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विदेशों की तर्ज पर हिमाचल में भी भांग की खेती को मिल सकती है मान्यता, स्वास्थ्य मंत्री ने कही ये बात

हिमाचल में भी भांग की खेती को मान्यता मिल सकती है. स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल के अनुसार आयुर्वेद में भांग का प्रयोग काफी पहले से होता आ रहा है. भारतीय शास्त्रों में भांग को विजया नाम से जाना जाता है. इससे त्रिलोकीय सम्मोहन रास दवाई भी बनती है जो कि काफी प्रसिद्ध है.

स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल
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Published : Dec 14, 2020, 1:55 PM IST

शिमलाः विदेशों की तर्ज पर हिमाचल में भी भांग की खेती को मान्यता मिल सकती है. स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल के अनुसार आयुर्वेद में भांग का प्रयोग काफी पहले से होता आ रहा है. भारतीय शास्त्रों में भांग को विजया नाम से जाना जाता है. इससे त्रिलोकीय सम्मोहन रास दवाई भी बनती है जो कि काफी प्रसिद्ध है.

भांग के बीज में मौजूद औषधीय गुण

डॉ. राजीव सैजल ने कहा कि भांग में मौजूद औषधीय गुण दर्द निवारक के रूप में काम करते हैं और इसका प्रयोग कई दर्द निवारक की दवाइयों में किया जाता है. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा भांग के बीज में मौजूद औषधीय गुण फैट और कोलेस्ट्रॉल कम करने में काफी असरदार सिद्ध हुए हैं. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि भांग की खेती को कानूनी मान्यता देना या ना देना अभी विचार का विषय है.

वीडियो रिपोर्ट

कई देशों को भांग की खेती की मान्यता

बता दें कि फ्रांस, चीन व अमेरिका में भांग की खेती को मान्यता मिली हुई है और यह किसानों की आय का मुख्य साधन है. पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के अलावा भारत में भी कई राज्यों में भांग की खेती को मान्यता प्राप्त है. ऐसे में संभव हो सकता कि हिमाचल में भी भांग की खेती को मान्यता मिल जाए.

भांग बनेगी लोगों की आर्थिकी का हिस्सा

वहीं, ऐसा हुआ तो चरस तस्करी की समस्या से छुटकारा मिलेगा और भांग लोगों की आर्थिकी का हिस्सा बन पाएगी. इसके लिए प्रदेश सरकार ने विधि विशेषज्ञों से राय मांगी है. इसके अलवा आबकारी एवं कराधान विभाग से भी हरी झंडी मिल गई है. उसके बाद मौजूदा नियमों का परिवर्तन संभव होगा. प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्रों में भांग नष्ट करने के लिए पुलिस व प्रशासन को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. प्रदेश के कई जिलों में चोरी-छिपे भांग की खेती होती है. उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के तहत आने वाले सतपुली क्षेत्र में भांग की खेती हो रही है.

भांग के रेशे से बनाए जा रहे वस्त्र

इसके लिए सरकार ने इंडियन इंडस्ट्रियल हेंप एसोसिएशन को भांग की खेती करने के लिए लाइसेंस दिया है. इसकी खेती शुरू होने से भांग के रेशे से वस्त्र भी बनाए जा रहे हैं. उत्तराखंड में भांग ने वस्त्र उद्योग का रूप ले लिया है. यही, नहीं बेंगलुरु की एक स्टार्टअप कंपनी भांग के रेशे से पर्स, कपड़े, चप्पल व कई अन्य चीजें बना रही है. भांग में औषधीय गुण भी हैं, जिसे दवा के रूप में भी प्रयोग किए जाने की संभावनाएं हैं.

भांग में सोयाबीन से ज्यादा प्रोटीन

भांग के बीज में प्रोटीन की मात्रा सोयाबीन से ज्यादा है. इंडस्ट्रियल हेंप प्रजाति के भांग के बीज को चटनी व मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है. वहीं, रेशे का इस्तेमाल कार की बॉडी, पेपर, टेक्सटाइल, तने से बॉयोफ्यूल, पेंट, ल्यूब्रिकेंट आयल आदि उत्पाद बनाए जाते हैं. फूल व पत्तियों का आयुर्वेदिक दवाओं व सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों में किया जाता है.

