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आंग सान सू की का हिमाचल से रिश्ता, शिमला के IIAS में पढ़ा लोकतंत्र का पाठ - Aung san Suu kyi And democracy

म्यांमार की चर्चित नेता और नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की (Nobel prize winner Aung San Suu Kyi) ने डेमोक्रेसी के संस्कार शिमला स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी (Indian Institute of Advanced Study shimla) में सीखा है. यहां की धरती और वातावरण ने उनके मन में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति संघर्ष का जज्बा और तेज किया. इस समय नजरबंदी झेल रही सू की के मन में जरूर शिमला की यादें भी तैर रही होंगी. आईआईएएस में आंग सान सू की फैलो रही हैं.

aung san suu kyi relation with himachal
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Published : Dec 8, 2021, 4:04 PM IST

Updated : Dec 8, 2021, 8:12 PM IST

शिमला: नोबल पुरस्कार से सम्मानित म्यांमार की चर्चित नेता आंग सान सू की (Aung san Suu kyi And democracy ) की सजा को चार साल से घटाकर दो साल कर दिया गया है. सू की को सैन्य तख्तापलट के दौरान पद से अपदस्थ कर दिया गया था. बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि सू की के भीतर लोकतंत्र के संस्कार पुष्ट करने में शिमला का अहम योगदान रहा है. सू की ने अपने शिमला प्रवास (Aung San Suu Kyi shimla tour) को लेकर सार्वजनिक रूप से कहा था-द बेस्ट पार्ट ऑफ माई लाइफ वॉज टाइम स्पेंट इन शिमला.

सू की का हिमाचल से रिश्ता बेहद ही खास रहा है. दरअसल, आंग सान सू की शिमला स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी में फैलो रही हैं. उन्होंने म्यांमार में लोकतंत्र के लिए अथक श्रम किया है. कहा जा सकता है कि उनके भीतर लोकतंत्र के संस्कारों का बीज गहरा करने में शिमला का योगदान है. शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (Indian Institute of Advanced Study shimla) में फैलो रहने के दौरान उन्होंने अपनी चर्चित पुस्तक-बर्मा एंड इंडिया: सम आस्पेकट्स ऑफ इंटेलेक्चुअल लाइफ अंडर कोलोनियलिज्म पूरी (Suu Kyi Relation with Himachal ) की.

इसका पहला संस्करण वर्ष 1989 में प्रकाशित हुआ. इस किताब की इतनी मांग हुई कि इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित करना पड़ा. दिल्ली में जिस समय नेहरू जयंती पर वर्ष 2012 में किताब का दूसरा संस्करण छपा तो आंग सान सू की (Suu Kyi relation with shimla) ने अपने भाषण में करीब पांच मिनट तक शिमला से जुड़ी अपनी यादों को सांझा किया. यही नहीं, उन्होंने इच्छा जताई थी कि वो फिर से शिमला आना चाहेंगी. हालांकि वे म्यांमार का शासन संभालने के बाद अधिक व्यस्त रहीं और फिर इसी साल फरवरी में फौज ने लोकतंत्र का गला भी घोंट दिया.

आईआईएएस में आंग सान सू की (Aung san Suu kyi in IIAS ) फैलो रही हैं. संस्थान में लंबे समय तक जनसंपर्क अधिकारी रहे अशोक शर्मा के अनुसार सू की संस्थान के वातावरण और वहां की आत्मीयता से बहुत प्रभावित थीं और संस्थान में अकसर सभी से मिलने के लिए अपने कक्ष से आ जाया करती थीं. सू की फरवरी 1987 से लेकर अगस्त 1987 तक यहां अध्येता रहीं. उनके पति माइकल एरिस भी यहां फैलो रहे हैं. तब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के निदेशक मार्गरेट चटर्जी थे.

हुआ यूं था कि सू की वर्ष 1986 में जापान में अध्ययन कर रही थीं. उनके पति माइकल एरिस यहां फैलो थे. उनकी फैलोशिप ढाई साल की थी, लेकिन सू की छह महीने तक ही यहां फैलो (Aung San Suu Kyi in shimla) रहीं. उनका आवेदन आने के बाद केंद्र सरकार से अनुमति मिलने में भी काफी देर लगी. अंतत: फरवरी 1987 में वे यहां आ गई. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सू की के लोकतंत्र के प्रति संघर्ष व समर्पण की पूरी दुनिया साख है.

शिमला स्थित आईआईएएस के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी अशोक शर्मा के अनुसार सू की अपना अधिकांश समय स्टडी रूम में बिताती थीं. वे यहां लोकतंत्र के मूलभूत तत्वों की साधना में जुटी रहीं. यहां की धरती और वातावरण ने उनके मन में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति संघर्ष का जज्बा और तेज किया. संस्थान में रहते हुए उनकी पुस्तक पूरी हुई.

