ETV Bharat / state

वर्ष 2025 की चुनौती, इस साल पहले के मुकाबले आधी रह जाएगी आरडीजी, ₹3257 करोड़ से कैसे मिलेगा हिमाचल के खजाने को सुख - REDUCING REVENUE DEFICIT GRANT

घटती रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट सुखविंदर सरकार के लिए नए साल में नए वित्तीय संकट लाएगी. यहां जानें पूरी डिटेल...

घटती रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट हिमाचल के लिए चिंता
घटती रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट हिमाचल के लिए चिंता (ETV Bharat GFX)
author img

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 13, 2025, 10:48 AM IST

Updated : Jan 13, 2025, 11:04 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में वैसे तो प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा पढ़ने और सुनने में बहुत सुखकारी लगता है, लेकिन राज्य के खजाने की दशा उतनी अच्छी नहीं है. राज्य में प्रति व्यक्ति आय निरंतर बढ़ रही है, लेकिन खजाने की स्थिति दिन-प्रतिदिन पतली होती जा रही है. हिमाचल की प्रति व्यक्ति आय सवा दो लाख रुपए से अधिक है, लेकिन राज्य पर इस वित्त वर्ष में मार्च महीने में कर्ज का बोझ 92 हजार करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा. आखिर, छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश का आर्थिक संकट किन कारणों से बढ़ रहा है और केंद्र से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (आरडीजी) किस फॉर्मूले के कारण कम हो रही है, इस बात की पड़ताल जरूरी है. वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद केंद्र सरकार हर राज्य को सालाना रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट जारी करती है. हिमाचल को इस वित्त वर्ष यानी 2025-26 में 3257 करोड़ रुपये की ग्रांट मिलेगी. वर्ष 2024-25 में ये 6258 करोड़ रुपये थी. यानी पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले इस वित्त वर्ष में ये ग्रांट आधी से भी कम हो जाएगी.

टेपर फार्मूले के तहत घट रही ग्रांट

रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के लिए केंद्र सरकार टेपर फार्मूला यूज करती है. इस फार्मूले के तहत हर वित्तीय वर्ष में ग्रांट कम होती जाती है. हिमाचल की स्थिति देखें तो वर्ष 2021-22 में राज्य को 10 हजार 249 करोड़ रुपये की आरडीजी मिली थी. यानी हर महीने 854 करोड़ रुपये की ग्रांट मिल रही थी. उस समय सरकारी कर्मियों के वेतन का बिल 900 करोड़ रुपये प्रति महीने के करीब था. यानी एक महीने का वेतन ग्रांट की रकम से निकल जाता था. फिर अगले वित्त वर्ष यानी 2022-23 में ये ग्रांट टेपर फार्मूले के तहत घटकर 9 हजार 377 करोड़ रुपये रह गई. यानी हर महीने 780 करोड़ रुपये से कुछ अधिक हर महीने आरडीजी मिल रही थी. फिर 2023-24 में ये घटकर 8058 करोड़ रुपये रह गई. पिछले वित्तीय वर्ष में ये 6258 करोड़ रुपए थी और इस वित्त वर्ष में महज 3257 करोड़ रुपए की आरडीजी रह जाएगी.

पिछले साल जून में आई थी वित्तायोग की टीम

केंद्र में नई सरकार बनने के बाद वित्तायोग की टीम ने सबसे पहले हिमाचल का दौरा किया था. जून 2024 को अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में टीम ने हिमाचल के सीएम व अफसरों सहित अन्य प्रतिनिधियों से मुलाकात की. सोलहवें वित्तायोग को अपनी सिफारिशें 31 अक्टूबर 2025 तक देनी हैं. फिर राज्यों के लिए ये सिफारिशें अप्रैल 2026 से लागू होंगी. इससे पहले हिमाचल को 15वें वित्त आयोग से अच्छी-खासी रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट मिली थी. तब राज्य को पांच साल के लिए 37 हजार 199 करोड़ रुपये की रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट प्राप्त हुई थी. उस समय आयोग ने पांच साल की अवधि के लिए हिमाचल को कुल 81 हजार 977 करोड़ रुपये की सिफारिशें की थीं. उसमें से 37 हजार 199 करोड़ रुपये रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के अलावा 3049 करोड़ स्थानीय निकायों के लिए और 2258 करोड़ रुपये आपदा राहत के लिए थे. इसके अलावा सिफारिश में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 2222 करोड़ रुपये भी दिए गए थे.

क्या है रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट?

