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दिसंबर में हिमाचल में बर्फबारी, 4 हजार करोड़ के लाल रसीले सेब को 1600 चिलिंग आवर्स मिलने की उम्मीद

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Published : Dec 6, 2021, 9:27 PM IST

दिसंबर में अच्छी बर्फबारी हो जाए तो यह चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते हैं. इस महीने में बारिश व बर्फबारी के कारण बेशक पूरे प्रदेश में कड़ाके की सर्दी हो गई है, लेकिन यह कड़ाके की ठंड सेब उत्पादन के लिए शुभ संकेत है. ऐसे में देश के फल राज्य हिमाचल प्रदेश (Apple Bowl Himachal) में प्रकृति ने दिसंबर में अंबर से मेहरबानी बरसानी शुरू कर दी है. सेब के पौधे में अच्छे फूल लगने के लिए 1200 से 1600 चिलिंग आवर्स (Chilling hours for apples) जरूरी है. उम्मीद जताई जा रही है कि इस साल

Chilling hours for apples
सेब के लिए चिलिंग आवर्स

शिमला: देश के फल राज्य हिमाचल प्रदेश (Apple Bowl Himachal) में प्रकृति ने दिसंबर में अंबर से मेहरबानी बरसानी शुरू कर दी है. दिसंबर के पहले ही हफ्ते में हिमाचल में बर्फबारी (snowfall in himachal) देखने को मिली है. हिमाचल प्रदेश में सालाना चार हजार करोड़ से अधिक सेब उत्पादन होता है. देश का फाइव स्टार होटलों की फ्रूट बास्केट (Fruit basket of five star hotels) में सजने वाले हिमाचल के लाल रसीले सेबों को वहां तक पहुंचने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है. इसकी शुरुआत दिसंबर महीने से होती है. सेब के पौधे में अच्छे फूल लगने के लिए 1200 से 1600 चिलिंग आवर्स (Chilling hours for apples) जरूरी है.

सेब का स्वाद चखने के लिए पहले कदम के तौर पर चिलिंग आवर्स का नाम आता है. दिसंबर में अच्छी बर्फबारी हो जाए तो यह चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते हैं. बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि चिलिंग आवर्स क्या होते हैं और सेब उत्पादन में उनका क्या योगदान रहता है. इसे समझने के लिए दिसंबर का मौसम जानना जरूरी है. इस महीने में बारिश व बर्फबारी के कारण बेशक पूरे प्रदेश में कड़ाके की सर्दी हो गई है, लेकिन यह कड़ाके की ठंड सेब उत्पादन के लिए शुभ संकेत है. कारण यह है कि फल राज्य हिमाचल के सेब उत्पादन वाले इलाकों में सुंदर लाल-लाल सेब की शानदार पैदावार के लिए कड़ाके की सर्दी बेहद जरूरी है.

दिसंबर से लेकर मार्च तक के चार महीनों में 1200 से 1600 चिलिंग आवर्स यानी इतने सर्द घंटे पूरे हों तो सेब के पौधों में नए प्राण आ जाते हैं. इन आवर्स पर ही हिमाचल के चार लाख बागवानों की उम्मीदें (Apple Horticulture in Himachal) टिकी होती हैं. इन्हीं चिलिंग आवर्स पर टिका है चार हजार करोड़ का सेब कारोबार. इसके लिए दिसंबर में बारिश व बर्फबारी शुरू हो जाए तो आगामी समय में भी बर्फबारी के आसार के कारण चिलिंग आवर्स तय समय में पूरे हो जाते हैं. जिस तरह शरीर के लिए प्राण जरूरी हैं, वैसे ही सेब की सेहत के लिए चिलिंग आवर्स.