शिमलाः विदेशों की तर्ज पर हिमाचल में भी भांग की खेती को मान्यता मिल सकती है. स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल के अनुसार आयुर्वेद में भांग का प्रयोग काफी पहले से होता आ रहा है. भारतीय शास्त्रों में भांग को विजया नाम से जाना जाता है. इससे त्रिलोकीय सम्मोहन रास दवाई भी बनती है जो कि काफी प्रसिद्ध है.

भांग के बीज में मौजूद औषधीय गुण

डॉ. राजीव सैजल ने कहा कि भांग में मौजूद औषधीय गुण दर्द निवारक के रूप में काम करते हैं और इसका प्रयोग कई दर्द निवारक की दवाइयों में किया जाता है. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा भांग के बीज में मौजूद औषधीय गुण फैट और कोलेस्ट्रॉल कम करने में काफी असरदार सिद्ध हुए हैं. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि भांग की खेती को कानूनी मान्यता देना या ना देना अभी विचार का विषय है.

वीडियो रिपोर्ट

कई देशों को भांग की खेती की मान्यता

बता दें कि फ्रांस, चीन व अमेरिका में भांग की खेती को मान्यता मिली हुई है और यह किसानों की आय का मुख्य साधन है. पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के अलावा भारत में भी कई राज्यों में भांग की खेती को मान्यता प्राप्त है. ऐसे में संभव हो सकता कि हिमाचल में भी भांग की खेती को मान्यता मिल जाए.

भांग बनेगी लोगों की आर्थिकी का हिस्सा

वहीं, ऐसा हुआ तो चरस तस्करी की समस्या से छुटकारा मिलेगा और भांग लोगों की आर्थिकी का हिस्सा बन पाएगी. इसके लिए प्रदेश सरकार ने विधि विशेषज्ञों से राय मांगी है. इसके अलवा आबकारी एवं कराधान विभाग से भी हरी झंडी मिल गई है. उसके बाद मौजूदा नियमों का परिवर्तन संभव होगा. प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्रों में भांग नष्ट करने के लिए पुलिस व प्रशासन को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. प्रदेश के कई जिलों में चोरी-छिपे भांग की खेती होती है. उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के तहत आने वाले सतपुली क्षेत्र में भांग की खेती हो रही है.

भांग के रेशे से बनाए जा रहे वस्त्र

इसके लिए सरकार ने इंडियन इंडस्ट्रियल हेंप एसोसिएशन को भांग की खेती करने के लिए लाइसेंस दिया है. इसकी खेती शुरू होने से भांग के रेशे से वस्त्र भी बनाए जा रहे हैं. उत्तराखंड में भांग ने वस्त्र उद्योग का रूप ले लिया है. यही, नहीं बेंगलुरु की एक स्टार्टअप कंपनी भांग के रेशे से पर्स, कपड़े, चप्पल व कई अन्य चीजें बना रही है. भांग में औषधीय गुण भी हैं, जिसे दवा के रूप में भी प्रयोग किए जाने की संभावनाएं हैं.

भांग में सोयाबीन से ज्यादा प्रोटीन

भांग के बीज में प्रोटीन की मात्रा सोयाबीन से ज्यादा है. इंडस्ट्रियल हेंप प्रजाति के भांग के बीज को चटनी व मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है. वहीं, रेशे का इस्तेमाल कार की बॉडी, पेपर, टेक्सटाइल, तने से बॉयोफ्यूल, पेंट, ल्यूब्रिकेंट आयल आदि उत्पाद बनाए जाते हैं. फूल व पत्तियों का आयुर्वेदिक दवाओं व सौंदर्य प्रसाधन उत्पादों में किया जाता है.

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