किसी भी राज्य के राजस्व और खर्च के बीच अंतर से जो घाटा पैदा होता है, उसकी भरपाई के लिए केंद्र सरकार की तरफ से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (आरडीजी) जारी की जाती है. वित्त मंत्रालय का एक्सपेंडिचर विभाग विभिन्न राज्यों को ये ग्रांट जारी करता है. आरडीजी हर वित्त वर्ष के लिए ये अलग-अलग होती है. खैर, जून 2024 में जब वित्तायोग की टीम हिमाचल के दौरे पर आई थी तो उस समय राज्य सरकार ने स्वीकार किया है कि लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी हिमाचल को कर्ज लेना पड़ रहा है. राज्य के बजट का एक बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो जाता है. इन दो मदों पर बजट का 42 फीसदी हिस्सा खर्च हो रहा है. इसके अलावा लोन की अदायगी के लिए 100 रुपये में से 9 रुपये खर्च हो रहे हैं. कर्ज के ब्याज की रकम को चुकाने के लिए 11 रुपये खर्च हो रहा है. इस प्रकार लोन की किस्त और ब्याज की अदायगी पर 100 रुपये में से 20 रुपये खर्च हो रहे हैं. यदि वेतन व पेंशन के 42 रुपये इसमें जोड़ दिए जाएं तो चार मदों में कुल खर्च 62 रुपये हो रहा है. इस प्रकार विकास के लिए पैसा नहीं बच रहा है. ऐसे में नए वित्तायोग से हिमाचल को अच्छी आरडीजी की उम्मीद है.

सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू हिमाचल की कमजोर आर्थिक स्थिति का ठीकरा पूर्व की जयराम सरकार पर फोड़ते हैं. विधानसभा के मानसून सेशन में आंकड़ों का ब्यौरा रखते हुए सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा था "जब केंद्र से आरडीजी अच्छी मिल रही थी तो उस समय की सरकार ने नए वेतन आयोग का एरियर व डीए का भुगतान नहीं किया था. सारी देनदारियां मौजूदा सरकार के सिर पर डाली गईं"

वहीं, पूर्व सीएम जयराम ठाकुर का कहना है "जितना लोन उनकी सरकार के समय में पांच साल में लिया गया, उससे अधिक मौजूदा सरकार ने दो साल के अंतराल में ले लिया है." राज्य के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना "इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि हिमाचल गहरे आर्थिक संकट में है. राज्य को अपनी आय के संसाधन बढ़ाने होंगे". वरिष्ठ मीडिया कर्मी ओपी वर्मा का कहना है "पर्यटन सेक्टर में नए प्रयोग करने होंगे. इसके अलावा कृषि व बागवानी में रोजगार की तरफ युवाओं को प्रेरित करना होगा. बेमौसमी सब्जियों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कायाकल्प हो सकता है".

ये भी पढ़ें: लिमिट खत्म होने के बावजूद साल के अंत में फिर से 500 करोड़ का कर्ज ले रही सुखविंदर सरकार, अगली लिमिट से कटेगा एडवांस लोन

शिमला: हिमाचल प्रदेश में वैसे तो प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा पढ़ने और सुनने में बहुत सुखकारी लगता है, लेकिन राज्य के खजाने की दशा उतनी अच्छी नहीं है. राज्य में प्रति व्यक्ति आय निरंतर बढ़ रही है, लेकिन खजाने की स्थिति दिन-प्रतिदिन पतली होती जा रही है. हिमाचल की प्रति व्यक्ति आय सवा दो लाख रुपए से अधिक है, लेकिन राज्य पर इस वित्त वर्ष में मार्च महीने में कर्ज का बोझ 92 हजार करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा. आखिर, छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश का आर्थिक संकट किन कारणों से बढ़ रहा है और केंद्र से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (आरडीजी) किस फॉर्मूले के कारण कम हो रही है, इस बात की पड़ताल जरूरी है. वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद केंद्र सरकार हर राज्य को सालाना रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट जारी करती है. हिमाचल को इस वित्त वर्ष यानी 2025-26 में 3257 करोड़ रुपये की ग्रांट मिलेगी. वर्ष 2024-25 में ये 6258 करोड़ रुपये थी. यानी पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले इस वित्त वर्ष में ये ग्रांट आधी से भी कम हो जाएगी.

टेपर फार्मूले के तहत घट रही ग्रांट

रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के लिए केंद्र सरकार टेपर फार्मूला यूज करती है. इस फार्मूले के तहत हर वित्तीय वर्ष में ग्रांट कम होती जाती है. हिमाचल की स्थिति देखें तो वर्ष 2021-22 में राज्य को 10 हजार 249 करोड़ रुपये की आरडीजी मिली थी. यानी हर महीने 854 करोड़ रुपये की ग्रांट मिल रही थी. उस समय सरकारी कर्मियों के वेतन का बिल 900 करोड़ रुपये प्रति महीने के करीब था. यानी एक महीने का वेतन ग्रांट की रकम से निकल जाता था. फिर अगले वित्त वर्ष यानी 2022-23 में ये ग्रांट टेपर फार्मूले के तहत घटकर 9 हजार 377 करोड़ रुपये रह गई. यानी हर महीने 780 करोड़ रुपये से कुछ अधिक हर महीने आरडीजी मिल रही थी. फिर 2023-24 में ये घटकर 8058 करोड़ रुपये रह गई. पिछले वित्तीय वर्ष में ये 6258 करोड़ रुपए थी और इस वित्त वर्ष में महज 3257 करोड़ रुपए की आरडीजी रह जाएगी.