Chilling hours for apples
सेब के लिए चिलिंग आवर्स

सेब के पौधे में फल लगने के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान बेहद जरूरी है. सेब के पौधे दिसंबर माह में सुप्त अवस्था में होते हैं. उन्हें इस अवस्था से बाहर आने के लिए सेब के लिए चिलिंग आवर्स सात डिग्री सेल्सियस का तापमान औसतन 1200 से 1600 घंटे तक चाहिए. ये सर्द घंटे चार माह में पूरे हो जाने चाहिए. यदि चार माह में जरूरी चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएं तो सेब के पौधों में फल की सेटिंग बहुत अच्छी होती है और उत्पादन बंपर होता है. जब चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएं तो सेब की फ्लावरिंग बेहतर होगी और फल की क्वालिटी भी अच्छी होती है. यदि मौसम दगा दे जाए और चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो पौधों में कहीं फूल अधिक आ जाते हैं और कहीं कम. इससे फलों की सैटिंग प्रभावित हो जाती है और डालियों में फल भी नहीं लगता.

ये भी पढ़ें: शिमला में बर्फबारी: दोपहर बाद अचानक खराब हुआ मौसम, बर्फ के फाहे गिरते देख झूमे पर्यटक

हिमाचल प्रदेश में चार लाख बागवान परिवार हैं. सबसे अधिक सेब शिमला जिला में होता है. इसके अलावा कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर में भी सेब पैदा किया जाता है. हिमाचल में सालाना चार से पांच करोड़ पेटी सेब होता है. एक सेब सीजन में चार हजार करोड़ से अधिक का कारोबार होता है. बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एमएस मनकोटिया का कहना है कि जिस समय चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते हैं, पौधों की सुप्त अवस्था पूरी हो जाती है.

जिस समय पौधे सुप्त अवस्था यानी डोरमेंसी में होते हैं, पौधों में मौजूद पोषक तत्व जड़ों की तरफ चले जाते हैं. जब चिलिंग आवर्स पूरे होने पर पौधे की सुप्त अवस्था टूटती है और पोषक तत्व फिर से सारे पौधे में एक समान होकर फैल जाते हैं. यदि चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो पौधे के पोषक तत्व एकसमान नहीं फैलते. इससे पौधों में फूल अच्छे से नहीं आते और फल की सेटिंग भी ठीक नहीं होती. युवा बागवान मनोज चौहान के अनुसार दिसंबर में इस बार मौसम के आसार अच्छे हैं. चिलिंग आवर्स पूरा होने से किसानों बागवानों को लाभ होगा.

यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2007 से पिछले साल तक की अवधि में सिर्फ वर्ष 2008, 2009 व 2011 में ही दिसंबर में शिमला में हिमपात नहीं हुआ है. वर्ष 2014 में तो 14,15 व 16 दिसंबर को लगातार तीन दिन तक शिमला ने बर्फबारी का आनंद लिया था. दिसंबर की बर्फ की एक खासियत ये भी है कि इस महीने में पड़ने वाली बर्फ लंबे समय तक धरती पर टिकती है. विशेष रूप से किसानी और बागवानी के लिए ये बर्फ बहुत फायदेमंद होती है. इससे जमीन की नमी बढ़ती है.

सेब के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स भी पूरे होने के आसार बढ़ते हैं. फिर बर्फ का दीदार करने के लिए देश-विदेश से सैलानी हिमाचल (tourists in shimla manali) की ओर उमड़ते हैं. इससे पर्यटन कारोबार भी चमकता है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में वर्ष 2007 में 14 व 15 दिसंबर को बर्फ गिरी. फिर दो साल के सूखे के बाद वर्ष 2010 में 31 दिसंबर को हिमपात हुआ. फिर एक साल मौसम ने निराश किया, लेकिन वर्ष 2012 में फिर से 12 व 14 दिसंबर को हिमपात हुआ.

