई बार वन्य प्राणियों को पकड़ने या शिकार के लिए भी वनों को आग के हवाले कर देते हैं.
हिमाचल में जगलों में आग लगने से हार साल लाखों का नुकसान: हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2015-16 में वनों में आग लगने की 672 घटनाएं सामने आई थी, जिसके कारण 1.34 करोड़ का नुकसान हुआ. हालांकि आग लगने के कारण वन्य प्राणी भी मौत का शिकार होते हैं. इसके अलावा जैव विविधता को भी नुकसान होता है. इस तरह नुकसान को मापने का कोई खास पैमाना तय नहीं किया जा सकता. फिर भी हर साल करोड़ों रुपए की वन संपदा नष्ट होना अच्छी बात नहीं है. इसी तरह वर्ष 2016-17 में वनों में आग लगने के 1832 मामले सामने आए, जिसके कारण 3.50 करोड़ की वन संपदा नष्ट हो गई.
वर्ष 2017-18 में वनों में आग लगने के 1164 मामले सामने आए, इससे करीब 2 करोड़ का नुकसान आंका गया. वर्ष 2018-19 में जंगलों में आग लगने के 2544 मामले सामने आए, जिसके कारण 3.25 करोड़ रुपए का नुकसान आंक गया. वहीं वर्ष 2019-20 में वनों में आग लगने के 1445 मामले सामने आए, जिससे 1.67 करोड़ रुपए का नुकसान आंका गया है. इस तरह देखने में आया है कि हिमाचल में वनों की आग के सबसे अधिक मामले 2018-19 में सामने आए हैं.
कोरोना संकट के बाद समय पर बारिश होने के कारण फॉरेस्ट फायर की घटनाएं कम हुई हैं. इस सीजन में भी यदि बारिश होती है तो इस आग से बचा जा सकता है. हिमाचल प्रदेश में पिछले फॉरेस्ट सीजन में मई व जून महीने में जंगल की आग की 883 घटनाएं हुई थीं, जिससे 1.76 करोड़ रुपए का नुकसान आंका गया है. वर्ष 2021 में फायर सीजन के दौरान समय-समय पर बारिश होती रही. इस कारण आग से नुकसान कम हुआ. कुल आग लगने के मामले 883 सामने आए. इस साल अभी फॉरेस्ट फायर की कोई बड़ी घटना नहीं हुई हैं.
हिमाचल प्रदेश में आग की घटनाओं से नुकसान | ||
वर्ष | घटनाएं | नुकसान |
2015-16 | 672 | करीब 1.34 करोड़ |
2016-17 | 1832 | करीब 3.50 करोड़ |
2017-18 | 1164 | करीब 2 करोड़ |
2018-19 | 2544 | करीब 3.25 करोड़ |
2019-20 | 1445 | करीब 1.67 करोड़ |
2020-21 | 883 | करीब 1.76 करोड़ |
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वन हिमाचल प्रदेश की शान: हिमाचल प्रदेश फॉरेस्टियर वेल्फेयर एसोशिएशन (Himachal Pradesh Forestier Welfare Association) के पदाधिकारी दिनेश कुमार का कहना है कि वन हिमाचल प्रदेश की शान है और वन कर्मी जंगलों को बचाने की शपथ लेता है. हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन में वन कर्मियों की छुट्टियां रद्द की जाती हैं. ताकि इस दौरान कर्मचारियों की कमी महसूस नहीं हो. उनका कहना है कि प्रदेश में फील्ड स्टाफ कुछ कमी है और हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियां भी कठिन हैं ऐसे में वनों की आग पर काबू पाना कठिन रहता है.
इस वजह से जंगलों में लगती है आग: वहीं, पूर्व आईएफएस अधिकारी डॉ. केएस तंवर ने कहा कि जंगलों में आग लगने का सबसे मुख्य कारण चीड़ की पत्तियां होती हैं. सरकार को इसके वैज्ञानिक प्रबंधन और वनों को स्थान विशेष के पर्यावरण के अनुकूल बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. वन मंत्री राकेश पठानिया (Forest Minister Rakesh Pathania on Forest Fire) ने कहा कि इस बार मौसम के रुख को देखते हुए फॉरेस्ट सीजन पहली अप्रैल से ही शुरू कर दिया है. वन मंत्री ने कहा कि विभाग का लक्ष्य इस फायर सीजन में कम से कम नुकसान हो. इसके अलावा आग लगने की सूचना मिलते ही वन विभाग एक्टिव हो और समय पर आग बुझाने का प्रयास किया जाए इसके लिए वन प्रबंधन कमेटियों को भी साथ जोड़ा गया है.
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