संस्थान के पब्लिकेशन ने ही उनकी पुस्तक को छापा. इसी पुस्तक के दूसरे संस्करण का विमोचन 14 नवंबर 2012 को दिल्ली में तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया था. इस अवसर पर सोनिया गांधी व कर्ण सिंह भी मौजूद थे. सू की उसी समय नजरबंदी से रिहा हुई थीं, लेकिन एक दशक के भीतर फिर से सू की को नजरबंदी का सामना करना पड़ा है.

ये भी पढ़ें: Climatic Conditions Of Kinnaur: सर्दियों की सफेद आफत से जंग जीतने का हौसला रखते हैं किन्नौर के लोग, ऐसी होती है दिनचर्या

शिमला: नोबल पुरस्कार से सम्मानित म्यांमार की चर्चित नेता आंग सान सू की (Aung san Suu kyi And democracy ) की सजा को चार साल से घटाकर दो साल कर दिया गया है. सू की को सैन्य तख्तापलट के दौरान पद से अपदस्थ कर दिया गया था. बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि सू की के भीतर लोकतंत्र के संस्कार पुष्ट करने में शिमला का अहम योगदान रहा है. सू की ने अपने शिमला प्रवास (Aung San Suu Kyi shimla tour) को लेकर सार्वजनिक रूप से कहा था-द बेस्ट पार्ट ऑफ माई लाइफ वॉज टाइम स्पेंट इन शिमला.

सू की का हिमाचल से रिश्ता बेहद ही खास रहा है. दरअसल, आंग सान सू की शिमला स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी में फैलो रही हैं. उन्होंने म्यांमार में लोकतंत्र के लिए अथक श्रम किया है. कहा जा सकता है कि उनके भीतर लोकतंत्र के संस्कारों का बीज गहरा करने में शिमला का योगदान है. शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (Indian Institute of Advanced Study shimla) में फैलो रहने के दौरान उन्होंने अपनी चर्चित पुस्तक-बर्मा एंड इंडिया: सम आस्पेकट्स ऑफ इंटेलेक्चुअल लाइफ अंडर कोलोनियलिज्म पूरी (Suu Kyi Relation with Himachal ) की.

इसका पहला संस्करण वर्ष 1989 में प्रकाशित हुआ. इस किताब की इतनी मांग हुई कि इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित करना पड़ा. दिल्ली में जिस समय नेहरू जयंती पर वर्ष 2012 में किताब का दूसरा संस्करण छपा तो आंग सान सू की (Suu Kyi relation with shimla) ने अपने भाषण में करीब पांच मिनट तक शिमला से जुड़ी अपनी यादों को सांझा किया. यही नहीं, उन्होंने इच्छा जताई थी कि वो फिर से शिमला आना चाहेंगी. हालांकि वे म्यांमार का शासन संभालने के बाद अधिक व्यस्त रहीं और फिर इसी साल फरवरी में फौज ने लोकतंत्र का गला भी घोंट दिया.

आईआईएएस में आंग सान सू की (Aung san Suu kyi in IIAS ) फैलो रही हैं. संस्थान में लंबे समय तक जनसंपर्क अधिकारी रहे अशोक शर्मा के अनुसार सू की संस्थान के वातावरण और वहां की आत्मीयता से बहुत प्रभावित थीं और संस्थान में अकसर सभी से मिलने के लिए अपने कक्ष से आ जाया करती थीं. सू की फरवरी 1987 से लेकर अगस्त 1987 तक यहां अध्येता रहीं. उनके पति माइकल एरिस भी यहां फैलो रहे हैं. तब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के निदेशक मार्गरेट चटर्जी थे.

हुआ यूं था कि सू की वर्ष 1986 में जापान में अध्ययन कर रही थीं. उनके पति माइकल एरिस यहां फैलो थे. उनकी फैलोशिप ढाई साल की थी, लेकिन सू की छह महीने तक ही यहां फैलो (Aung San Suu Kyi in shimla) रहीं. उनका आवेदन आने के बाद केंद्र सरकार से अनुमति मिलने में भी काफी देर लगी. अंतत: फरवरी 1987 में वे यहां आ गई. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सू की के लोकतंत्र के प्रति संघर्ष व समर्पण की पूरी दुनिया साख है.

शिमला स्थित आईआईएएस के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी अशोक शर्मा के अनुसार सू की अपना अधिकांश समय स्टडी रूम में बिताती थीं. वे यहां लोकतंत्र के मूलभूत तत्वों की साधना में जुटी रहीं. यहां की धरती और वातावरण ने उनके मन में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति संघर्ष का जज्बा और तेज किया. संस्थान में रहते हुए उनकी पुस्तक पूरी हुई.

संस्थान के पब्लिकेशन ने ही उनकी पुस्तक को छापा. इसी पुस्तक के दूसरे संस्करण का विमोचन 14 नवंबर 2012 को दिल्ली में तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया था. इस अवसर पर सोनिया गांधी व कर्ण सिंह भी मौजूद थे. सू की उसी समय नजरबंदी से रिहा हुई थीं, लेकिन एक दशक के भीतर फिर से सू की को नजरबंदी का सामना करना पड़ा है.

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Last Updated : Dec 8, 2021, 8:12 PM IST
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