वर्ष 2013 में 22 व 23 दिसंबर को, वर्ष 2014 में 14,15 व 16 दिसंबर, वर्ष 2015 में 24 दिसंबर यानी क्रिसमस से एक दिन पहले शिमला में बर्फ गिरी. 2015 के बाद भी दिसंबर महीने में बर्फ गिरती रही है. हिमाचल की आर्थिकी में सेब का महत्वपूर्ण योगदान (Apples contribution to Himachal economy) है. सेब के कारण ही हिमाचल की प्रति व्यक्ति आय में भी नियमित रूप से बढ़ोतरी होती है. सेब के कारण ही हिमाचल के दो गांव एशिया के सबसे अमीर गांवों में शुमार हुए हैं. शिमला जिला के क्यारी और मडावग गांव लंबे समय तक एशिया के सबसे अमीर गांव की सूची में रहे हैं.

ये भी पढ़ें: चूड़धार यात्रा पर 15 अप्रैल तक बैन, लेकिन बर्फबारी होते ही नियमों को नहीं मान रहे पर्यटक

शिमला: देश के फल राज्य हिमाचल प्रदेश (Apple Bowl Himachal) में प्रकृति ने दिसंबर में अंबर से मेहरबानी बरसानी शुरू कर दी है. दिसंबर के पहले ही हफ्ते में हिमाचल में बर्फबारी (snowfall in himachal) देखने को मिली है. हिमाचल प्रदेश में सालाना चार हजार करोड़ से अधिक सेब उत्पादन होता है. देश का फाइव स्टार होटलों की फ्रूट बास्केट (Fruit basket of five star hotels) में सजने वाले हिमाचल के लाल रसीले सेबों को वहां तक पहुंचने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है. इसकी शुरुआत दिसंबर महीने से होती है. सेब के पौधे में अच्छे फूल लगने के लिए 1200 से 1600 चिलिंग आवर्स (Chilling hours for apples) जरूरी है.

सेब का स्वाद चखने के लिए पहले कदम के तौर पर चिलिंग आवर्स का नाम आता है. दिसंबर में अच्छी बर्फबारी हो जाए तो यह चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते हैं. बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि चिलिंग आवर्स क्या होते हैं और सेब उत्पादन में उनका क्या योगदान रहता है. इसे समझने के लिए दिसंबर का मौसम जानना जरूरी है. इस महीने में बारिश व बर्फबारी के कारण बेशक पूरे प्रदेश में कड़ाके की सर्दी हो गई है, लेकिन यह कड़ाके की ठंड सेब उत्पादन के लिए शुभ संकेत है. कारण यह है कि फल राज्य हिमाचल के सेब उत्पादन वाले इलाकों में सुंदर लाल-लाल सेब की शानदार पैदावार के लिए कड़ाके की सर्दी बेहद जरूरी है.

दिसंबर से लेकर मार्च तक के चार महीनों में 1200 से 1600 चिलिंग आवर्स यानी इतने सर्द घंटे पूरे हों तो सेब के पौधों में नए प्राण आ जाते हैं. इन आवर्स पर ही हिमाचल के चार लाख बागवानों की उम्मीदें (Apple Horticulture in Himachal) टिकी होती हैं. इन्हीं चिलिंग आवर्स पर टिका है चार हजार करोड़ का सेब कारोबार. इसके लिए दिसंबर में बारिश व बर्फबारी शुरू हो जाए तो आगामी समय में भी बर्फबारी के आसार के कारण चिलिंग आवर्स तय समय में पूरे हो जाते हैं. जिस तरह शरीर के लिए प्राण जरूरी हैं, वैसे ही सेब की सेहत के लिए चिलिंग आवर्स.

Chilling hours for apples
सेब के लिए चिलिंग आवर्स

सेब के पौधे में फल लगने के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान बेहद जरूरी है. सेब के पौधे दिसंबर माह में सुप्त अवस्था में होते हैं. उन्हें इस अवस्था से बाहर आने के लिए सेब के लिए चिलिंग आवर्स सात डिग्री सेल्सियस का तापमान औसतन 1200 से 1600 घंटे तक चाहिए. ये सर्द घंटे चार माह में पूरे हो जाने चाहिए. यदि चार माह में जरूरी चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएं तो सेब के पौधों में फल की सेटिंग बहुत अच्छी होती है और उत्पादन बंपर होता है. जब चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएं तो सेब की फ्लावरिंग बेहतर होगी और फल की क्वालिटी भी अच्छी होती है. यदि मौसम दगा दे जाए और चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो पौधों में कहीं फूल अधिक आ जाते हैं और कहीं कम. इससे फलों की सैटिंग प्रभावित हो जाती है और डालियों में फल भी नहीं लगता.

