शिमला: नारियों की पूजा वाले स्थान पर देवताओं का वास होने की मान्यता का उद्घोष करने वाले महादेश भारत के छोटे से पहाड़ी राज्य हिमाचल की बेटियों की सफलता की (Achievements of daughters in Himachal) कहानियां बहुत विशाल हैं. धरती से आकाश तक देवभूमि की कामयाब बेटियों के तराने गूंज रहे हैं. खेल के मैदान से प्रशासनिक क्षेत्र तक बेटियां प्रदेश का मान बढ़ा रही हैं. सफल डॉक्टर, सर्जन, आईपीएस, आईएएस, समाजसेवा... कौन सा ऐसा क्षेत्र है, जहां हिमाचल की नारी अग्रिम पंक्ति में न दिखाई दे.
खेल के मैदान से शुरू कर देश की कबड्डी टीम में हिमाचल की बेटियों ने (Achievements of daughters in Himachal) धाक जमाई है. प्रियंका नेगी, कविता ठाकुर विश्व कबड्डी में (kabaddi players priyanka negi, kavita thakur) चर्चित नाम हैं. तेहरान एशियन चैंपियनशिप में धाक जमाने वाली ये बेटियां किसी परिचय का मोहताज नहीं है. इसके अलावा ताईक्वांडो में जयवंती ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीते हैं. कुश्ती में रानी खूब नाम कमा रही हैं.
क्रिकेटर सुषमा वर्मा का नाम सभी खेल प्रेमियों की जुबान पर है. इससे पूर्व सुमन रावत व हॉकी की गोसाईं सिस्टर्स को भला कौन नहीं पहचानता. हिमाचल की बेटियों ने चिकित्सा क्षेत्र में बहुत नाम कमाया है. सीमा पंवार महिला हार्ट सर्जन हैं. वे आईजीएमसी अस्पताल के सीटीवीएस डिपार्टमेंट में सेवारत हैं. अभावों से संघर्ष कर डॉ. लक्ष्मी सांख्यान भी सर्जन हैं. इसके अलावा हिमाचल के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कई डिपार्टमेंट में एचओडी महिलाएं रही हैं.
गीता वर्मा ने खुद बाइक चलाकर दुर्गम इलाकों में मीजल व रुबेला टीकाकरण अभियान को गति दी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने कैलेंडर में उनका चित्र प्रकाशित कर सम्मान दिया. ब्रिटेन में बॉयोलॉजी में महत्वपूर्ण शोध कर वर्तमान समय में दिल्ली में अध्यापन से जुड़ी एसोसिएट प्रोफेसर विद्या नेगी ने साधारण परिवार से अपनी सफलता के (Achievements of daughters in Himachal) सफर की शुरुआत की. इसी तरह विद्या नेगी की बड़ी बहन शशि सीआरपीएफ में ऊंचे पद पर रही हैं. वे सीआरपीएफ में सेवा के दौरान कई बार यूएन मिशन पर गई हैं.
सुरक्षा क्षेत्र में इतने ऊंचे पद पर पहुंचने वाली शशि हिमाचल की पहली बेटी हैं. उन्होंने आतंकग्रस्त कश्मीर में भी बहादुरी से देश की सेवा की है. जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति की बेटी डॉ. मोनिका, ऊना की बेटी शालिनी आईपीएस हैं. आईएएस अफसरों के रूप में अनिता टेगटा सहित कई महिलाओं ने छाप छोड़ी हैं. राजनीति में भी हिमाचल की महिलाओं ने चमक दिखाई है. विद्या स्टोक्स, विप्लव ठाकुर, आशा कुमारी, सरवीण चौधरी तेजतर्रार राजनीतिक शख्सियत हैं. नई पीढ़ी में कुसुम सदरेट, प्रजवल बस्टा व जबना चौहान का नाम है.
पढ़ रही बेटियां, लड़कों से आगे हैं बेटियां- हिमाचल में बेटियां उच्च शिक्षा के लिए (Female Literacy Rate in Himachal) इस कदर उत्साहित हैं कि कॉलेज में उनकी उपस्थिति लड़कों से अधिक है. वर्ष 2012-2013 में कॉलेज में लड़कियों के दाखिले का आंकड़ा 43 हजार, 683 रहा, जबकि लड़कों ने इसी अवधि में 24 हजार 385 की संख्या में दाखिला लिया. बेटियों के उत्साह का ये सिलसिला लगातार आगे बढ़ रहा है.
वर्ष 2013-2014 में 20 हजार 932 लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 40 हजार, 806 रही. वर्ष 2014-2015 में 46 हजार, 23 लड़कियों ने कॉलेज में प्रवेश लिया. वहीं, इस अवधि में कॉलेज पहुंचने वाले लड़कों की संख्या 42 हजार, 220 रही. वर्ष 2015-2016 में लड़कियों ने रिकार्ड तोड़ संख्या में कॉलेज में दाखिला लिया. इस साल कॉलेज जाने वाली लड़कियों का आंकड़ा 58 हजार, 805 रहा. इसी दौरान लड़कों की संख्या 39 हजार, 466 रही. शैक्षणिक सत्र 2016-17 में 67 हजार, 688 लड़कियों ने कॉलेज में दाखिला लिया, जबकि लड़कों की संख्या 47 हजार, 041 रही.
इन महिलाओं ने दी हिमाचल को पहचान- हिमाचल की बेटी सीमा ठाकुर (Seema Thakur) नार्थ इंडिया की पहली बस चालक हैं. कुल्लू की ब्रिकमु नेगी ने अपने बूते चार हजार से अधिक महिलाओं को उनके पैरों पर खड़ा कर दिया. महिला सशक्तिकरण के लिए ब्रिकमु नेगी ने शादी भी नहीं की. वे अपने खेतों में खुद हल चलाती हैं और केंचुआ खाद की कई यूनिट्स स्थापित की हैं. महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों में हिमाचल प्रदेश ने देश भर में अलग पहचान बनाई है. लाहौल-स्पीति की अपराजिता पायलट हैं. डिक्की डोलमा पर्वतारोहण में नाम कमा चुकी हैं.
यहां बेटी के जन्म पर मनाई जाती है खुशी, चलता है महिलाओं का सिक्का-हिमाचल के जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति में बेटियों के जन्म पर खुशी मनाई जाती है. उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के सारे अवसर दिए जाते हैं. मैदानी इलाकों की सामाजिक बुराई दहेज प्रथा की यहां कोई बात तक भी नहीं करता. बेटियों की अहमियत के कारण यहां दहेज प्रथा का दानव अपने पैर नहीं पसार पाया है.
लाहौल-स्पीति जिले की आबादी पचास हजार से अधिक है. घर की पूरी कमान महिलाओं के हाथ रहती है. महत्वपूर्ण सामाजिक फैसले महिलाएं हीं लेती हैं. खेती-बाड़ी के कार्य हों या फिर घरेलू मोर्चे की कोई बात, महिलाएं ही सारे फैसले लेती हैं. यही नहीं, घर के आर्थिक फैसले भी महिलाएं ही लेती हैं.
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