पिछले साल जून में आई थी वित्तायोग की टीम

केंद्र में नई सरकार बनने के बाद वित्तायोग की टीम ने सबसे पहले हिमाचल का दौरा किया था. जून 2024 को अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में टीम ने हिमाचल के सीएम व अफसरों सहित अन्य प्रतिनिधियों से मुलाकात की. सोलहवें वित्तायोग को अपनी सिफारिशें 31 अक्टूबर 2025 तक देनी हैं. फिर राज्यों के लिए ये सिफारिशें अप्रैल 2026 से लागू होंगी. इससे पहले हिमाचल को 15वें वित्त आयोग से अच्छी-खासी रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट मिली थी. तब राज्य को पांच साल के लिए 37 हजार 199 करोड़ रुपये की रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट प्राप्त हुई थी. उस समय आयोग ने पांच साल की अवधि के लिए हिमाचल को कुल 81 हजार 977 करोड़ रुपये की सिफारिशें की थीं. उसमें से 37 हजार 199 करोड़ रुपये रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के अलावा 3049 करोड़ स्थानीय निकायों के लिए और 2258 करोड़ रुपये आपदा राहत के लिए थे. इसके अलावा सिफारिश में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 2222 करोड़ रुपये भी दिए गए थे.

क्या है रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट?

किसी भी राज्य के राजस्व और खर्च के बीच अंतर से जो घाटा पैदा होता है, उसकी भरपाई के लिए केंद्र सरकार की तरफ से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट (आरडीजी) जारी की जाती है. वित्त मंत्रालय का एक्सपेंडिचर विभाग विभिन्न राज्यों को ये ग्रांट जारी करता है. आरडीजी हर वित्त वर्ष के लिए ये अलग-अलग होती है. खैर, जून 2024 में जब वित्तायोग की टीम हिमाचल के दौरे पर आई थी तो उस समय राज्य सरकार ने स्वीकार किया है कि लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी हिमाचल को कर्ज लेना पड़ रहा है. राज्य के बजट का एक बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो जाता है. इन दो मदों पर बजट का 42 फीसदी हिस्सा खर्च हो रहा है. इसके अलावा लोन की अदायगी के लिए 100 रुपये में से 9 रुपये खर्च हो रहे हैं. कर्ज के ब्याज की रकम को चुकाने के लिए 11 रुपये खर्च हो रहा है. इस प्रकार लोन की किस्त और ब्याज की अदायगी पर 100 रुपये में से 20 रुपये खर्च हो रहे हैं. यदि वेतन व पेंशन के 42 रुपये इसमें जोड़ दिए जाएं तो चार मदों में कुल खर्च 62 रुपये हो रहा है. इस प्रकार विकास के लिए पैसा नहीं बच रहा है. ऐसे में नए वित्तायोग से हिमाचल को अच्छी आरडीजी की उम्मीद है.

सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू हिमाचल की कमजोर आर्थिक स्थिति का ठीकरा पूर्व की जयराम सरकार पर फोड़ते हैं. विधानसभा के मानसून सेशन में आंकड़ों का ब्यौरा रखते हुए सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा था "जब केंद्र से आरडीजी अच्छी मिल रही थी तो उस समय की सरकार ने नए वेतन आयोग का एरियर व डीए का भुगतान नहीं किया था. सारी देनदारियां मौजूदा सरकार के सिर पर डाली गईं"

वहीं, पूर्व सीएम जयराम ठाकुर का कहना है "जितना लोन उनकी सरकार के समय में पांच साल में लिया गया, उससे अधिक मौजूदा सरकार ने दो साल के अंतराल में ले लिया है." राज्य के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना "इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि हिमाचल गहरे आर्थिक संकट में है. राज्य को अपनी आय के संसाधन बढ़ाने होंगे". वरिष्ठ मीडिया कर्मी ओपी वर्मा का कहना है "पर्यटन सेक्टर में नए प्रयोग करने होंगे. इसके अलावा कृषि व बागवानी में रोजगार की तरफ युवाओं को प्रेरित करना होगा. बेमौसमी सब्जियों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कायाकल्प हो सकता है".

ये भी पढ़ें: लिमिट खत्म होने के बावजूद साल के अंत में फिर से 500 करोड़ का कर्ज ले रही सुखविंदर सरकार, अगली लिमिट से कटेगा एडवांस लोन

Last Updated : Jan 13, 2025, 11:04 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.