ये भी पढ़ें: शिमला में बर्फबारी: दोपहर बाद अचानक खराब हुआ मौसम, बर्फ के फाहे गिरते देख झूमे पर्यटक

हिमाचल प्रदेश में चार लाख बागवान परिवार हैं. सबसे अधिक सेब शिमला जिला में होता है. इसके अलावा कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर में भी सेब पैदा किया जाता है. हिमाचल में सालाना चार से पांच करोड़ पेटी सेब होता है. एक सेब सीजन में चार हजार करोड़ से अधिक का कारोबार होता है. बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एमएस मनकोटिया का कहना है कि जिस समय चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते हैं, पौधों की सुप्त अवस्था पूरी हो जाती है.

जिस समय पौधे सुप्त अवस्था यानी डोरमेंसी में होते हैं, पौधों में मौजूद पोषक तत्व जड़ों की तरफ चले जाते हैं. जब चिलिंग आवर्स पूरे होने पर पौधे की सुप्त अवस्था टूटती है और पोषक तत्व फिर से सारे पौधे में एक समान होकर फैल जाते हैं. यदि चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो पौधे के पोषक तत्व एकसमान नहीं फैलते. इससे पौधों में फूल अच्छे से नहीं आते और फल की सेटिंग भी ठीक नहीं होती. युवा बागवान मनोज चौहान के अनुसार दिसंबर में इस बार मौसम के आसार अच्छे हैं. चिलिंग आवर्स पूरा होने से किसानों बागवानों को लाभ होगा.

यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2007 से पिछले साल तक की अवधि में सिर्फ वर्ष 2008, 2009 व 2011 में ही दिसंबर में शिमला में हिमपात नहीं हुआ है. वर्ष 2014 में तो 14,15 व 16 दिसंबर को लगातार तीन दिन तक शिमला ने बर्फबारी का आनंद लिया था. दिसंबर की बर्फ की एक खासियत ये भी है कि इस महीने में पड़ने वाली बर्फ लंबे समय तक धरती पर टिकती है. विशेष रूप से किसानी और बागवानी के लिए ये बर्फ बहुत फायदेमंद होती है. इससे जमीन की नमी बढ़ती है.

सेब के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स भी पूरे होने के आसार बढ़ते हैं. फिर बर्फ का दीदार करने के लिए देश-विदेश से सैलानी हिमाचल (tourists in shimla manali) की ओर उमड़ते हैं. इससे पर्यटन कारोबार भी चमकता है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में वर्ष 2007 में 14 व 15 दिसंबर को बर्फ गिरी. फिर दो साल के सूखे के बाद वर्ष 2010 में 31 दिसंबर को हिमपात हुआ. फिर एक साल मौसम ने निराश किया, लेकिन वर्ष 2012 में फिर से 12 व 14 दिसंबर को हिमपात हुआ.

वर्ष 2013 में 22 व 23 दिसंबर को, वर्ष 2014 में 14,15 व 16 दिसंबर, वर्ष 2015 में 24 दिसंबर यानी क्रिसमस से एक दिन पहले शिमला में बर्फ गिरी. 2015 के बाद भी दिसंबर महीने में बर्फ गिरती रही है. हिमाचल की आर्थिकी में सेब का महत्वपूर्ण योगदान (Apples contribution to Himachal economy) है. सेब के कारण ही हिमाचल की प्रति व्यक्ति आय में भी नियमित रूप से बढ़ोतरी होती है. सेब के कारण ही हिमाचल के दो गांव एशिया के सबसे अमीर गांवों में शुमार हुए हैं. शिमला जिला के क्यारी और मडावग गांव लंबे समय तक एशिया के सबसे अमीर गांव की सूची में रहे हैं.

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