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हिमाचल में आउटसोर्स कर्मियों के साथ भद्दा मजाक कर रही जयराम सरकार: विजेंद्र मेहरा - हिमाचल में आउटसोर्स

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने आउटसोर्स कर्मियों के संदर्भ में प्रदेश सरकार की कैबिनेट के निर्णय को आई वॉश करार दिया है. उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का निर्णय आउटसोर्स कर्मियों को केवल झुनझुना पकड़ाना है व इसके सिवाय कुछ भी नहीं है.

Vijender Mehra targets govt
विजेंद्र मेहरा
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Published : Sep 30, 2022, 5:12 PM IST

शिमला: सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने प्रदेश सरकार द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों को हिमाचल प्रदेश कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) एवं रोजगार निगम में मर्ज करने के निर्णय को आउटसोर्स कर्मियों के साथ भद्दा मजाक करार दिया (Vijender Mehra targets govt) है व इसे शोषणकारी व्यवस्था करार दिया है. सीटू ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि वह प्रदेश के चालीस हजार आउटसोर्स कर्मियों की आंखों में धूल झोंकना बंद करें व इनके लिए ठोस नीति बनाकर इन्हें नियमित सरकारी कर्मचारी का दर्जा दे.

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने आउटसोर्स कर्मियों के संदर्भ में प्रदेश सरकार की कैबिनेट के निर्णय को आई वॉश करार दिया है. उन्होंने कहा कि 1-2 अक्टूबर को मंडी में होने वाले सीटू राज्य सम्मेलन में सरकार के इस आई वॉश फैसले के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनेगी. उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था हरियाणा सरकार की तर्ज पर की गई है, जहां पर इस प्रकार का निगम बनने के बाद आज भी आउटसोर्स कर्मियों का शोषण बदस्तूर जारी है व इन्हें सरकारी कर्मियों की तर्ज पर सुविधाएं नहीं मिल रही हैं.

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा

हिमाचल प्रदेश के आउटसोर्स कर्मी (outsourced employees Himachal) व सीटू राज्य कमेटी इस तरह की व्यवस्था को पूरी तरह खारिज करती है. इस निगम के बनने के बाद प्रदेश के आउटसोर्स कर्मियों में बहुतायत अकुशल मजदूर इस निगम के दायरे से बाहर रह जाएंगे. जो कुशल कर्मी इस निगम के दायरे में आएंगे भी वह भी सरकारी कर्मचारी की तर्ज पर सुविधाएं हासिल नहीं कर पाएंगे. पहले ये कर्मी निजी ठेकेदारों के जरिए कार्यरत थे, अब वे सीधे सरकारी ठेकेदारी प्रथा यानी नैगमिक व्यवस्था के अधीन हो जाएंगे और जिंदगीभर ठेकेदारी, आउटसोर्स प्रथा व निगम के अधीन ही रहेंगे. वे कभी भी नियमित नहीं होंगे. उन्हें कभी भी सरकारी कर्मचारी की तर्ज पर सुविधाएं नहीं मिलेंगी.

उन्हें सरकारी कर्मियों के बराबर वेतन भी नहीं मिलेगा. वे कभी भी सरकारी कर्मचारी बनने के हकदार नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का निर्णय आउटसोर्स कर्मियों को केवल झुनझुना पकड़ाना है व इसके सिवाय कुछ भी नहीं है. सरकार चुनाव की पूर्व संध्या पर आउटसोर्स कर्मियों को ठगकर उनसे वोट ऐंठकर उनका इस्तेमाल करना चाहती है. आउटसोर्स कर्मी सरकारी कर्मचारी बनने की लड़ाई कई सालों से लड़ रहे हैं. उनका संघर्ष सरकारी निगम के अधीन होना नहीं था बल्कि नियमितीकरण था. अगर वाकई में प्रदेश सरकार इन कर्मचारियों के प्रति गंभीर है तो वह इन्हें निगम में मर्ज करने की अधिसूचना को रद्द करके इन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की घोषणा करें.

ये भी पढ़ें: जब-जब सत्ता छूटती है, तब-तब कांग्रेस टूटती है, सुधांशु त्रिवेदी का कांग्रेस पर करारा हमला

शिमला: सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने प्रदेश सरकार द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों को हिमाचल प्रदेश कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) एवं रोजगार निगम में मर्ज करने के निर्णय को आउटसोर्स कर्मियों के साथ भद्दा मजाक करार दिया (Vijender Mehra targets govt) है व इसे शोषणकारी व्यवस्था करार दिया है. सीटू ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि वह प्रदेश के चालीस हजार आउटसोर्स कर्मियों की आंखों में धूल झोंकना बंद करें व इनके लिए ठोस नीति बनाकर इन्हें नियमित सरकारी कर्मचारी का दर्जा दे.

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने आउटसोर्स कर्मियों के संदर्भ में प्रदेश सरकार की कैबिनेट के निर्णय को आई वॉश करार दिया है. उन्होंने कहा कि 1-2 अक्टूबर को मंडी में होने वाले सीटू राज्य सम्मेलन में सरकार के इस आई वॉश फैसले के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनेगी. उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था हरियाणा सरकार की तर्ज पर की गई है, जहां पर इस प्रकार का निगम बनने के बाद आज भी आउटसोर्स कर्मियों का शोषण बदस्तूर जारी है व इन्हें सरकारी कर्मियों की तर्ज पर सुविधाएं नहीं मिल रही हैं.

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा

हिमाचल प्रदेश के आउटसोर्स कर्मी (outsourced employees Himachal) व सीटू राज्य कमेटी इस तरह की व्यवस्था को पूरी तरह खारिज करती है. इस निगम के बनने के बाद प्रदेश के आउटसोर्स कर्मियों में बहुतायत अकुशल मजदूर इस निगम के दायरे से बाहर रह जाएंगे. जो कुशल कर्मी इस निगम के दायरे में आएंगे भी वह भी सरकारी कर्मचारी की तर्ज पर सुविधाएं हासिल नहीं कर पाएंगे. पहले ये कर्मी निजी ठेकेदारों के जरिए कार्यरत थे, अब वे सीधे सरकारी ठेकेदारी प्रथा यानी नैगमिक व्यवस्था के अधीन हो जाएंगे और जिंदगीभर ठेकेदारी, आउटसोर्स प्रथा व निगम के अधीन ही रहेंगे. वे कभी भी नियमित नहीं होंगे. उन्हें कभी भी सरकारी कर्मचारी की तर्ज पर सुविधाएं नहीं मिलेंगी.

उन्हें सरकारी कर्मियों के बराबर वेतन भी नहीं मिलेगा. वे कभी भी सरकारी कर्मचारी बनने के हकदार नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का निर्णय आउटसोर्स कर्मियों को केवल झुनझुना पकड़ाना है व इसके सिवाय कुछ भी नहीं है. सरकार चुनाव की पूर्व संध्या पर आउटसोर्स कर्मियों को ठगकर उनसे वोट ऐंठकर उनका इस्तेमाल करना चाहती है. आउटसोर्स कर्मी सरकारी कर्मचारी बनने की लड़ाई कई सालों से लड़ रहे हैं. उनका संघर्ष सरकारी निगम के अधीन होना नहीं था बल्कि नियमितीकरण था. अगर वाकई में प्रदेश सरकार इन कर्मचारियों के प्रति गंभीर है तो वह इन्हें निगम में मर्ज करने की अधिसूचना को रद्द करके इन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की घोषणा करें.

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