शिमला: राजनीति में दिग्गज नेताओं के साथ अनेक दिलचस्प किस्से जुड़े होते हैं. हिमाचल के पूर्व सीएम रामलाल ठाकुर (Thakur Ram Lal Former CM Himachal Pradesh) भी ऐसे ही नेता थे. वे तीन बार हिमाचल के सीएम रहे. आंध्र प्रदेश के गर्वनर रहते हुए उनका कार्यकाल (Thakur Ram lal political career) विवादों में रहा. रामलाल ठाकुर न केवल शिमला बल्कि हिमाचल की राजनीति के प्रमुख चेहरे रहे. यही नहीं, रामलाल ठाकुर ने पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह को भी चुनावी शिकस्त दी थी. दिलचस्प तथ्य है कि रामलाल ठाकुर की पुण्य तिथि व जन्म तिथि में केवल एक दिन का फर्क है.
जन्म और निधन की तारीख में एक दिन का अंतर: उनका निधन शिमला में 6 जुलाई 2002 को हुआ था और वे ऊपरी शिमला के बरथाटा गांव में 7 जुलाई 1929 को जन्मे (Birth Anniversary of Thakur Ram Lal) थे. यानी वे अपना 74वें जन्म दिन से ठीक एक दिन पहले इस संसार से चल बसे थेय खैर, यहां उनके राजनीतिक जीवन की कुछ रोचक बातों को याद करना जरूरी है. ऊपरी शिमला की जुब्बल-कोटखाई सीट और रामलाल ठाकुर एक-दूसरे के पर्याय रहे. इस समय उनका पोता रोहित ठाकुर हिमाचल विधानसभा में विधायक है. रामलाल ठाकुर की ऊपरी शिमला में इस कदर तूती बोलती थी कि उन्होंने वीरभद्र सिंह को भी परास्त किया था.
वर्ष 1957 से लेकर वे 1998 तक इस सीट से 9 बार चुनाव जीते. इस बीच केवल वर्ष 1985 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा तो वीरभद्र सिंह अपना पहला विधानसभा चुनाव इसी सीट से जीते थे. उल्लेखनीय है कि हिमाचल में एमरजेंसी के दौरान एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम हुआ था. प्रदेश के पहले सीएम व हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार की एमरजेंसी को लेकर इंदिरा गांधी से नाराजगी थी और कुछ मतभेद पैदा हो गए थे. तब डॉ. परमार की संजय गांधी से नाराजगी बढ़ गई और कांग्रेस हाईकमान ने डॉ. परमार से जनवरी 1977 में इस्तीफा ले लिया.
हाईकमान ने रामलाल ठाकुर को सीएम की कुर्सी सौंपी. फिर एमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार आई तो शांता कुमार ने हिमाचल की कमान संभाली. ढाई साल बाद ही शांता कुमार की सरकार गिर गई और रामलाल ठाकुर फिर से सीएम बने. फिर वर्ष 1983 में उनकी जगह वीरभद्र सिंह को सत्ता में आने का मौका मिला. रामलाल ठाकुर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया. वहां वे विवादों में रहे. उन्होंने तेलगू देशम पार्टी के एनटी रामाराव सरकार के साथ विवादों का नाता रखा. रातों-रात सरकार गिराने का काम हुआ. एनटी रामाराव के साथ 161 विधायक थे और बहुमत था, लेकिन रामलाल ठाकुर अड़े रहे. खैर, ये अलग घटनाक्रम रहा.
वीरभद्र सिंह को दी थी शिकस्त: फिर रामलाल ठाकुर वापिस हिमाचल लौटे और कांग्रेस छोड़ दी. वर्ष 1990 में वे जनता दल से चुनाव लड़े और जुब्बल-कोटखाई सीट से दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह को परास्त किया. ये दूसरी बात है कि उस समय वीरभद्र सिंह रोहड़ू से भी चुनाव मैदान में थे और वहां से जीत हासिल की थी. खैर, 1993 में रामलाल ठाकुर फिर से कांग्रेस में आ गए और अगला चुनाव 1998 में भी वो कांग्रेस टिकट से ही जीते. ये जानना भी दिलचस्प है कि कांग्रेस हाईकमान ने डॉ. वाईएस परमार को हाशिए पर धकेला और रामलाल ठाकुर को सीएम बनाया, लेकिन दोनों नेताओं के बीच पारिवारिक रिश्ता भी था.
रामलाल ठाकुर और वाईएस परमार के बीच था ये रिश्ता: रामलाल ठाकुर की बेटी सत्या ठाकुर डॉ. वाईएस परमार (YS Parmar Former CM Himachal Pradesh) की बेटे कुश परमार को ब्याही हुई थीं. कुश परमार सिरमौर जिला में नाहन सीट से विधायक रहे हैं. अगर गिना जाए तो रामलाल ठाकुर अपने राजनीतिक जीवन में 1048 दिन हिमाचल के सीएम रहे. रामलाल ठाकुर एक उच्च शिक्षित राजनेता थे. उन्होंने जालंधर से एलएलबी की डिग्री हासिल की थी. उन्होंने नौ बार चुनाव जीता. वे परमार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी रहे. परमार के पद छोड़ने के बाद वे तीन महीने सीएम रहे. कई घटनाओं और उतार-चढ़ाव के साक्षी रहे रामलाल ठाकुर तीन बार सीएम रहे. उन्होंने हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार सहित, शांता कुमार, वीरभद्र सिंह व प्रेम कुमार धूमल का राजनीतिक समय देखा.