शिमला: हिमाचल के राज्यपाल रहे बंडारू दत्तात्रेय ने देवभूमि से अपने लगाव को खूब गर्मजोशी से साझा किया है. हिमाचल से विदा होने से पहले उनके ध्यान में एक मामला लाया गया. हिमाचल को हरियाणा से बीबीएमबी यानी भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड परियोजनाओं में अपना हक लेना है. पंजाब व हरियाणा से कुछ मसले लंबित हैं. बंडारू दत्तात्रेय ने वादा किया कि हरियाणा पहुंच कर वे पहले इस मामले में जानकारी लेंगे. पूरे मामले का अध्ययन करने के बाद वे हिमाचल के हितों की पैरवी जरूर करेंगे.
देवभूमि हिमाचल की नई पीढ़ी को शायद ही मालूम होगा कि पंजाब व हरियाणा के साथ लंबित मसले कौन से हैं. बीबीएमबी परियोजनाओं में हिस्सेदारी कितनी है और उसका ताजा स्टेट्स क्या है? बंडारू दत्तात्रेय भी इन्हीं सब मुद्दों की जानकारी लेकर हिमाचल को हक दिलाने का प्रयास करेंगे. हिमाचल की विभिन्न सरकारें पंजाब व हरियाणा से अपना हक लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गई हैं. सुप्रीम कोर्ट से हिमाचल के हक में फैसला हुआ है. यही नहीं, सत्ता संभालने के बाद 2018 में सीएम जयराम ठाकुर ने संकेत दिए थे कि इस मसले पर अदालत की अवमानना की कार्रवाई भी की जाएगी.
दरअसल, हरियाणा में जब से भाजपा सरकार आई है तो उसने मसला सुलझाने के लिए सकारात्मक संकेत दिए थे. परंतु सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हिमाचल को पंजाब से अपना हक नहीं मिल रहा. पंजाब की विभिन्न सरकारें इस मामले में हिमाचल को अनदेखा करती रही हैं. हिमाचल को पंजाब से बीबीएमबी की हिस्सेदारी से दो हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम मिलनी है.
हिमाचल व पंजाब के पुनर्गठन के समय कुछ इलाके हिमाचल में शामिल हुए थे. भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड के तहत चल रही बिजली परियोजनाओं में हिमाचल का हिस्सा जो पहले ढाई फीसदी थी, पुनर्गठन के बाद 7.19 फीसदी तय हुआ था. अपने हक के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी और ठीक एक दशक पहले सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल के पक्ष में फैसला दिया था. पंजाब व हरियाणा से हिमाचल को 4200 करोड़ रुपए मिलने हैं. पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल बीबीएमबी प्रोजेक्ट्स भाखड़ा, डैहर तथा पौंग में 7.19 फीसदी की हिस्सेदारी मांग रहा है.
हिस्सेदारी के मुद्दे पर पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा के साथ-साथ राजस्थान के भी अड़ियल रवैये को देखते हुए हिमाचल सरकार ने करीब दो दशक पहले सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने ये याचिका दाखिल की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जब फैसला दिया तो हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी. फिर वर्ष 2011 के बाद बीबीएमबी प्रोजेक्ट्स में प्रदेश को हिस्सेदारी मिल रही है, मगर हिमाचल सरकार को इससे पहले के करीब 42 सौ करोड़ के एरियर की देनदारी पंजाब व हरियाणा ने नहीं की है.
वर्ष 1966 के पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत प्रदेश सरकार भाखड़ा में 2724 करोड़, डैहर में 1034.54 करोड़ तथा पौंग प्रोजेक्ट में 491.89 करोड़ की हिस्सेदारी की मांग कर रही है. पंजाब सरकार ने पहले ये प्रस्ताव किया कि बीबीएमबी परियोजनाओं से हिमाचल पंजाब को मिलने वाली बिजली से कुछ बिजली बेचे और दस साल में अपना बकाया पूरा कर ले. हिमाचल इस पर राजी होने की बात सोच ही रहा था कि बाद में पंजाब ने ये मियाद दस की बजाय बीस साल करने को कहा.
वर्ष 2017 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार के समय चंडीगढ़ में नार्थ जोन काउंसिल की मीटिंग में उस समय के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष हिमाचल के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने प्रदेश का पक्ष रखा था. भाखड़ा बांध परियोजना में हिमाचल ने बेशकीमती जमीन दी थी. तब 2017 में हिमाचल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि पंजाब तथा हरियाणा के खिलाफ एरियर दावों की गणना नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड की दरों पर की गई है, जो पूरी तरह से अनुचित है. इन दरों को अन्तरराज्यीय ऊर्जा समझौता दरों के अनुसार गणना में लाया जाए.
इसके अलावा हिमाचल को बद्दी तक रेल लाने के लिए जमीन अधिग्रहण की जरूरत है. हरियाणा सरकार के साथ ये मसला भी चल रहा है. इस रेल लाइन के लिए हरियाणा के दायरे में 52 एकड़ जमीन है. इसमें से 27 एकड़ सरकारी जमीन है और बाकी निजी भूमि है. अब देखना है कि हिमाचल से हरियाणा गए बंडारू दत्तात्रेय हिमाचल के इन मसलों की पैरवी कैसे करते हैं.